संजय स्वतंत्र।
ऋतु बदलने के साथ प्रकृति मुस्कुराती है। उसने हमें जीवन के हर मोड़ पर बढ़ना सिखाया है। हर संघर्ष के साथ हम जीना तो सीख गए, मगर मुस्कुराना भूल गए। खुशियों का पैमाना तय करते समय समाजशास्त्री इसे भावों से नहीं, विलासिता से जोड़ कर देखते हैं। इसलिए वे कभी मुस्कान की चर्चा नहीं करते। सोचिए जरा, अभावों में जीते बच्चों के चेहरे पर आखिर कहां से आती है मुस्कान? दूसरी ओर सब कुछ हासिल कर लेने के बाद भी लोगों के चेहरे पर मुस्कान नहीं।
दरअसल, हम सभी ने हथेलियों पर उलझी हुई लकीरों की तरह अपनी जिंदगी जटिल बना ली है। उन्हें सुलझाते-सुलझाते कब मुस्कान खो गई, इसका पता ही नहीं चलता। पैसे से क्षण भर के लिए खुशी जरूर मिलती है, लेकिन वह मुस्कान नहीं, जैसे अंबर पर खिला चांद टंका रहता है। जब आप प्रेम में होते हैं तो आपके चेहरे पर एक रूहानी मुस्कान होती है, लेकिन जैसे ही आप दैहिकता में उलझते हैं, वह मुस्कान गुम हो जाती है। यानी सच्ची मुस्कान के लिए मन का निर्मल होना जरूरी है।
चेहरे पर हर समय मुस्कान रहे, यह हमेशा संभव नहीं। क्योंकि यह भाव है और भाव की फितरत है कि वह हमेशा बदलता रहता है। मुस्कान हमेशा खिली रहे, इसके लिए वजह तलाश लीजिए। कुछ ऐसा कीजिए जिससे चेहरे पर मुस्कुराहट तिर जाए।
यह पानी पर लकीर खींचने जैसा मुश्किल जरूर है, पर नामुमकिन भी नहीं। गमों से समझौता कर मुस्कुराता हुआ इंसान मेरी नजर में आज के दौर का सबसे बड़ा योद्धा है। चुनौतियां उसे हरा नहीं सकतीं।
सच कहूं तो हमारी मुस्कान उस मिथकीय पक्षी की तरह होनी चाहिए जो अपनी ही राख से पुनर्जन्म लेने की शक्ति रखता है। यानी जीवन में कितने ही आंधी-तूफान आए। सब कुछ बिखर क्यों न जाए, लेकिन अपनी मुस्कान हम सहेज कर रखें। उसे कभी मरने नहीं दें। जीवन में संघर्ष एक समंदर की तरह है। कई बार इसका कोई ओर-छोर नहीं दिखता। इससे पार पाने के लिए हम हाथ-पांव मारते रहते हैं। एक जद्दोजहद के साथ जीवन जीते जाते हैं। तो क्या ऐसे में हमें हमेशा उदास रहना चाहिए? इसका जवाब है-नहीं।
अपने आसपास कुछ लोगों को आपने हमेशा हंसते-मुस्कुराते देखा होगा। कौन हैं ये लोग? मुश्किल हालात में भी ये कैसे मुस्कुरा लेते हैं? यह सहज सवाल है, जो अकसर मेरे मन में उठता है। एक बार अपने एक वरिष्ठ साथी को उनके पिता के अंतिम संस्कार के समय श्मशान घाट पर मुस्कुराते देख कर अचरज में पड़ गया। सोचने लगा कि ऐसे समय में भी वे मुस्कुरा रहे हैं? यह बात बाद में समझ आई कि उस समय अपने तमाम रिश्तेदारों और दफ्तर के नए पुराने साथियों को अपने बीच पाकर उनकी आंखें नम हो गई थीं। इसे उन्होंने भावनात्मक संबल के रूप में लिया और वे मुस्कुरा उठे।
