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फिल्म समीक्षा:उथली कहानी, छिछला मनोरंजन दे दे प्यार दे

पेज-थ्री            May 17, 2019


डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी।

उथली कहानी, छिछला मनोरंजन। अजय देवगन, तबु और रकुल प्रीत सिंह की दे दे प्यार दे फिल्म को कॉमेडी रोमांस फिल्म कहा जा रहा है, लेकिन इसमें कॉमेडी का पार्ट उतना ही है, जितना इसके प्रोमो में दिखाया गया है। फिल्म में दो अर्थों वाले संवाद, पुराने गानों के रिमिक्स और प्यार के नाम पर उल-जलूल हरकतें है। वाहियात लगता है जब रकुल प्रीत और तब्बू नई और पुरानी गाड़ी की तुलना बीवी या प्रेमिका के संदर्भ में करते हैं।

रईस अधेड़ और नौजवान युवती की कहानियों पर पहले भी फिल्म बनी है, पर शायद ही कोई इतनी वाहियात हो। फूहड़ फिल्में पसंद करने वाले दर्शकों को फिल्म अच्छी लगेगी। गंभीर मुद्दों को एकदम वाहियात तरीके से व्यक्त करना कोई इस फिल्म के निर्देशक लव रंजन से सीखे, जिन्होंने पहले भी आकाशवाणी, प्यार का पंचनामा, प्यार का पंचनामा 2 और सोनू के टीटू की स्वीटी जैसी फिल्में बनाई है। इस फिल्म को आकिव अली ने डायरेक्ट किया है।

फिल्म का अंत आते-आते कुछ अनपेक्षित घटता है। शायद युवा दर्शकों को ध्यान में रखकर ही यह टि्वस्ट दिया गया है। पूरी फिल्म में शराब पानी की तरह बहती दिखती है।

अजय देवगन एक ऐसा अधेड़ रईस हैं, जिसे कुछ नहीं करना होता। वह बॉडी बिल्डिंग करता हैं, फाइटिंग करता हैं, महंगी कार और बाइक पर महंगी जगहों पर घूमता है और मीटिंग में बैठकर टाइमपास करता है फिर भी अरबपति है। ऐसा अरबपति तो हर कोई होना चाहेगा। जब उससे आधी उम्र की लड़की से उसका रोमांस होता है, तब तो दर्शकों की इच्छा होती है कि काश वे अजय देवगन की जगह हों।

फिल्म में अजय उर्फ आशीष 17 साल से लंदन में अपने घर परिवार से दूर हैं और पत्नी और बेटा-बेटी से कभी मिलने नहीं आता। एक शादी में उसकी मुलाकात हीरोइन से होती है, जो उससे आधी उम्र की है और यही से कहानी शुरू होती है। अब हीरो फंसा है बेटी की उम्र की प्रेमिका, पत्नी और बेटा-बेटी के बीच।

वाहियातपने की हद होती है कि वह अपनी होने वाली पत्नी को लंदन से कुल्लू लेकर आ जाता है, ताकि अपनी पत्नी और परिवार से मिलवा सकें, लेकिन वहां नजारा कुछ और ही होता है और इंतेहा तब होती है, जब परिस्थितियों में उलझकर उसकी पत्नी उसे राखी बांध देती है।

अधेड़ पुरुष और युवा प्रेमिका के संबंधों को लेकर तरह-तरह के संवाद रचे गए है। अजय देवगन का बेटा जब अपनी होने वाली मां पर ही लाइन मारने लगता है, तब के हालात का वर्णन है और अंत में जिस तरह के डायलॉग बाप-बेटे के बीच है, वे कोई भी पढ़ा-लिखा परिवार पसंद नहीं कर सकता, लेकिन फिल्म में सभी लोग परिवार लेकर नहीं जाते, इसलिए दर्शकों का एक वर्ग ठहाके लगाता मिलेगा।

अजय देवगन और तबु ने अपनी उम्र के हिसाब से ही रोल किए है, लेकिन रकुल प्रीत सिंह ने श्रीदेवी की नकल करने की कोशिश की। दर्शकों को कई बार लगता है कि वह शायद गलत फिल्म देखने घुस गए हैं। पति से अलग रहने वाली तबु के कुछ अच्छे डायलॉग भी है। जिम्मी शेरगिल, जावेद जाफरी और आलोकनाथ के भी छोटे-छोटे रोल है।

लंदन और कुल्लू की लोकेशन नयनाभिराम है। ऐसा लगता है कि फिल्म के कहानीकार और निर्देशक ने पहले यह अनुमान लगाया कि दर्शकों को क्या पसंद है और उसी आधार पर कहानी लिखी। निर्देशक का कहना है कि वह आधुनिक जमाने को लेकर फिल्में बनाता है।

इसलिए इस फिल्म में परंपरागत परिवार नजर नहीं आएंगे। कॉमेडी और प्रेम त्रिकोण पर बनी यह फिल्म कुछ महानगरीय दर्शकों को पसंद आएगी। फिल्म नए जमाने की सोच का वीभत्स वर्णन करती है।

 



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