डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।
भूल चूक माफ' ? नईं बाबा! ओटीटी पर आने का इंतज़ार करो 'भूल चूक माफ' के ट्रेलर में जो दिलचस्प सीन हैं, उनको छोड़ दो, तो फ़िल्म बेहद पकाऊ, झिलाऊ, जी मचलाऊ है! ये फ़िल्म आपके धीरज का इम्तहान है। ऊपर से 'टाइम लूप' का प्रयोग! यह फ़िल्म दो हफ्ते बाद ही ओटीटी पर आ जाएगी। तब चाहें तो देख लेना। इसके निर्माता दिनेश विजन है, जिनका असली विजन 'ब्लर' हो चुका है।
शुक्र है कि फ़िल्म 121 मिनट की ही है। उसमें भी इतने रिपीट दृश्य हैं कि दर्शक कहता है अब बस कर बाबा! न ट्विस्ट है और न थ्रिल! बेशक, मालवा के टेपों की तरह बनारसी गेलसप्पे भी प्यारे होते हैं। इसमें भी बनारसी बामण जोड़ी प्यारी तो है, पर बनारसी पान जैसी गिलोरी की जुगाली कित्ती करें? इत्ते भाषण, इत्ता गीता ज्ञान?
फिल्म की पृष्ठभूमि बनारस की है, लेकिन इसमें कलाकार कभी अवधी, कभी बुंदेलखंडी बोलते हैं। ये बनारस फिल्मी स्टूडियो का लगता है।
कई संवाद व्हाट्सएप फॉरवर्ड जैसे हैं, जो फिल्म की गंभीरता को कम करते हैं। भाषा चलताऊ है। गाने प्रभावशाली नहीं हैं और कहानी में कोई खास योगदान नहीं देते।
अंत में सामाजिक संदेश देने की कोशिश फिल्म को उपदेशात्मक बनाती है। साथ ही, फिल्म में कई छोटी-छोटी कहानियां और किरदार ठूंसे गए हैं, जिससे दर्शक भ्रमित होते हैं।
कॉमेडी फिल्म में कॉमेडी की दरकार थी। देश भर में अपनी शादी को लेकर लाखों आत्माएं विचरण कर रही हैं। शादी में हंसी-ठिठोली आम बात है। टाइम लूप का कॉन्सेप्ट दिलचस्प है कि शादी को बेचैन हीरो का जीवन शादी के एक दिन पहले टाइम लूप में फंस जाता है और उनकी शादी का दिन 15 दिन की लगातार हल्दी की रस्म में मेरिनेट होता रहता है। अगर आप भी मेरिनेट होना चाहें तो जा सकते हैं।
कॉमेडी भी पकाऊ हो सकती है, इसका प्रमाण है यह फ़िल्म!अझेलनीय
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