हर सुबह बहुत सारी उदासियों का लबादा उतार कर मैं भी एक जिंदगी जीता हूं। दिन भर संघर्ष करते हुए मुस्कुराने का कोई मौका नहीं छोड़ता। रात गहरी होते ही उदासियां फिर मुझे घेरने लगती हैं। मगर उम्मीदों भरी सुबह के इंतजार में उन्हें तह लगा कर सिरहाने रख देता हूं। जी करता है कि इसे बांध कर किसी नदी में डुबो आऊं। यमुना पार करते हुए दिल ने कई बार यही चाहा कि नदी के बीचों-बीच अपनी उदासियां फेंक दूं। और इस भोली-सी चाह के साथ अकसर मैं मुस्कुरा लेता हूं। .......तो कई बार मासूम चाहत भी आपके चेहरे पर मुस्कान ले आती है।
जब मैं मेट्रो में सफर करता हूं तो हर शख्स के चेहरे पर एक कहानी पढ़ता हूं। वहां दबे पांव मुस्कुराहट तो आती है, मगर न जाने किन दबावों के बीच खो जाती है। आज जीवन के हर मोर्चे पर संघर्ष है। दाल-रोटी की जुगाड़ में लगे लोगों की मुस्कान महंगाई ने चुरा ली है। दंपतियों की मुस्कान गृहस्थी का बोझ संभालते-संभालते कहीं गुम हो गई है। बुजुर्गों की मुस्कान को उनके अकेलेपन ने लील लिया है। कोई पारिवारिक कलह से तो कोई जटिल बीमारियों के अवसाद में अपनी मुस्कान खो बैठा है। उज्ज्वल भविष्य बनाने के दबाव में युवाओं की मुस्कान भी फीकी हो गई है।
मुझे इस वक्त चार्ली चैपलिन की याद आ रही है जो लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट लाने के लिए न जाने कितनी अजीबोगरीब हरकतें कर बैठते थे। खुद बेशक दुखी रहे हों, मगर दुनिया भर के लोगों को हंसा कर इस संसार से विदा हुए। सोचिए जरा, हम लोगों को कौन याद करेगा, जब इस दुनिया से रुखसत होंगे। जीवन भर खुद रोने व औरों को रुलाने से बेहतर है कि दूसरों के चेहरे पर मुस्कुराहट बिखेर कर जाएं। कुछ ऐसा कर जाएं जिससे लोग आपको याद कर मुस्कुराएं।
आज जब दफ्तर के लिए चला तो यह तय कर लिया कि मैं किसी को कुछ दूं या न दूं, पर अपनी मुस्कान जरूर दूंगा। क्या पता मैं किसी के मुस्कुराने की वजह बन जाऊं। ........अभी मैं बस स्टाप पर खड़ा हूं। एक बैटरी रिक्शावाला आता दिख रहा है। जैसे ही वह मेरे सामने रुका, मैंने उस पर भरपूर मुस्कान बिखेर दी है। वह मुझे देख कर मुस्कुराने लगा है। चारों सीटों पर यात्री बैठे हैं। कहां बैठूं मैं? मुझे उलझन में देख कर वह बोला- आइए मेरे बगल में बैठ जाइए। मैं किसी को बैठाता नहीं, मगर आपको इनकार करते नहीं बन रहा। आइए न.......आजादपुर मेट्रो स्टेशन उतार दूंगा। उसके आग्रह को ठुकरा नहीं पा रहा हूं।
आज पहली बार लग रहा है कि मुस्कुरा कर आप अजनबी का भी दिल जीत सकते हैं। दुश्मन को तो हरा ही सकते हैं, नए दोस्त भी बना सकते हैं। बैटरी रिक्शे वाले ने मुझे स्टेशन के गेट पर उतार दिया है। यहां यात्रियों को निर्विकार भाव से जाते हुए देख रहा हूं। कभी-कभी तो वे भावशून्य लगते हैं। खुद में खोए, न जाने क्या सोचते हुए। सबको जल्दी है। सभी को कहीं न कहीं जाना है। मंजिल का कोई अंत ही नहीं। .......मैं प्लेटफार्म नंबर एक पर आ गया हूं। यहां मुस्कुराता हुआ कोई यात्री मुझे नहीं दिख रहा। शायद उनके पास मुस्कुराने की कोई वजह नहीं।
