अच्छे पुलिसवाले लूप लाइन में होते हैं या वीआरएस लेनेवालों की कतार में

वीथिका            Jan 19, 2025


डॉ.प्रकाश हिन्दुस्तानी।

पुलिस की सेवा में रहे ज्यादातर अधिकारी सेवा से अलग होने पर या तो कवि कभी बन जाते हैं या गायक, लेकिन पीके नाम से चर्चित प्रवीण कक्कड़ ने भारतीय पुलिस की व्यवस्था को लेकर किताब लिखी है। वे जीवाजी विश्वविद्यालय के गोल्ड मेडलिस्ट और राष्ट्रपति पुलिस पदक से सम्मानित हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कमलनाथ के ओएसडी रहे हैं। वे नेताओं और पुलिस की कारगुज़ारियों को बाखूबी जानते हैं। उन्होंने किताब लिखी - भारतीय पुलिस : कल, आज और कल - दण्ड से न्याय तक।

प्रवीण कक्कड़ ने भारतीय पुलिस की वर्तमान स्थिति, आने वाली चुनौतियों और सुधार पर विस्तार से चर्चा की है। उन्होंने भारतीय पुलिस की वर्तमान स्थिति का एक यथार्थवादी चित्र प्रस्तुत किया है और पुलिस की कार्यप्रणाली में मौजूद खामियों, भ्रष्टाचार और जनता के विश्वास की कमी जैसे मुद्दों को उजागर किया है।

भारतीय पुलिस के सामने आने वाली विभिन्न चुनौतियों का विस्तृत विश्लेषण किया गया है। इनमें आतंकवाद, नक्सलवाद, साइबर अपराध और बढ़ती हुई अपराध दर जैसी चुनौतियां शामिल हैं। साथ ही उन्होंने भारतीय पुलिस में सुधार के लिए कई सुझाव दिए हैं। इनमें पुलिस बल का आधुनिकीकरण, पुलिसकर्मियों के प्रशिक्षण में सुधार, पुलिस और जनता के बीच बेहतर संबंध स्थापित करना आदि शामिल हैं।

प्रवीण कक्कड़ ने अपनी किताब में अपने अनुभवों और अपनी उपलब्धियों का ब्यौरा नहीं दिया। उन्होंने पुलिस के बारे में बात की है और दंड से न्याय तक की स्थिति पर चर्चा की। एक जुलाई 2024 से तीन नये आपराधिक कानून आए हैं। पुराने आईपीसी की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) आ गया। भारतीय दंड संहिता की जगह भारतीय न्याय संहिता (BNS) और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA ) प्रभावी हो गए हैं।

इस किताब में उन कानूनों के बारे में बहुत सरल शब्दों में मुख्य-मुख्य बातें लिखी हैं। यह किताब बताती है कि अब मानहानि की सजा सामुदायिक सेवा भी हो गई है। राजद्रोह की जगह अब देशद्रोह हो गया है। अंग्रेजों के जमाने वाला राजद्रोह कानून खत्म हो गया। महिलाओं के खिलाफ अपराध में कठोर दंड ही न्याय माना गया। है भारतीय न्याय संहिता में आईपीसी से अलग अपराध भी जुड़ गए हैं। झूठा वादा करके संबंध बनाना, मॉब लिंचिंग करना, संगठित अपराध करना, आतंकवादी कृत्य करना आदि और कुछ प्रावधान भी किए गए हैं।

नए कानून में फर्जी खबरों के प्रकाशन को अपराध घोषित करने वाला प्रावधान है।

भारतीय न्याय संहिता में अदालती व्यवस्था क्या होगी, यह भी उन्होंने लिखा है। डिजिटल FIR के प्रावधान से क्या-क्या बदलेगा? हर व्यक्ति को इसके बारे में जानना चाहिए। इस पुस्तक में महिलाओं से होने वाले अपराधों के संबंध में जानकारी हैं।

किताब पढ़कर मुझे लगा कि नये प्रावधान मानवीय मूल्यों की कदर करते हैं ; जैसे आत्महत्या की कोशिश करनेवाले पर नये प्रावधान, आईपीसी की धारा 377 के बदलाव आदि। कुछ बदलाव नये कानूनों में जानबूझकर नहीं किये गये।

