मल्हार मीडिया भोपाल।
‘अर्थ’ की ताकत दुनिया को बदल रही है। चीन ने इस दिशा में कदम बढ़ाये हैं। यदि 21 वीं सदी में भारत को ताकतवर बनना है तो हमें ‘आर्थिक’ रूप से मजबूत बनना ही होगा।
यह कहना है राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश का। वे शनिवार को ज्ञानतीर्थ सप्रे संग्रहालय में हिंदी पत्रकारिता द्वि-शताब्दी समारोह के शुभारंभ अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता भारतीय प्रेस परिषद के वरिष्ठ सदस्य प्रकाश दुबे ने की। इस अवसर पर संग्रहालय द्वारा दिये जाने वाले सम्मान भी प्रदान किये गये।
वर्ष 2026 में हिंदी पत्रकारिता के 200 साल पूरे हो जाएंगे। इसी निमित्त सप्रे संग्रहालय द्वारा वर्ष भर आयोजन किये जाने हैं, यह कार्यक्रम इसी की पहली कड़ी था। कार्यक्रम में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि के कुलगुरु विजय मनोहर तिवारी ने हरिवंश की कृति ‘समय के सवाल’ पर मुख्य वक्तव्य दिया।
अपने उद्बोधन में मुख्य अतिथि हरिवंश ने ‘डिजिटल युग में हिन्दी पत्रकारिता की चुनौतियां’ को केंद्र में रखकर अपनी बात कही। उन्होंने कहा कि वर्ष 1997 के बाद से डिजिटल मीडिया का दौर आया है। यह मीडिया प्रिंट मीडिया से सर्वथा अलग है। प्रिंट मीडिया में लिखे एक-एक शब्द का महत्व है। यदि वहां जरा भी गलत प्रकाशित हो जाये तो लिखने वाले से सबूत मांगे जा सकते हैं, लेकिन डिजिटल मीडिया में कुछ भी लिखा जा रहा है, किसी की जिम्मेदारी तय नहीं है। यही सबसे बड़ी चुनौती है। इस मीडिया ने आपसी संवाद को समाप्त कर व्यक्ति को अपने तक ही केंद्रित कर दिया है। आज बच्चों से लेकर बड़े- बुजुर्ग तक इस माध्यम पर केवल स्वयं का ही बखान कर रहे हैं। एक तरह से व्यक्ति की सोच को कुंद कर दिया है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि डिजिटल मीडिया पर आ रही खबरों से आम व्यक्ति को सचेत होना होगा। ओबामा ने इस खतरे को बहुत पहले भांप लिया था, भारत को भी इस तरफ सोचना चाहिए।
हरिवंश ने कहा कि तकनीक के दौर में विचार लगभग समाप्त हो चला है। यदि पिछले समय पर गौर करें तो छटवें दशक के बाद से विचारों का क्षय होना शुरु हो गया था। तकनीकी युग आने के बाद से लगातार इसमें गिरावट आती ही जा रही है। आज डिजिटल मीडिया की पहुंच घर-घर तक हो चली है और यह नई सोच को जन्म दे रहा है।
मुख्य वक्ता हरिवंश ने कहा कि कोविड काल में भ्रमित करने वाली खबरें मीडिया में आईं। इस समय मीडिया को मिली स्वतंत्रता का सबसे ज्यादा दुरुपयोग हुआ। हमारे वैज्ञानिकों ने टीका बनाया उसकी आलोचना हुई। इसी तरह हमारे वैज्ञानिकों द्वारा तैयार लड़ाकू विमानों के बारे में भी भ्रम फैलाने वाली खबरें प्रसारित हुईं हैं। यह सब चुनौतियां मीडिया के सामने हैं।
