Breaking News

घुटनों पर किसान:एमएसपी पर मूंग खरीदी की मांग

खास खबर            Jun 11, 2025


सचिन बोन्द्रिया।

कृषि विभाग ने केंद्र को मूंग खरीदी का प्रस्ताव ही नहीं भेजा

मध्यप्रदेश के लाखों किसानों के लिए वर्ष 2025 की जायद मूंग की फसल निराशा लेकर आई है। लगभग 14-15 लाख हेक्टेयर भूमि में बोई गई जिसका कुल उत्पादन लगभग 20 लाख मेट्रिक टन होता है, इस फसल को अब वह न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं मिलेगा, जिसकी उम्मीद में किसानों ने पसीना बहाया था। सरकार द्वारा इस वर्ष समर्थन मूल्य पर खरीदी न करने का निर्णय न केवल आर्थिक चोट है, बल्कि किसानों की आशाओं पर कुठाराघात भी है।

आखिर क्यों नहीं होगी एमएसपी पर खरीदी?

मुख्यमंत्री का कहना है कि जायद मूंग की खेती में खरपतवारनाशकों के उपयोग से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की इस चिंता को देखते हुए कृषि विभाग ने केंद्र सरकार को एमएसपी खरीदी का प्रस्ताव ही नहीं भेजा। यही कारण है कि अपर मुख्य सचिव एवं कृषि उत्पादन आयुक्त अशोक बर्णवाल ने स्पष्ट कर दिया कि इस साल मूंग की सरकारी खरीदी नहीं होगी। श्री बर्णवाल ने इंदौर में संभागीय बैठक लेने के बाद कृषक जगत द्वारा पूछे गए सवाल पर कहा कि सरकार ने पहले ही बता दिया था कि इस वर्ष मूंग की सरकारी खरीद नहीं होगी। यह बात मुख्यमंत्री ने भी सभी जगह कही है क्योंकि मूंग की फसल में किसान खरपतवारनाशक का उपयोग कर रहे हैं जो परेशानी का सबब बनते जा रहा है।

लेकिन यहीं सबसे बड़ा सवाल खड़ा होता है - यदि वही मूंग खुले बाजार में व्यापारियों को बेची जाएगी, और उपभोक्ताओं तक पहुँचेगी, तो स्वास्थ्य पर प्रभाव का तर्क एमएसपी खरीदी न करने के लिए कैसे पर्याप्त हो सकता है?

किसानों का गुस्सा और घाटा, दोनों बढ़ेंगे

इस निर्णय से नर्मदापुरम, हरदा, रायसेन, विदिशा और सीहोर जैसे जि़लों के मूंग उत्पादक किसान आक्रोशित हैं। मंडियों में इस समय मूंग का भाव रु. 6000 से रु. 7000 प्रति क्विंटल चल रहा है, जबकि केंद्र ने इस वर्ष इसका एमएसपी रु. 8768/क्विंटल तय किया है। किसानों को प्रति क्विंटल रु. 1000-1500 का घाटा उठाना पड़ रहा है।

किसानों पर आर्थिक संकट

हरदा के किसान श्री करण पटेल बताते हैं, '70 प्रतिशत कटाई हो चुकी है, लेकिन एमएसपी न मिलने से किसान आर्थिक संकट में हैं। देवास के विकास गुर्जर और इटारसी के शरद वर्मा जैसे प्रगतिशील किसानों ने बताया कि वे नॉन-सिस्टेमिक रसायनों का उपयोग करते हैं, जो सिर्फ पत्तियों को सुखाते हैं, बीज या फल पर कोई प्रभाव नहीं डालते। यह भी सवाल उठता है कि यदि यह रसायन 'ग्रीन लेवल में आता है, तो फिर समर्थन मूल्य रोकने का आधार क्या है?

तीसरी फसल का संकट : किसानों की आत्मनिर्भरता पर प्रभाव

जायद की मूंग वही फसल है जो कम समय में तैयार होकर किसानों को त्वरित आमदनी देती है। कई किसान खरीफ और रबी के बाद इसे तीसरी फसल के रूप में लेते हैं ताकि सालभर आमदनी बनी रहे। लेकिन एमएसपी न मिलने से उनकी तीसरी फसल पर संकट है।

संजय चिमानिया (सोमलवाड़ा खुर्द, इटारसी) कहते हैं- 'खेती का खर्च लगातार बढ़ रहा है। अगर तीसरी फसल भी घाटे में जाएगी, तो किसान कैसे टिकेगा?Ó

नीति, नीयत, न्याय कैसा?

सरकार द्वारा लिया गया यह निर्णय दर्शाता है कि किसानों की भलाई की बातें महज घोषणाओं तक सीमित हैं। यदि खरपतवारनाशकों का मुद्दा वाकई गंभीर है, तो उसे वैज्ञानिक स्तर पर प्रमाणित कर प्रतिबंधित किया जाए, न कि केवल खरीदी रोककर किसानों को दंडित किया जाए।

किसानों की आय दोगुनी करने का सपना दिखाने वाली सरकार को यह समझना होगा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य देना महज एक आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय का प्रश्न भी है।

सरकार के इस अडिय़ल रुख के कारण किसान 'खरबूजे पर छुरी के मुहावरे अनुसार मूंग ना लगाए तो खेत खाली रह जाए, लगाए तो भाव न मिले, पिटना किसान को ही है। 'छुरी तो इस बार भी मूंग किसानों पर ही गिर रही है। सरकार को चाहिए कि वह इस मुद्दे पर पुन: विचार करे, कृषि वैज्ञानिकों की राय लें, किसानों से संवाद करें और केंद्र को प्रस्ताव भेजकर समर्थन मूल्य पर मूंग खरीदी की व्यवस्था तत्काल शुरू करें।

''सरकार एक ओर 'दलहन में आत्मनिर्भरताÓ की बात करती है, वहीं दूसरी ओर देशी उत्पादन के बजाय विदेशों से मूंग आयात करने का विकल्प अपनाती है, जबकि अपने ही किसानों से एमएसपी पर खरीदी नहीं करती। यह नीति विरोधाभासी और विडंबनापूर्ण है।

कृषक जगत से

 


Tags:

farmer-on-knees farmers-protest for-purchase-of-moong-at-msp

इस खबर को शेयर करें


Comments