हम जीतकर रो क्यों देते हैं ?

वीथिका            Dec 13, 2024


हाफिज किदवई।

हम जीतकर रो क्यों देते हैं? वह आंखे,जो हमेशा लक्ष्य पर टिकी होती हैं, जब लक्ष्य को प्राप्त करती हैं, तो छलक क्यों पड़ती हैं। मुझे जीतने के बाद झरते आँसुओं में छिपे इंसान को देखने का शौक रहा है। मैं इन आंसुओं में गूंथे उसके संघर्ष को देखता हूँ। उसने इसे पाने के लिए क्या क्या नही किया होगा। ज़िन्दगी का सारा संघर्ष, इन आँसुओं के साथ बह उठता है। जब कोई जीतकर रोता है, तब उसकी जीत में छिपी सच्चाई सामने आकर,उसकी गवाही देती है।

गुकेश डी ने एक सपना देखा और उसके लिए टूटकर संघर्ष किया। बड़ी ही कम उम्र में,सफ़लता का झंडा गाड़ दिया। गुकेश को देखकर, उसकी जीत,उसकी जीत से भीगी आंखे देखकर तबियत बड़ी खुश हुई। मुबाकबाद है उसकी इस विजय को मगर हमें ख़ुद को यहीं टटोलना होगा। गुकेश कि जीत गुकेश के ख़ुद के सपनो की जीत है। वह सपना,जो उसने ख़ुद देखा था। बस यहीं उस फ़र्क़ को पकड़ना है।

बहुत से लोग गुकेश के सपने को अपने मन में रोप देंगे और यहीं से वह अपने बच्चों में रोप देंगे। फिर एक बेतहाशा भीड़ उछाल मारेगी,ऐसी सफलताओं को अपनी दहलीज़ तक लाने के लिए,बस यहीं पर हमें अपनी सोच को सही रखना है! गुकेश कि तरह अपने बच्चों को खुद अपने सपने बुनने दीजिए। उसे पूरा करने के लिये उसके सारथी बनिये। जब आपका बच्चा अपने सपने को पूरा करेगा,तो उसकी आँखों में भी ऐसे ही तो आंसू होंगे मगर दोस्त,उसकी आँखों में अपना सपना मत बो देना!

बच्चे की आंखों में परिवार का बोया सपना बड़ा भारी होता है। वह सपना बच्चे को बूढ़ा कर देता है। उसे थका देता है। दूसरों का सपना,सबसे पहले बचपन चट कर जाता है। बस इतना कीजिये, दूसरों की सफलता पर अपने बच्चों की सफ़लता जैसी खुशी प्रकट कीजिये। अपने बच्चे की सफलता,असफलता या रास्ते पर चलने का ऐसे ही आनंद लीजिए,जैसे उसका रास्ता,सिर्फ उसका है और उसने उसपर चलना शुरू कर दिया,चलते रहना भी तो एक सफलता ही है।

गुकेश की जीत,हम सबके लिए खुशी का पल है। इस जीत की खुशी घर घर पहुँचे मगर यही लक्ष्य,सब दहलीज़ पर न पहुँचे। ज़िन्दगी के हज़ार रँग,हज़ार सफलताएँ हैं। जिस काम को पूरा करने में आपकी आंखों में आँसू आ जाए,वह काम और गुकेश कि सफ़लता एक जैसी है। बस एक के आंसू ख़बर हैं, दूसरे के नही मगर बहते आंसू तो काम एक सा करते हैं।

आपको थोड़ा हल्का कर देते हैं.... गुकेश को शुभकामनाएं..

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