अध्यक्षीय उद्बोधन में भारतीय प्रेस परिषद के वरिष्ठ सदस्य प्रकाश दुबे ने ‘पत्रकारिता का वर्तमान परिदृश्य और साख का संकट: भारतीय मीडिया परिषद की आवश्यकता’ विषय पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि भारत में पत्रकारों की सुरक्षा के प्रति ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने आंकड़ों के माध्यम से अन्य देशों की तुलना में भारत की स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने कई उदाहरणों के माध्यम से यह भी स्पष्ट किया कि पत्रकारों पर जबरन मुकदमे लादकर उन्हें जेल तक भिजवाया गया। इससे पत्रकारिता की साख गिरी है। साथ ही उन्होंने पत्रकारों से भी कहा कि अपनी साख को बचाये रखना आपकी भी जिम्मेदारी है।आप केवल सरकार का ही ढोल नहीं पीटें बल्कि सच भी जनता के सामने लायें। उन्होंने कुछ उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट किया कि सरकारी योजनाओं से गरीबों को लाभ मिल रहा है यह तो गुणगान करते हैं लेकिन इससे दूसरे वर्ग पर कितना बोझ आ रहा है उसकी चिंता नहीं करते। हम विदेशी बैंकों की बातें तो करते हैं लेकिन हमारे बैंक आम आदमी को सुविधाओं के नाम पर कितना लूट रहे हैं, इस पर भी बोलना चाहिए। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि यदि साख बचानी है तो जनता से जुडऩा ही होगा।
उन्होंने बताया कि वर्तमान में भारत में प्रेस परिषद है ही नहीं। आठ माह पहले इसका कार्यकाल पूरा होने के बाद नई परिषद नहीं बनी। नतीजतन आज 400 से ज्यादा शिकायतें लंबित हैं।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलगुरु विजयमनोहर तिवारी ने हरिवंश की कृति ‘समय के सवाल’ विषय पर वक्तव्य में कहा कि हरिवंश की पत्रकारिता लोकधर्म की पत्रकारिता है। उन्होंने आरबीआई की सुरक्षित नौकरी छोडक़र पत्रकारिता को अपनाया। इतना ही नहीं रविवार जैसे पत्र को छोडक़र अविभाजित बिहार के शहर रांची से निकलने वाले पत्र ‘प्रभात खबर’ में नौकरी की। लगभग बंद के कगार पर खड़े इस पत्र को फिर नया जीवन दिया। यह पत्र वहां रहने वाले वंचित वर्ग की आवाज बना। यहीं से हरिवंश जी ने हिंदी पत्रकारिता के माध्यम से सामाजिक परिवेश को समृद्ध करने की यात्रा का श्रीगणेश किया। इस पुस्तक में उन्होंने अपने पत्रकारीय जीवन में मिले अनुभवों को सहेजा है। आसान शब्दों में कहें कि चार दशक के उनके पत्रकारीय जीवन का अमृत इस किताब में है। अपने वक्तव्य में विजयमनोहर तिवारी ने कहा कि हरिवंश पर केंद्रित कृपाशंकर चौबे की किताब ‘पत्रकारिता का लोकधर्म’ सभी को पढऩा चाहिए। विशेषकर पत्रकारिता के विद्यार्थियों को अवश्य पढऩा चाहिए। यह किताब न केवल हरिवंश जी के व्यक्तित्व से परिचित कराती है बल्कि पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों को भी समझाती है।
