सच चोर-चोर के शोर का और राग दरबारी की याद

राज्य            Jul 11, 2019


प्रकाश भटनागर।
क्या आपको हवा में तैरती कोई मुनादी सुनाई दे रही है? मेरे कान में तो स्वर गूंजता महसूस हो रहा है। मानो कोई नगाड़ेबाज के साथ खड़ा होकर चीख रहा हो। कह रहा हो, 'हर खासो-आम को इत्तिला की जाती है कि आचार्यजी नाम के बहुरूपिये को कहीं भी देखते ही गोली मार दी जाए। हुकूमत का ये ऐलान न मानने वाले को कड़ी सजा के लिए तैयार रहना चाहिए।'

जी हां, सही सोच रहे हैं आप। ऐसी मुनादी तो राजा-महाराजाओं के दौर में की जाती थी। अब भला इसका क्या काम? तो अपना उत्तर है कि मध्यप्रदेश में अब शायद ऐसे ही चलन की दरकार रह गयी है।

आचार्यजी नामक बहुरूपिये का न तो राज्य का खुफिया तंत्र पता लगा पाया है और न ही पुलिस उस तक पहुंच सकी है। यह नाम हमारे लिए महज एक प्रतीक है। कमलनाथ सरकार के लिए रात का बुरा सपना है। पुलिस के लिए नाकामी का पर्याय है।

प्रशासन के नाम पर वल्लभ भवन से लेकर यहां-वहां सरकारी दफ्तरों की शोभा बढ़ाते अफसरों के लिए यह देवकीनंदन खत्री के 'चंद्रकांता संतति' जैसा मामला बन गया है।

यह वह है, जिसके लिए कहा गया कि राज्य में बिजली की अघोषित कटौती इसके इशारे पर की जा रही है।

अब यह वह भी बन गया है, जिस पर तोहमत है कि उसने एक परेशान शख्स को विधानसभा के सामने पेड़ पर चढ़कर पुलिस को छकाने की सलाह दे डाली।

गजब ही चल रहा है। किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि 'वक्त है बदलाव' से नाथ सरकार का आशय शासन व्यवस्था के अहम अंग पुलिस एवं खूफिया तंत्र को बहुत पीछे धकेल देने से रहा होगा।

महीने भर से ज्यादा हो गया, जब कानून मंत्री पीसी शर्मा एक आॅडियो क्लिप लेकर अवतरित हुए। दावा किया कि इसमें कोई भाजपाई किसी बिजलीकर्मी को ज्यादा से ज्यादा बिजली कटौती करने के लिए कह रहा है। लेकिन आज तक पता नहीं चल पाया कि वह कौन था।

यकीनन वह भी कल वाले आचार्यजी की तरह ही छलिया निकला। न वो मिला और न अब तक पुलिस आचार्यजी की गिरेहबान तक पहुंच सकी है। तो फिर यही उपाय शेष बचता है कि मुनादी करके उसकी तलाश की जाए। हो सकता है कि राज्य की जनता ही हाकीमों से बेहतर निकले।

पता नहीं क्यों, ये दोनों घटनाक्रम मुझे एक बार फिर राग दरबारी की याद दिला रहे हैं। वह भी हंसने पर मजबूर करते हुए। उसमें भी एक रात शिवपाल गंज में हर ओर से 'चोर-चोर' का शोर उठता है।

सारा गांव उनकी तलाश में इधर से उधर भागता है। लेकिन हासिल कुछ नहीं होता। फिर पता चलता है कि जिस समय सब लोग तथाकथित चोर के पीछे भाग रहे थे, उसी समय गांव में किसी घर से माल साफ कर दिया गया।

आचार्यजी नामक बला का पीछा कर रही नाथ सरकार के साथ भी ऐसा ही न हो जाए।

विधायकों की 'चोरी' का खतरा तो सिर पर मंडरा ही रहा है। सरकार की मुश्किल यह कि जिस किस्म की चोरी हो रही है, उसके आरोपियों के पीछे भागे या फिर जो चोरी होने की पूरी आशंका हो, उसकी हिफाजत पर ध्यान केंद्रित करे।

अब तो यही इच्छा होने लगी है कि नाथ को 'तेरी गठरी में लागा चोर मुसाफिर, जाग जरा कहते हुए इस बात से अवगत कराया जाए कि यह तबादलों से हैरान परेशान पुलिस प्रशासन को झकझोरकर जगाने का समय है।

यह देखने का वक्त है कि चोर बाहर से है या फिर भीतर ही कहीं मौजूद है। यह भी पता लगाने की घड़ी आ गयी है कि चोर पकड़ा नहीं जा रहा या उसे पकड़ने की नीयत ही नहीं है। समझदार को इशारा काफी है। नाथ तो बहुत समझदार हैं। उम्मीद है कि वह चोर-चोर के इस शोर का सच पता लगा ही लेंगे।

 



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