अनामिका।
राजिम कुंभ का यह 12वां वर्ष है। 12 वर्षों का भारतीय जीवन में विशेष महत्व होता है। 12 वर्षों के अंतराल में देश के चार प्रमुख तीर्थस्थानों पर कुंभ का आयोजन किया जाता है। छत्तीसगढ़ के राजिम में यह उत्सव हर वर्ष माघी पूर्णिमा से आरंभ होकर महाशिवरात्रि पर पूर्ण होता है। इस बार का राजिम कुंभ विशेष महत्व लिए हुए है इसलिए राजिम कुंभ कल्प-2017 का नाम दिया गया है। राजिम कुंभ लोगों के मन की सहज श्रद्धा, उनके जीवन की सहज आस्था, सामान्य उल्लास लगने वाले जीवन को अद्भुत उल्लास और पूर्णता से भर देता है। एक ओर जहाँ श्रद्धा के भाव से भरे होते हैं तो दूसरी तरफ मेले के उल्लास के चटख रंग भी यहाँ मौजूद हैं। राजिम कुंभ अपने होने में भारतीय मानस और भारतीय जीवन के रंग-बिरंगे मेले के रूप में मन मस्तिष्क पर छा जाता है।
कुंभ स्नान का अपना महत्व है और इस स्नान का धार्मिक दृष्टि से अपनी तरह का पुण्य। भारत में चार स्थानों पर प्रत्येक बारह वर्षों में कुंभ का आयोजन होता है और बीते 12 से लगातार हर वर्ष कुंभ का आयोजन कर छत्तीसगढ़ ने धार्र्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से छत्तीसगढ़ की पावन धरा से आम आदमी का साक्षात्कार कराया है। आज से 12 वर्ष पहले राजिम का चयन कुंभ के आयोजन के लिए चयन किया गया था। यह वह स्थान है जहां तीन नदियों का संगम है।
सोंढूर, पैरी और महानदी के त्रिवेणी संगम-तट पर बसे छत्तीसगढ़ की इस नगरी को श्रृद्धालु श्राद्ध तर्पण, पर्व स्नान और दान आदि धार्मिक कार्यों के लिए उतना ही पवित्र मानते हैं, जितना कि अयोध्या और बनारस को। तीनों नदियों के संगम पर हर वर्ष न जाने कब से आस-पास के लोग राजिम कुंभ मनाते आ रहे हैं। राजिम कुंभ के त्रिवेणी संगम पर इतिहास की चेतना से परे के ये अनुभव जीवित होते हैं। हमारा भारतीय मन इस त्रिवेणी पर अपने भीतर पवित्रता का वह स्पर्श पाता है, जो जीवन की सार्थकता को रेखांकित करता है। अनादि काल से चली आ रहीं परम्पराएँ और आस्था के इस पर्व को राजिम कुंभ कहा जाता है..छत्तीसगढ़ का उल्लेख आते ही राजिम कुंभ का उल्लेख सर्वप्रथम होता है। 12 वर्ष पहले आरंभ हुए राजिम कुंभ ने छत्तीसगढ़ को पृथक पहचान दी है। आज 12वें वर्ष में जब राजिम कुंभ का आयोजन हो रहा है तब छत्तीसगढ़ के साथ पूरा संसार धर्म और आध्यात्म में डुबकी लगाने को तैयार है। राजिम कुुंभ की तिथि हर वर्ष पहले से तय रहती है।
राजिम छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित हैं. धार्मिक एवं सांस्कृतिक नज़रिये से राजिम एक ऐतिहासिक नगर हैं। यहाँ 8वीं-9वीं शताब्दी निर्मित राजीव लोचन मंदिर हैं। ऐसी पौराणिक मान्यता हैं कि़ जगन्नाथपुरी की यात्रा तब तक पूरी नहीं होती जब तक इस मंदिर का दर्शन ना किया जाये. संगम के बीचो-बीच कुलेश्वर महादेव का मंदिर हैं। वैष्णव संप्रदाय के प्रवर्तक ‘महाप्रभु वल्लभाचार्य’ का जन्म भी राजिम से लगे चंपारण में हुआ था। राजिम ऐतिहासिक रूप से शैव एवं वैष्णव संप्रदाय की मिश्रित भूमि हैं. श्रद्धालुओं के लिये श्राद्ध, पिंड दान, धार्मिक कार्यों के लिये राजिम का त्रिवेणी संगम प्रयाग के संगम जितना ही पवित्र हैं।
12 वर्ष पहले प्रयाग के रूप में पहचाने जाने वाले राजिम को देश के संतों ने कुंभ का दर्जा दिया साल-दर-साल राजिम कुंभ वैभव का प्रकाश धर्मालुओं को आलौकित करता आ रहा है। धर्म, अध्यात्म और विज्ञान के इस सालाना अनुष्ठान का उपक्रम शुरू हो चुका है। राजिम कुंभ सदा से ही भारतीय मानस के गहरे अर्थों को रेखांकित करता रहा है। वह भारतीय जीवन के उल्लास पक्ष को भी दिखाता रहा है। शंकराचार्य, महामंडलेश्वर, अखाड़ा प्रमुख तथा संतों की अमृत वाणी को लोगों ने जब ग्रहण किया, तो दुनिया के नये अर्थ सामने आए। उनका यहाँ एकत्र होना बताता है कि राजिम में त्रिवेणी पर कुंभ है और राजिम कुंभ के पावन पर्व की अनुभुति को गहराई प्रदान करते हैं। 10 फरवरी से शुरू हुये इस आयोजन को इस बार राजिममहाकुंभ कल्प-2017 नाम दिया गया है। कुंभ के 12 वर्ष पुरे होने पर इस वर्ष विशेष तैयारियां की गयी हैं। इस वर्ष तीन शाही स्नान होंगे। 24 फरवरी महाशिवरात्रि के शाही स्नान के साथ यह कुंभ समाप्त होगा। लोगों की मान्यताएं हैं कि राजिम संगम में स्नान करने से सारे रोग, सारे पाप से मनुष्य मुक्त हो जाता हैं।
राजिम कुंभ छत्तीसगढ़ के लिए महज एक उत्सव नहीं है और ना ही कोई धार्मिक मेला बल्कि यह अनुष्ठान है जीवन के उस प्रकल्प का जो इस नश्वर शरीर को परमात्मा से मिलाता है। ऐसा मानना है उन दिव्य गुरुजनों का जिन्होंने अपना जीवन ईश्वर को सौंप दिया है। ऐेसे दिव्य गुरुओं के आश्रय में छत्तीसगढ़ की जनता धन्य धन्य हो जाती है और जीवन के वास्तविक अर्थों को समझ कर जीने का प्रयास करती है।
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