इस अवसर पर माधवराव सप्रे पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित प्रखर संपादक विष्णु प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि यह गलत है कि प्रिंट मीडिया का भविष्य सुरक्षित नहीं है। इस माध्यम का भविष्य तब तक असुरक्षित नहीं जब तक वह स्वयं नहीं चाहेगा। यदि अपने भविष्य को लेकर यह माध्यम स्वयं मजबूत है तो काई ताकत इसे हिला नहीं सकती। उन्होंने कहा कि जिन मनीषी के नाम से मुझे यह सम्मान मिला है उन्हीं सप्रे जी ने शब्दों का संधान किया है। लेकिन दु:ख की बात है कि आज समाचार पत्रों में शब्दों की चिंता नहीं की जा रही है। शब्दों के सही अर्थ समझे नहीं जा रहे। विभिन्न संस्थानों से आये शब्दों को ही मानक मान लिया गया है। जबकि मीडिया को अपने शब्द स्वयं गढऩा चाहिए। इस संदर्भ में उन्होंने कई उदाहरण भी दिये। संग्रहालय से मिले सम्मान को उन्होंने जागरण समूह को समर्पित करते हुए कहा कि यह मेरा सम्मान नहीं है। हमारे समूह में कार्य करने वाले हर छोटे-बड़े कर्मचारी का सम्मान है। उनके सहयोग के बिना मेरी यात्रा अधूरी है। उन्होंने सम्मान में मिली राशि भी विमन्रतापूर्वक संग्रहालय को समर्पित कर दी।
इसके पूर्व संग्रहालय के संस्थापक निदेशक विजयदत्त श्रीधर ने कहा कि यह वर्ष हिंदी पत्रकारिता का 200 वां वर्ष है। यह हमारा दायित्व है कि हम इस ऐतिहासिक अवसर को धूमधाम से मनायें। यह जिम्मेदारी सप्रे संग्रहालय निभा रहा है। उन्होंने बताया कि इस निमित्त साल भर संग्रहालय कार्यक्रम आयोजित करेगा। इस क्रम में चार कार्यक्रम भोपाल में होंगे तथा कुछ आयोजन दिल्ली में होंगे। उन्होंने इस बात पर दु:ख जताया कि 30 मई 1826 को कोलकाता से ‘उदत्त मार्तंड’ पत्र प्रकाशित कर हिंदी पत्रकारिता का अभ्युदय करने वाले जुगलकिशोर शुक्ला का चित्र तक उपलब्ध नहीं है। गूगल से गलत चित्र उठाकर उसका उपयोग किया जा रहा है।
आरंभ में समिति के उपाध्यक्ष राजेश बादल ने स्वागत वक्तव्य देते हुए कहा कि जिस तरह नए-नए मीडिया आ रहे हैं ऐसे में आज मीडिया काउंसिल बनाने की जरूरत है। प्रेस काउंसिल सिर्फ प्रिंट मीडिया तक ही सीमित है। इसलिए नई परिषद की आवश्यकता महसूस की जा रही है। उन्होंने संग्रहालय में संजोई सामग्री की जानकारी भी दी।
कार्यक्रम का संचालन निदेशक अरविंद श्रीधर ने किया। आभार प्रदर्शन विजय अग्रवाल ने किया। इस अवसर संग्रहालय के अध्यक्ष डॉ. शिवकुमार अवस्थी सहित अन्य प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।
विभूतियों का हुआ सम्मान
कार्यक्रम में संग्रहालय की ओर से दिये जाने वाले सम्मान प्रदान किये गये। इस क्रम में माधवराव सप्रे पत्रकारिता सम्मान से प्रखर संपादक विष्णु प्रकाश त्रिपाठी को सम्मानित किया गया। महेश गुप्ता सृजन सम्मान प्रेरक वक्ता डा. विजय अग्रवाल को प्रदान किया गया। इस वर्ष से जनसंपर्क विभाग के दिवंगत उपसंचालक मनोज पाठक की स्मृति में शुरु हुए नए सम्मान मनोज पाठक न्यू मीडिया पुरस्कार से शोध अध्येता राकेश मालवीय को सम्मानित किया गया। सम्मानित विभूतियों की प्रशस्ति का वाचन शोध निदेशक डॉ. मंगला अनुजा ने किया। कार्यक्रम में कीर्तिशेष मनोज पाठक के मित्रों - स्वजनों की भावांजलि पर केन्द्रित पुस्तक मित्र स्मृति स्मरण मनोज पाठक का विमोचन किया गया।
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