विधुलता।
औरत का यह अंक मध्यप्रदेश की 4 प्रमुख जेल में उम्रकैद सज़ायाफ्ता औरतों की कथाओं पर आधारित है,वे क्योंकर अपराधी घोषित हुई। अपराध के समय उनकी सामाजिक आर्थिक और पारिवारिक स्थितियां क्या थी?मनुष्य जीवन लेते ही क्या वो उन सुख सुविधाओं को हांसिल कर पाई जिनकी वो हक़दार थी आखिरकार चलते चलते वो इस अंधे मोड़ पर कैसे पहुंची?
पहली दृष्टी में घर परिवार,समाज,न्यायपालिका,पुलिस प्रशासन की दोषी है -क्या वो निरपराधी है? ये ऐसा मुद्दा है जिस पर सख्ती से ध्यान दिया जाकर निराकरण करने की आवश्यकता है जिसके बिना पर स्वस्थ समाज की कल्पना बेमानी होगी।
अक्सर केवल नकारात्मक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने से भय और चिंता का दुष्चक्र पैदा हो जाता है। यदि मानवीय पक्षधरता के मद्देनजर देखें तो हम मित्रता और दया का वातावरण बनाने में मदद कर सकते हैं और तभी हम अपने आस पास के लोगों के साथ अपनापन महसूस करते हुए अन्याय को रोकने में अधिक तत्पर होते हैं जो समाज में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में एक प्रभावी कदम बन सकता है।
हालांकि इन महिलाओं से बात करते हुए गम्भीर आकलन यही है ढेरों क़ानून, आवाज़ों, सामाजिक संगठनों, भाषणों नारों बुलन्द आवाज़ों के बावजूद उसकी स्थिति ,वातावरण,पति, बच्चे,और उसका संसार मामूली परिवर्तन के साथ जहाँ के तहॉं हैं औरत के इस अपराध अंक से।
भोपाल की वरिष्ठ पत्रकार विधुलता पिछले 16 सालों से लगातार औरत नामक पत्रिका प्रकाशन कर रही हैं। इस बार अपनी पत्रिका में उन्होंने लगभग अनछुये विषय को छुआ है वह है जेलों में बंद महिला कैदी। विधुलता ने पत्रिका के आगामी अंक का परिचय फेसबुक पर दिया उन्हीं के फेसबुक वॉल से
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