प्रवीण कक्कड़ को पुलिसवालों के सम्मान और सुविधा की भी चिंता है और महिला पुलिसकर्मियों से परेशानी पर भी उन्होंने ध्यान दिलाया है। भारतीय न्याय संहिता आईपीसी की तरह घुमावदार नहीं है। पुलिस वाले कैसे सुरक्षित हो, यह भी गंभीर बात है। बॉडी कैमरों का उपयोग होना चाहिए। स्मार्ट पुलिसिंग होनी चाहिए। नैतिक शिक्षा का प्रशिक्षण होना चाहिए। सामुदायिक बदलाव होने चाहिए।

न्याय संहिता के बाद भी पुलिस सुधारों की आवश्यकता क्यों है? इसके बारे में भी उन्होंने बहुत संक्षिप्त में अपने विचार पेश किए। साथ ही भारत में पुलिस सुधार की धीमी प्रक्रिया पर भी चिंता व्यक्त की है। 1861 का पुलिस अधिनियम, 1977-81 का राष्ट्रीय पुलिस आयोग, रिबेरो समिति (1998 ), प्रकाश सिंह, दिशा निर्देश और मॉडल पुलिस अधिनियम 2006 का जिक्र भी उन्होंने किया। उन्होंने पुलिस सुधार की धीमी रफ्तार पर चिंता व्यक्त की है और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के बारे में बताया है।

प्रवीण कक्कड़ ने यह भी बताया है कि अच्छे अफसर लूप लाइन में क्यों चले जाते हैं या वीआरएस के लिए क्यों मजबूर किए जाते हैं। हमारे राजनीतिक सिस्टम की बुनावट ही ऐसी है। राजनेताओं के दबाव और पुलिस की निष्ठा के मुद्दे पर उन्होंने खुलकर विचार व्यक्त किए हैं और साथ ही दूसरे देशों की पुलिस के भी उदाहरण दिए हैं।

उन्होंने बताया कि केवल भारत में ही पुलिस पर राजनीतिक दबाव नहीं है पूरी दुनिया में है। उन्होंने यूएसए, यूके, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका के पुलिस प्रशासन के बारे में यह भी लिखा कि राजनेताओं की सत्ता के लिए धन उगाही, चंदा वित्तपोषण जैसे काम भी पुलिस की ड्यूटी में शामिल होते जा रहे हैं। यह कब हुआ किसी को समझ में नहीं आया, पर भ्रष्टाचार पूरी श्रृंखला खड़ी कर दी गई है। कई अफसरों पर भी ठप्पा लगा हुआ है कि वे फलां पार्टी के ढिकाना नेता के करीबी हैं। इससे सच्चे पुलिस अधिकारियों का काम बहुत कठिन हो गया।

छत्तीसगढ़ में तो एक पुलिस अधिकारी सरकार गिराने की साजिश में भी हो चुका है।

पुस्तक के अंत में उन्होंने अपने दिल की बात लिखी है कि पुलिस की नौकरी ने उन्हें आनंदित किया। देशभक्ति और जन सेवा का काम करने का मौका मिला। समय की पाबंदी और कर्तव्य के प्रति निष्ठा पुलिस प्रशिक्षण केंद्र में उन्होंने सीखा।

शिवना प्रकाशन ने की पुस्तक प्रकाशित की है और सबसे अच्छी बात है इस पुस्तक की भाषा। इतनी सरल, बोलचाल के शब्दों में जटिल विषय पर चर्चा करना आसान बात नहीं होती। यह पुस्तक उन सभी लोगों के लिए उपयोगी है जो भारतीय पुलिस व्यवस्था के बारे में जानना चाहते हैं। यह पुस्तक भारतीय पुलिस की वर्तमान स्थिति और इसके सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में जागरूक करती है। साथ ही, यह हमें पुलिस में सुधार के लिए आवश्यक कदमों के बारे में भी बताती है। पुलिस के बारे में शोध करने वालों के लिए बहुत उपयोगी है।

 

 


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