आशीष चौबे।
सर्दी जवां थी...बच्चो की भारी मांग और मौसम की नजाकत समझते हुए श्रीमती जी ने कड़ाही में 'पकोड़े' तैरा दिए। 'पकोड़े' भी अपनी वेल्यू समझते हुए गर्म कड़ाही में गोते लगाने लगे.। महक ने अपना दायरा बढ़ाया तो दूसरे कमरे में डटे बच्चों ने भी रसोई का रुख कर लिया..। बच्चों को सब्र न था बस जल्दी से गर्मा गर्म पकौड़ों को पेट के हवाले करने की बेक़रारी थी..। बच्चे खुश तो माँ दुगनी खुश..अपने कद को देखकर पकौड़े भी गर्म में तेल में तलने की पीड़ा सहने के बाद भी बेहद खुश...।
दरवाजे पर डेरा डाले घँटी चीखी। दरवाजा खुला तो घर के मुखिया भाजपा नेता का आगमन हुआ। मस्त महक ने नेता जी की नाक में बिना देर किए अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी...।
नेता का पारा आसमान पर..लगभग श्रीमती जी पर चीख ही पड़े ..बच्चे भौंचक तो श्रीमती जी दहशत में....'अरे हुआ..क्या ?
'तुमने पकौड़े कैसे बना लिए.. मज़ाक बना रही हो...विपक्ष की तरह चिढ़ा रही हो..तुम मेरी पत्नी हो शर्म आना चाहिए..' नेता जी गुर्राए जा रहे थे...परिवार समझने की मशक्कत में लगा था कि आखिर मसला क्या है...।
माहौल वहां भी जुदा न था..सिर्फ नेता विपक्ष दल के थे...घर में पकौड़े बनना इन्हें भी रास न आया..ऊंची आवाज बीबी की कानो में चुभ रही थी..'तुम भी मोदीयापे में शामिल हो गई..पकौड़े बनाकर सत्ता का समर्थन कर रही हो..पकौड़े बनाना या खाना भी कोई अहमियत रखता है..यह पकौड़े नही बल्कि देश का अपमान है..।'
घरो के मुखियाओं को पकोड़े रास नही आ रहे थे और इधर पकोड़े उदास समझने की कोशिश कर रहे थे कि आज तक जो नेता जी गपागप खाकर चटखारे भरते थे..आज वह पकोड़े दुश्मन जैसे क्यों बन गए..?
ठंडे पड़ते पकोड़े ने आह भरी.. उफ्फ..देश की सरहद पर जवान शहीद हो रहें हैं..कई लोगो को पेट भर भोजन नसीब नही है..छत से महरूम है लोग..शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का टोटा है..घन्धे चौपट हैं..महंगाई चरम पर... और यह सियासतदां मुझ पर टूट पड़े..गाय की तरह मुझे भी राजनीति का मोहरा बना दिया...।
राजनीति का शिकार पकौड़ा बेहद उदास था...समझ चुका था कि नेताओं के चंगुल में फंस गया है..अब उसे 'खाया' कम जाएगा बल्कि उसको लेकर 'गाया' ज्यादा जाएगा।
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