हुडा सिटी सेंटर जाने वाली मेट्रो आने की उद्घोषणा हो रही है। मैं कोच समाप्ति स्थल के सामने खड़ा हूं। लास्ट कोच का दरवाजा मेरे सामने खुल गया है। आखिरी डिब्बे में मुझे हमेशा की तरह कोने की सीट मिल गई है। इस बीच मेरे मोबाइल की घंटी बज उठी है। अरे, यह तो उज्ज्वला की कॉल है। स्क्रीन पर नाम चमक रहा है- डॉ. उज्ज्वला कॉलिंग। मैंने कॉल रिसीव करते ही पहला सवाल किया-इतने दिनों बाद याद किया। कहां थी तुम। ‘.....कहां जाऊंगी। यहीं हूं। घर से नर्सिंग होम और नर्सिंग होम से घर। एक मेडिकल रिसर्च में फिर से बिजी हो गई थी। उसने जवाब देते हुए पूछा- मगर आप कहां खोए हैं? न कोई मैसेज और न कोई कॉल। लगता है आपकी मुस्कान गायब हो गई है।’
डॉ. उज्ज्वला की इस बात से मैं चौंक गया हूं। यूं ही पूछ लिया-तुमने मुझे कब उदास देखा? उसका जवाब है- ओहो....., जैसे कि मैं जानती ही नहीं। इंस्टाग्राम पर फोटो अपडेट में आप जबर्दस्ती मुस्कुराने की कोशिश कर रहे हैं। इन दिनों जीवन से खुश नहीं हैं क्या। मैंने जवाब दिया- हम में से ज्यादातर लोग खुश नहीं हैं। मैं खुश नहीं तो क्या? इस पर उज्ज्वला ने मुझे टोकते हुए कहा- मगर आप तो हमेशा मुझे खुश रहने और मुस्कुराने की नसीहत देते हैं। पर खुद गंभीर हो जाते हैं। ऐसा क्यों करते हैं आप। इस पर मैंने कहा-तुमने मुझे कई दिनों से देखा नहीं है न। इसलिए ऐसा कह रही हो। मैं तो मुस्कुरा कर सबका दिल जीत लेता हूं। उज्ज्वला ने हंसते हुए कहा- देख रही हूं आप कितना मुस्कुराते हैं। ...... फिर उससे कई मुद्दों बातें पर होती रही। इस बीच कई स्टेशन निकल चुके हैं।
......अगला स्टेशन सिविल लाइंस है। दरवाजे बायीं ओर खुलेंगे। कोच में उद्घोषणा हो रही है। स्टेशन पर मेट्रो रुकते ही दो युवतियां दाखिल हुई हैं। कोई सीट खाली न देख वे दरवाजे के किनारे खड़ी हो गई हैं। दोनों की मोहक मुस्कान ने बरबस ध्यान खींच लिया है। वे आपस में बात कर रही हैं। एक ने दूसरी से कहा- तू इतना मुस्कुरा कैसे लेती है? ‘.....क्या करूं। मुस्कुरा के सभी गमों से लड़ लेती हूं। रोनी सूरत बना कर मिलेगा भी क्या। अपना तो यही फंडा है सखी कि हमेशा मुस्कुराते रहो।’ दूसरी ने कहा।
सखी की बात सुन कर पहली वाली युवती ने कहा-‘बात तो तू ठीक कह रही है। मगर इस मुस्कुराहट से कई बार गलतफहमी भी पैदा हो जाती है।’ ‘...... वो कैसे?’ उसकी सहेली ने हैरान होते हुए पूछा। दूसरी सहेली ने कहा-क्या बताऊं तुझे। पड़ोस में एक लड़का है। जिससे मुस्कुरा कर मैं बात कर लेती थी। कुछ दिनों बाद उसे लगने लगा कि मैं उससे प्रेम करती हूं। मेरे लिए तो मुस्कुराना ही भारी पड़ गया। ......फिर क्या हुआ। बता न। पहली वाली युवती ने पूछा तो सहेली ने कहा- होना क्या था। उसे समझाना पड़ा कि मैं तो सबसे हंस-बोल लेती हूं। इसका मतलब यह नहीं कि मैं प्रेम करती हूं। फिर वह समझ गया......।
