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नहीं रहे समीक्षा साहित्य के ऋषि प्रो. भगीरथ दीक्षित

वीथिका            Jun 14, 2016


मुंबई से पी.कुमार संभव। गम्भीर साहित्य लेखन के शिखर पुरुष और हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकार प्रो. भगीरथ दीक्षित अब हमारे बीच नहीं रहे. पिछले लगभग 15 दिनों से वे मुंबई के अँधेरी स्थित हॉली स्पिरिट हॉस्पिटल में आई.सी.यू. में भर्ती थे। रविवार 12 जून की रात 2:30 बजे उनका देहांत हो गया। वे 98 वर्ष के थे। मुंबई के जयहिंद कॉलेज में हिंदी के विभागाध्यक्ष रहे प्रो. दीक्षित आजीवन हिंदी साहित्य सेवा में लीन रहे और हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के लिए सतत संघर्षशील भी रहे। प्रो. दीक्षित के मार्ग दर्शन में महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के संस्थापक अध्यक्ष और नवभारत टाइम्स के पूर्व सहायक संपादक डॉ. राम मनोहर त्रिपाठी और प्रख्यात साहित्यकार डॉ. श्रीहरि सहित लगभग दो दर्जन से भी अधिक लोगों ने पीएचडी. की उपाधि हासिल की है। प्रो. दीक्षित समीक्षा साहित्य के ऋषि कहे जाते थे। 'समीक्षालोक', 'कमायिनी विमर्श', 'अभिनव साहित्य चिंतन', 'मानस विमर्श (भाग 1- भाग 2)', 'महादेवी काव्य परिशीलन', आदि रचनाएं उनके गम्भीर चिंतन की गहराई को दर्शाती हैं। भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित श्रीमद्भगवद्गीता पर लिखी उनकी पुस्तक, जिसके लिए तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने उन्हें सम्मानित भी किया था, 'श्रीमद्भगवद्गीता - एक नया अध्ययन' गीता की प्रचलित धारणाओं से अलग एक नयी तर्कपरक प्रासंगिकता सिद्ध करती है।इसी प्रकार अपनी समीक्षात्मक रचनाओं में प्रो. दीक्षित ने समीक्षा की प्रासंगिकता को एक साहित्यिक कार्य के रूप में विकसित किया। प्रो. दीक्षित का समीक्षात्मक साहित्य इतिहास, दर्शन और विचारधारा के अंतः सम्बन्धों का गहन पड़ताल करता है और एक विचार की सकारात्मकता के साथ-साथ साहित्य और समाज के वास्तविक सम्बन्धों का अन्वेषण भी करता है। दो सदियों के संक्रमण काल के साहित्य महानायकों की अग्रिम पंक्ति में अपना नाम दर्ज करा लेनेवाले प्रो. भगीरथ दीक्षित की मृत्यु की खबर पर मुंबई के हिंदी मीडिया का खामोश रहना किसी भयानक आश्चर्य से कम नहीं है। हिंदी में प्रकाशित लगभग सभी छोटे बड़े अखबारों के सम्पादकीय विभाग के लिए आदरणीय का दर्जा रखने वाले प्रो. दीक्षित की मृत्यु का दुखद समाचार प्रकाशित करना हिंदी मिडिया के लिए सम्भवतः महत्वहीन और औचित्यहीन लगा होगा। बिकाऊ और कर्तव्यच्युत प्रिंट मिडिया की नज़रों में साहित्य और साहित्यकार कहाँ तक उपयोगी हैं यह समझना और महसूस किया जाना चाहिए सभी को, चाहे वह साहित्यकार हो, लेखक हो, पाठक हो, साहित्य प्रेमी हो, कोई भी हो। एक उच्चकोटि के साहित्यकार और हिंदी के विद्वान की मृत्यु के समाचार को मिडिया द्वारा नजरअंदाज किया जाना कचोटता है।


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