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मूर्खाधिकार का हनन सबसे बड़ा पाप है

वीथिका            Mar 31, 2017


 संजय जोशी सजग।
मूर्खों पर सही शोध आज तक न होने से मूर्ख और मूर्खता पर रहस्य बरकरार है? आज तक मूर्ख की एक परिभाषा तक सही नहीं दे पाए,हमारे जगत के बुद्दिजीवी भी क्या करें ? मूर्ख और मूर्खता के स्तर पर जाने की हिम्म्त कौन और कैसे करे। सिर्फ कुछ लक्षण के आधार पर जिन्हें मूर्ख समझा या माना गया वो कई बार गलत सिद्ध हुआ। सबसे बढ़िया उदाहरण कालिदास का दिया जाता है कि वे जिस डाल पर बैठते थे वही डाल काटा करते थे। पर उन्होंने संस्कृत में जो साहित्य रचा उसकी बराबरी कौन कर पाया या कर पाया। न्यूटन के भी कुछ मूर्खता के किस्से पढ़ने और सुनने को मिलते हैं लेकिन महान वैज्ञानिक न्यूटन की खोज का कोई सानी नहीं है। इससे यह सिद्ध होता है कि मूर्खो में सर्वाधिक कल्पनाशीलता होती है शायद इसीलिए उन्हें मूर्ख कहा जाता है।

महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइन्स्टीन ने कहा था, “दुनिया में दो चीज़ अनंत हैं, एक है ब्रह्माण्ड और दूसरी है मानव की मूर्खता! कितनी छोटी मगर बड़े महत्व की बात बोल गए थे। मूर्खता दो पाये के लिए प्रकृति का उपहार या वरदान? अभी तक इस पर सही राय तक नहीं पहुंचा जा सका है या दिल से प्रयास ही नहीं हुए? अब प्रयास कौन करे? और क्यों करे?क्योंकि मूर्खता भी आजकल आनलाइन होने लगी है और हम देख कर खीसें निपोरकर हंस कर टाल जाते हैं। उसकी मूर्खता पर सोचने और याद करने का समय किसी के पास नहीं है। यूँ ही पासवर्ड और पिन याद रखकर पगलाए जा रहे हैं।

चार यार जहां मिल जाए वहां मूर्खता पीछा कैसे छोड़ सकती है?और फिर मूर्ख दिवस आने वाला हो तो कई लोग तो यूँ ही भुर्रा जाते है। मैंने पूछा क्या कहना है 1 अप्रेल को अंतर्राष्ट्रीय मूर्ख दिवस के उपलक्ष्य में?

एक मित्र कहने लगा कि,अपनी मूर्खता का आत्म ज्ञान ही बुद्दिमानी की निशानी की पहली सीढ़ी है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता आप कितने ज्ञानी है फर्क इससे पड़ता है कि आपमें मूर्खता का प्रतिशत कितना है। जो सबमें होता है और इस धरा पर जब तक मनुष्यता रहेगी तब तक मूर्खता भी रहेगी। इनका चोली दामन का साथ है। अपनी मूर्खता भी हमें अच्छी लगती है और हम हास परिहास में उसे छुपा जाने का असफल प्रयास करने का अभिनय तो कर लेते हैं पर मूर्खता छिपाए नहीं छिपती।

पूरी तरह बॉस कि मूर्खता पूर्ण बातो पर हाँ में हाँ मिलकर मूर्खता में भी शामिल हो जाते हैं क्योंकि व्यक्तित्व निर्माण में सिखाया जाता है कि बॉस इज़ आलवेज राइट,न मानो उसे राइट तो रोज करता है टाइट। किसी ने सही ही तो कहा है कि मूर्ख से कभी बहस मत करो वह आप को अपनी मूर्खता के स्तर पर लाकर अपने दीर्घ अनुभव के आधार पर हरा देगा। वैसे भी मूर्ख की समझदार बनाना मतलब सीधे भगवान से लड़ाई मोल लेने जैसा है,क्योंकि उसे ईश्वर ने बड़े ही जतन से वैसी बुद्धि् बनाई।

दूसरा मित्र ऐसे विषय पर कैसे चुप रहता वह कहने लगा,हर बुद्दिमान स्त्री मूर्ख पति पर गर्व करती है हर स्त्री परम बुद्दिमान होती है। अच्छे भले पति को कालिदास बनाकर रखने में ही अपनी ख़ुशी समझती है। पर डिजिटल युग के कालिदास कम नहीं है पत्नी को इतना मूर्ख बना देते हैं कि वह मूर्खता से अपनी परम बुद्दि के कारण दिग्भ्रमित होकर मूर्खासन करने लगती है। मैं भी इस पीड़ा से पीड़ित हूँ बताओ क्या करूं?

तीसरा मित्र बोला,नेता लोग भी जनता को पूरी तरह मूर्ख मानकर ऐसे -वेसे वादे क़र चुनाव जीतकर वोटर की मूर्खता पर अट्टहास कर बाबाजी का ठुल्लू दिखा देते हैं और जनता अपनी मूर्खता के कारण दूसरों को कब तक कोसती रहेगी? यह ज्वलंत प्रश्न आजादी के बाद से ही चला आ रहा है। मूर्खो पर महामूर्ख आसानी से अपनी पकड़ से जकड़ लेते हैं। थ्री इडियट फिल्म के बाद तो मूर्ख भी इठलाने लगे,अपने आप को समझदार मानने वाले भी इडियट शब्द से प्यार करने लगे और इडियट सुनकर गौरव की अनुभूति करने लगे हैं।

बेफिक्री मूर्खो का प्रमुख लक्षण है] अपनी मूर्खताओं के साथ मदमस्त रहना ज्यादा पसंदीदा गुण मानता है। लोगों को ऐसा भ्रम रहता है कि मूर्ख में अक्ल नहीं रहती है बल्कि डेढ़ अक्ल रहती है मूर्ख सिवाय मूर्खता के कुछ नहीं कर सकता है मैं स्वयं को भी इसी श्रेणी में मानता हूँ। और तो और देश में कई जगह मूर्खता को मनुष्य का मुख्य लक्षण मानकर अप्रेल को बड़े-बड़े सम्मेलन का आयोजन होना इस बात का द्योतक है कि मूर्खता हंसी और खीझ दोनों उत्पन्न करने में सक्षम है। मूर्ख,महामूर्ख,टेपा और खांपा सम्मेलन में यही तो सब होता है मूर्खता का प्रदर्शन कर सब में छुपे हुए इस गुण के प्रति नत मस्तक हो जाते हैं।

मैंने कहा कि आप सबका इस विषय पर परम ज्ञान जानकर मैंने भी मान लिया कि मूर्खता को मानवाधिकार मानते हैं। मूर्खाधिकार का हनन सबसे बड़ा पाप है फिर भी करते हैं क्योकि वे अपने आप को मूर्खशिरोमणि समझते हैं। मूर्ख सर्वव्यापी है, यही तो आपधापी है। मूर्खता के कारण कई समस्या और नुकसान का अंदेशा बना रहता है। फिर भी यह शाश्वत सत्य है कि मूर्ख कभी भी जान बूझकर हानि नहीं पहुंचाते हैं यह उनकी मूर्खता का परिणाम रहता है। मूर्खता वरदान और अभिशाप दोनों ही है। पुरे विश्व में मूर्खो द्वारा मूर्खता करना जन्म सिद्ध अधिकार है। मूर्खता अमर रहेगी और हम ऐसे ही अप्रैल फूल मनाते रहेंगे।

पता:78 गुलमोहर कालोनी रतलाम [म.प्र]

 



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