कोने की सीट पर बैठा हूं। इसलिए इन दोनों की बात सुन पा रहा हूं। सोच रहा हूं कि क्या हर मुस्कान के अलग-अलग मायने हैं। पुरुष मुस्कुराए तो कुछ, स्त्री मुस्कुराए तो कुछ और? बच्चों की मुस्कान और उनकी किलकारी तो किसी भी मांं के जीवन में खुशियां घोल देती हैं। उनकी मुस्कुराहट से घर की बगिया खिल उठती है। वहीं बुजुर्ग की मुस्काराहट एक आशीर्वाद की तरह है। वे मुस्कुराते हैं तो घर मुस्कुराता है। यानी मुस्कान हम सब के लिए एक अमृत है। इससे आप स्वस्थ रहते हैं। जबकि चेहरे पर विषाद का भाव विष की तरह है, जो धीरे-धीरे मनुष्य को खत्म करने लगता है और उसे कई बीमारियां घेरने लगती हैं। आप खुश रहते हैं, तो सकारात्मक रहते हैं। आपको जीवन का लक्ष्य तय करने की ताकत मिलती है।
क्या कभी आपने कुटिल मुस्कान देखी है? .......और वो कातिल मुस्कान? खैर छोड़िए। विषय लंबा हो जाएगा। मेरे सोचने के क्रम में उद्घोषणा हो रही है-अगला स्टेशन राजीव चौक है। दरवाजे बायीं ओर खुलेंगे।
मैं सीढ़ियों की ओर बढ़ रहा हूं। यह दिल्ली का सबसे व्यस्त स्टेशन है। आते-जाते यात्रियों में अकसर मुस्कान ढूंढ़ता हूं। मगर ज्यादातर में वह दिखती नहीं। अलबत्ता सपने देखने वाली लड़कियां जरूर मुस्कुराती हैं। कभी किसी मित्र के साथ, तो कभी मोबाइल पर उनसे बतियाते हुए। लेकिन जरूरी नहीं कि वे प्रेम में डूबी हों। हमें अब इसे सहजता से लेना चाहिए।
.....मुझे इस वक्त हिंदी सिनेमा की वह नायिका याद आ रही है, जिससे एक नौजवान को प्रेम हो जाता है। बॉलीवुड की नस-नस से वाकिफ यह युवक विदेश से अंतरराष्ट्रीय अध्ययन कर मुंबई लौटी इस युवती की प्रतिभा और सौंदर्य से प्रभावित होकर उसे सिनेमा में काम दिलाने के लिए दिन-रात जद्दोजहद करता है। युवती को साथ लेकर स्टूडियो के चक्कर लगाता है। फिल्म निर्माताओं से मिलता है। आखिरकार उसे सफलता मिलती है। युुवती को भूमिकाएं मिलने लगती हैं। उसकी मुस्कान से मोहित नौजवान एक दिन उससे विवाह का प्रस्ताव रख देता है। इस पर वह युवती नाराज हो जाती है और कहती है कि मैने तुम्हें मुस्कुराते हुए हर मुलाकात में चुंबन ले लिया और बांहों में भर लिया, तो इसका ये मतलब नहीं कि मैं तुमसे प्रेम करती हूं। मैं जिस परिवार से आती हूं वहां ‘किस’ करना या ‘हग’ करना तो मामूली बात है। तुम इसे प्रेम समझ बैठे। ........इस आखिरी मुलाकात के बाद युवक पागल हो गया। और महीनों समंदर किनारे बैठे उन पलों को याद करता रहा। उस युवती ने बाद में किसी अमीर लड़के से शादी कर ली।
मैं इस समय प्लेटफार्म नंबर तीन के आखिरी छोर पर खड़ा हूं। नोएडा सिटी सेंटर की मेट्रो आती दिख रही है। ......आखिरी डिब्बे का अंतिम दरवाजा मेरे सामने खुल गया है। कोई सीट खाली नहीं। ज्यादातर पर स्कूलों के बच्चे बैठे हैं। इनको देख कर मुझे अपने स्कूल के दिन याद आ रहे हैं। मुझे मुस्कुराते देख कर मेरे सामने बैठा बच्चा सीट से उठ गया है। मुस्कुराते हुए कह रहा है- आप बैठ जाइए अंकल। इस पर मैंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा- नहीं तुम बैठो। मैं आफिस में घंटों बैठ कर काम करता रहता हूं। कुछ देर खड़े रह लेने दो यार। इस पर सभी बच्चे मुस्कुरा पड़े। .......मेट्रो अपनी मंजिल की ओर बढ़ चली है।
