याद-ए-अनुरागी:ओ प्यारे भाई चोर

वीथिका            Mar 08, 2016


richa-anuragi-1 ऋचा अनुरागी। एक रात अचानक दरवाजे पर जोर जोर से दस्तक होने लगी,हमसब भाई-बहन पापा के साथ बहर आए तो देखा मौहल्ले के बहुत सारे लोग एकत्रित हैं सभी पापा से मुखातिब हुये कहने लगे अनुरागी जी ऊपर छत पर चोर है और उसे हम सबने घेर लिया है वो आपके घर के पीछे से उतर कर भाग सकता है अत: सब पीछे की ओर गये। दरअसल वो ऊपर रहने वाले चेरियन अंकल की छत पर था और छत पर बाहर से ताला लगा हुआ था ,वह हमारे गार्डन से ही आम के पेड़ से चढ़कर गया था , उसे वापस भी उसी तरह आना था इसलिए सबने उसे निचे घेर लिया था ,जब वह नीचे नही उतरा तो कुछ लोग छत का ताला खोल उसे पकडने गये ऊपर शोर सुन वह पाईप के सहारे बीच में लटक गया ।पापा से उसकी यह दशा देखी नही जा रही थी,पापा सब को शांत कर उससे बोले ,ओ प्यारे भाई चोर तुम नीचे आ जाओ तुम्हें कोई कुछ नही कहेगा ,कोई यूं ही तो चोर नही बनता? पापा उसे टार्च से रोशनी दे रहे थे और कह रहे थे देखो प्यारे भाई अंधेरे में तुम्हें चोट ना लग जाए ज़रा संभाल कर नीचे आओ। अपनी समस्या मुझे बताओ मैं कोशिश करूंगा उसे हल करने की तभी किसी की सुचना पर पुलिस भी पधार गई और चोर पकड़ लिया गया। उस बेचारे की जमकर पिटाई होने लगी ,पापा फिर बीच में गये और उसे बचाया। माँ को सबके लिये चाय बनाने का अनुरोध किया। चोर महोदय मात्र अन्डरवियर में थे पापा ने उनके लिये हम से कपड़े मंगवाये और फिर उसे बैठाकर पापा उससे उसकी समस्या पुछने लगे वह रो रहा था और बोला मेरे घर चार दिनों से खाना नही बना इसलिये छत पर मुर्गी चुराने आया था। सबके मना करने के बावजूद पापा ने उसे भोजन करवाया,पापा के बहुत मना करने के बाद भी पुलिस उसे पकड़ कर ले गई। यह किस्सा यहाँ खत्म नही होता कुछ तीन चार माह बाद अदालत से एक कागज आया जिसमें पापा को गवाही देनी थी कि वह चोर हमारे ही घर से पकडाया है। नियत तरीख पर पापा अदालत पहुंच गये और जज् के कक्ष में रखी बेंच पर बैठे चिन्तित थे कि अब ना जाने क्या होगा? जज् साहब उठ कर अन्दर अपने पर्सनल कक्ष में चले गये। कुछ ही देर बाद अदालत की वर्दी पहने एक सेवक अनुरागी जी मुखातिब हुआ ,बोला-न्यायाधीश महोदय आपको अंदर बुला रहे है। पापा उसके साथ अन्दर पहुंचे तो जज् साहब चरण वदंन करते हुये बोले सर आप यहाँ केसे? पापा पुरा किस्सा सुनाने के बाद बोले ,प्यारे भाई मुझे झूठ बोलने से बचालो यह पकडाया तो मेरे ही घर से है पर मै उसे सजा नही दिलाना चाहता।और जज् साहब ने युक्ति समझा दी। पापा के सामने जब उस चोर को लाया गया और कहा गया कि क्या आप इसे पहचानते हैं? यह वही चोर है जिसे आपके घर से पकड़ा गया था। पापा बगैर एक पल गवाऐ हुऐ बोल पडे इतने दिन हो गये है वो भी रात का समय था मैं अब नही पहचान सकता कि यह वही व्यक्ति है और फिर उसे छोड़ दिया गया। पापा शाम तक उसे अदालत की पूरी कार्यवाही कर छुडा लाये ,फिर उसकी कमाई का जरिया खोजने लगे तब वह बोला मुझे गन्ने की चरखी दिलवा दें फिर उसे गन्ने के रस का ठेला लगवा दिया गया।हम सबको शाम को पैसे दिये जाते कि अपनी मित्र मंडली के साथ उसके ठेले से रस पी कर आओ। इस तरह एक मजबूर चोर मेहनतकश ईमानदार नागरिक बना। ऐसे थे आप सबके प्यारे मियां अनुरागी और मेरे यार पापा ।


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