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कंपनी सीईओ की हत्या से हेल्थ इंश्योरेंस पर सवाल

बिजनस            Dec 15, 2024


मिलिंद खांडेकर।

अमेरिका में यूनाइटेड हेल्थ केयर के CEO ब्रायन थॉमसन की हत्या से सनसनी मची हुई है. यह कंपनी हेल्थ इंश्योरेंस देती है. हत्या के आरोपी का कहना है कि कंपनियों को लोगों की हेल्थ से ज़्यादा चिंता अपने प्रॉफिट की है, इसलिए उसने यह कदम उठाया है. हिसाब किताब में चर्चा हेल्थ इंश्योरेंस को लेकर दुनिया भर में ग्राहकों की नाराज़गी को लेकर. 

न्यूयार्क के हिल्टन होटल में चार दिसंबर को यूनाइटेड हेल्थ केयर की इनवेस्टर कॉफ्रेंस थी. CEO ब्रायन थॉमसन इसके लिए होटल पहुँचे थे तभी गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई. यूनाइटेड हेल्थ अमेरिका में क़रीब पाँच करोड़ लोगों को इंश्योरेंस देती है. 281 बिलियन डॉलर का टर्न ओवर है. थॉमसन 2021 में CEO बने थे. उनके कार्यकाल में प्रॉफिट 12 बिलियन डