हम एक ऐसे भारत में हैं जहां पेंडुलम हिलाने की अब जरूरत है

खरी-खरी            Jan 28, 2018


पेरी महेश्वर।
मैं राहुल गांधी और उन्हें राजनीति में ढकेलने की सोनिया गांधी की इच्छा का कट्टर विरोधी रहा हूं। उन्हें सत्ता सौंपने की सोनिया गांधी की चाहत, जो हरेक अभिभावक रखते हैं, को नापसंद करता रहा हूं। यह 2017 के शुरू तक था। इसके बावजूद वे आगे बढ़ती रहीं और चुनाव का अभिनय करके उन्हें पुरानी व विशाल पार्टी का अध्यक्ष बना दिया। हमारे पास कोई विकल्प नहीं था। मुमकिन है, उनके पास भी विकल्प नहीं रहा हो।

अध्यक्ष बनाए जाने के राहुल गांधी अपने रूप में आए। बड़े हो गए, मोर्चा संभाला, वो स्वतंत्र थे। निर्णायक थे, वे आक्रामक थे, विचारशील थे और वे अब भी सहानुभूति रखने वाले हैं। उनमें समानुभूति है। उन्होंने अपनी गलतियां स्वीकार कीं, वे अपनी नाकामियां जानते हैं। उन्होंने अपनी कमजोरियों पर काम किया। उनका दिल सही काम करता है, अब वे किसी भारतीय राजनीतिज्ञ की तरह व्यवहार नहीं करते हैं, उनके आस-पास समझदारी है।

उन्होंने राजनीतिज्ञों की पुरानी शैली को छोड़ दिया है जो कांग्रेस के सत्ता केंद्रों से घिरी रहती थी। उनका रुख ताजगी देने वाला है। उन्होंने जीतने की चाहत रखने का जज्बा दिखाया है। वे प्रलोभनों से अप्रभावित थे और तुच्छ व्यवहार नहीं कर रहे थे। उन्होंने हमलों का सामना किया और मुकाबले के लिए खड़े हो गए, फिर से। गुजरात में उन्होंने कांग्रेस की जिम्मेदारी को ठीक से संभाला और अपना कद बड़ा किया।

जी हां! गुजरात में उन्होंने भाजपा का सीधा मुकाबला किया अकेले। यह भाजपा, उसके मंत्रिमंडल, उसके सर्वोच्च नेतृत्व, नरेन्द्र मोदी के जादू और तड़ीपार अमित शाह की मिली-जुली शक्ति के मुकाबले था।

गांधी परिवार को बहुत बदनाम किया गया है, किसी भी पार्टी से ज्यादा। साजिशें, भ्रष्टाचार और चरित्र हनन। सब उन्हें नीचा दिखाने के लिए। हमारे पास इस सरकार और नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा के 44 महीने हैं और ये गांधी परिवार की तमाम ‘जन्म पत्रियां’ अपने पास होने का दावा करते हैं। मामलों की जांच कराने की इनके पास जो ताकत है, कानून लागू करने वाली एजेंसियां उनके नियंत्रण में हैं उसके बावजूद भाजपा कुछ नहीं कर पाई है।

गांधी परिवार के खिलाफ प्रत्येक आरोप अब भी आरोप ही हैं और 2019 में फिर दोहराए जाएंगे। गांधी परिवार ने कथित रूप से जो 600 अरब अमेरिकी डॉलर कमाए थे उसका बैंक स्टेटमेंट नहीं मिला है। नेशनल हेरल्ड का मामला वहीं है, जहां 2014 में था। सच तो यह है कि नेशनल हेरल्ड का मामला पाठ्यपुस्तकों में पढ़ाने लायक मामला है जहां ट्रस्टी बनने वाला कोई भी राजनीतिज्ञ समान नियम लागू करने पर मुकदमे का शिकार होगा। अगर इसे अयोग्यता माना जाए तो मैंने बहुत सारे मामले देखे हैं जिनके खिलाफ मुकदमे हैं।

प्रधानमंत्री से लेकर अमितशाह और सभी मंत्री तथा मुख्यमंत्री जो देश में राज कर रहे हैं। वाड्रा की तरह भाजपा सप्रीमो के बेटे ने भी मोर्चा संभाल लिया है। इस पर तुर्रा यह कि 2जी के अभियुक्त अभियोजन के नाम पर बरी हो चुके हैं। माल्याओं को विदेश पहुंचा दिया गया है। शारदा घोटाले के अभियुक्त भाजपा में शामिल होने के बाद साफ हो चुके हैं। ललित मोदी का पता नहीं है। दाउद अब भी इस्लामाबाद से राज करता है। ट्रम्प अमेरिका में भारत के लोगों को परेशान कर रहे हैं। एकमात्र हिन्दू देश, नेपाल अमेरिका और कम्युनिस्टों की तरफ झुक गया है। यहां तक कि भाजपा का दुश्मन नंबर 1 वाड्रा जो क्रोनी कैपिटलिज्म (पूंजीवाद) का सीधा मामला है छुट्टा घूम रहा है।

‘एरिस्टोक्रेसी’, ‘फर्स्ट फैमिली’, ‘खांग्रेस’, ‘सिकुलर’, ‘इटैलियन’ कनेक्शन आदि के प्रति जो घृणा थी वह असल में नशे की ऐसी दवा है जो आम लोगों को बड़ी सफाई से दी जा रही है और कम जोर दिमाग के बहुत से लोग इन दवाइयों के नशे में ही रहते हैं। गांधी परिवार के प्रति घृणा इस बात में छिपी हुई है कि उनकी राय में भारत के लिए क्या अच्छा है। भारत को लाभ से ज्यादा वे गांधी परिवार को सजा दिलाना चाहते हैं। बैर है, दुर्भावना भी है, घृणा की तो बात ही नहीं है और इस लिहाज से भारत की बेहतरी की कामना बहुत कम है।

नरेन्द्र मोदी हममें से बहुतों की पसंद थे, मुझे भी। उन्हें आक्रामक, विकास समर्थक माना जाता था। उनके इरादे नेक हैं, उनका मन अच्छा, पर यह एक समझ थी जो हमें बेची गई थी। बड़ी सफाई से। अरुण शौरी के नेतृत्व में युवा, स्मार्ट और बुद्धिमान लोगों की टीम ने यह सब हमें बेचा था और हमें मिला क्या? चीन हमारा गौरव कम कर रहा है।

हमारे यहां हर मुद्दे पर कोई ना कोई सेना पैदा हो जाती है और यह तब हो रहा है जब हम देख चुके हैं कि ऐसी इकाइयां बनाने वाला पाकिस्तान खुद ही बर्बाद हो रहा है। भीड़ हम पर राज कर रही है। आपकी बेटी किसी मुस्लिम मित्र के साथ कॉफी पीने के लिए पीटी जा सकती है, आपका बेटा बीफ परोसने वाले किसी रेस्त्रां में बैठे होने पर मारा जा सकता है। आपकी कमजोर मां राष्ट्र गान के लिए खड़ी न हों तो उनसे बदत्तमीजी हो सकती है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश का वह महत्व नहीं है, भ्रष्ट अब भी फल-फूल रहे हैं। अमीर और अमीर हो गए हैं जबकि गरीब और गरीब हो गए हैं। पूंजी बाजार करीब 50 प्रतिशत बढ़ चुका है जबकि अर्थव्यवस्था काफी गिर चुकी है। रोजगार कम हुए हैं। युवाओं के समक्ष कोई दिशा नहीं है। लघु औद्योगिक इकाइयां, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय के तहत आने वाले उद्योग परेशान है। स्विस बैंक में रखा कालाधन अब भी वहीं वॉल्ट में है। हम अब भी खाते में 15 लाख आने की उम्मीद करते हैं। सीमा पर मरने वाले सैनिकों की संख्या बढ़ गई है।

तर्क दिया जा सकता है कि कानून व्यवस्था का पालन नहीं होने के लिए प्रधानमंत्री जिम्मेदार नहीं हैं। भाजपा शासित राज्यों में भी नहीं। पर ऐसे मामलों में वे जो चुप्पी साध लेते हैं उसके लिए तो निश्चित रूप से वही जिम्मेदार हैं। उनका दंगाइयों को ट्वीटर पर फॉलो करना ऐसे कट्टरपंथियों और हाशिए के लोगों को शक्ति देता है। अगर आप चाहते हैं कि आपपर ध्यान दिया जाए तो मुसलमानों, दलितों पर हमला कीजिए और अपनी संस्कृति के लिए लड़िए और संस्कृति का मूल तत्व खुद तय कर लीजिए। हम ईश्वर की रक्षा के लिए मनुष्यों की सेना बना रहे हैं।

अब हम एक ऐसे देश में रहते हैं जहां सरकार संस्कृति की बात करती है, पुजारी शासन की, दर्शनिक प्रशासन की बात करते हैं। बाबा शांति का पाठ पढ़ाते हैं, मानव संसाधन विकास मंत्रालय देशभक्ति थोपता है, प्रौद्योगिकी संस्थान वेद की बात करते हैं, चिकित्सा संस्थान विज्ञान को छोड़ कुछ भी बात करते हैं।

हम एक ऐसे भारत में रहते हैं जहां भीड़ कानून तय करती है, न्यायायिक आदेश कागजों पर रह जाते हैं और कानून भीड़ के आगे समर्पित हो जाता है। जहां संविधान किसी दर्शन की दया पर है और न्यायपालिका चौराहे पर भीख मांग रही है। हमारे पीएम अपनी चुप्पी से हाशिए के लोगों का समर्थन कर रहे हैं और न्याय की पीड़ित की मांग सत्ता के भूखों के शोर में डूब जाती है। हम एक ऐसे देश में रहते हैं जहां नागरिक सरकार के लिए काम करते हैं और लोकतंत्र लोगों के खिलाफ काम करता है।

हम एक ऐसे देश में बचे हुए हैं जहां दरार और घर्षण हममें से प्रत्येक को बिना किसी गलती के निगल सकता है, हम कहां अगले पीड़ित होंगे वह एक विशाल साजिश है और उसमें हमारा कोई वश नहीं है। हम हिन्सा या दंगे के शिकार हो सकते हैं जिसमें हम शामिल न हों ना ही हमारी दिलचस्पी हो।

इन परिस्थितियों में हम क्या करें? एक परिवार के प्रति अपनी घृणा को क्या हम देश और इसके लोगों के लिए जो भला है उससे ऊपर रख सकते हैं? ना तो गांधी परिवार के प्रति हमारी घृणा जायज है और ना ही मोदी के प्रति हमारा प्यार अपेक्षित है। हमें पेंडुलम को फिर हिलाने की जरूरत है। हमें अपने आकलन में निष्पक्षता को वापस लाने की आवश्यकता है। हमें किसी भी राजनीतिक दल, आदर्श और उसका नेतृत्व करने वाले लोगों के समर्थन में संतुलन लाने की आवश्यकता है।

हमें उन लोगों को सजा देने की जरूरत है जो ऐसे समय में चुप रहते हैं जब स्थिति की मांग होती है कि वे बोलें। हमें कार्रवाई पर निर्णय करना चाहिए, इरादे पर नहीं। हमें प्रदर्शन पर फैसला करना चाहिए वादे पर नहीं। हमें नीतियों पर निर्णय करना चाहिए, आदर्शों पर नहीं और हिन्सा के मुकाबले शांति की मांग करनी चाहिए।

समय आ गया है कि हम अपने जीवन, अपने स्थान, अपनी आजादी पर वापस दावा करें। समय आ गया है कि हम उन लोगों को खरी-खोटी सुनाएं जो हमें इस स्थिति में ले आए। समय आ गया है कि हम भारत के लिए बोलें उन लोगों के लिए नहीं जो इस पर राज करते हैं। समय आ गया है कि हम वो हो जाएं जो थे न कि वो रहें जो वो चाहते हैं। यह हम जैसे हैं वैसे होने का समय है।

अनुवाद संजय कुमार सिंह

 


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