मेरे बगल में ही दरवाजे के पास एक युवा दंपति ने खड़े होने की जगह बना ली है। दोनों गुमसुम हैं। उनमें कोई संवाद नहीं। बाराखंबा और मंडी हाउस स्टेशन पार करने के बाद भी दोनों खमोश ही रहे। युवती की कलाइयों में भरी-भरी लाल चूड़ियां देख कर तो यही लग रहा है कि इन्हें वैवाहिक सूत्र में बंधे कोई ज्यादा दिन नहीं हुए। मगर अभी से दोनों के बीच खामोशी क्या कह रही है? अमूमन नवयुगल उमंग से भरे और चहकते-मुस्कुराते दिखते हैं। इनके बीच ऐसा क्या हो गया है। .....अगला स्टेशन प्रगति मैदान है। इस उद्घोषणा ने उनकी चुप्पी तोड़ दी है।
नवविवाहिता कह रही है- तो तुम मुझसे बात नहीं करोगे? किस बात से नाराज हो तुम। .......उसकी पलकें भीग उठी हैं। युवक उससे मुंह फेर कर खड़ा रहा। .....आखिर मैंने ऐसा क्या कह दिया। और ऐसी कौन सी बात है जो नहीं मानी तुम्हारी। बोलो जरा......। युवती ने उसके कंधे पर हाथ धरते हुए कहा। एक लंबी खामोशी के बाद युवक पिघल गया है। वह मुस्कुराने लगा है। फिर धीरे से कहा- तुम हमेशा गंभीर क्यों रहती हो। हमारी अभी शादी हुई है। तुम्हें तो खुश दिखना चाहिए। कोई समस्या तो नहीं मुझसे? मैं झूठमूठ नाराज होकर ये देखना चाहता था कि तुम हंसोगी कब। यह सुन कर युवती मुस्कुरा पड़ी है। और उसने उसके कंधे पर अपना सिर टिका दिया है। युवक कह रहा है- ये हुई न बात। देखो आज तुम कितनी सुंदर लग रही हो। .... हां तुम्हारे चेहरे में खुद को देख रही हूं। युवती ने शर्माते हुए जवाब दिया।
इस बीच हमारी मेट्रो दो स्टेशन पार कर चुकी है। उद्घोषणा हो रही है- अगल स्टेशन अक्षरधाम है। दरवाजे बायीं ओर खुलेंगे। वह युवक कह रहा है- चलो अक्षरधाम आ गया। आज पूरा दिन हम यहीं रहेंगे। फिर शाम को लौटेंगे। तुम्हारे चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट रहे, आज यही प्रार्थना करूंगा। इस पर युवती ने पलकें झुका कर मानो शुक्रिया अदा किया। फिर बोली- सब सुन रहे हैं। अब चुप भी रहिए। मैं मुस्कुरा रही हूं ना? ....... दरवाजे खुल गए हैं। मैं युगल को जाते हुए देख रहा हूं। उज्ज्वला की बातें याद आ रही हैं। दूसरों को नसीहत देना कितना आसान है। मैं खुद अकसर मुस्कुराना भूल जाता हूं। मगर हम छोटी-छोटी बातों पर तो मुस्कुरा ही सकते हैं। जैसे इस नवयुगल की बातें सुन कर मैं अभी मुस्कुरा रहा हूं।
.......मेट्रो चल पड़ी है अपनी मंजिल की ओर। मुस्कुराने की कोई वजह तलाशने के लिए मैंने फिलहाल अपने मोबाइल का एफएम रेडियो आॅन कर लिया है। क्या पता कोई प्यारा गीत सुन कर मुस्कुरा पड़ूं। लीजिए मेरी पसंद का पुराना गीत बज रहा है। आप भी सुनिए। शायद आपको भी मुस्कुराने की कोई वजह मिल जाए। चलते-चलते बता दूं कि मेरे होंठों से उदासियों के सूखे फूल अब झड़ रहे हैं। मेरे भीतर डहेलिया खिल रहा है। -
गीत गाता हूं, गुनगुनाता हूं मैं
मैंने हंसने का वादा किया था कभी
इसलिए अब सदा मुस्कुराता हूं मैं.....।
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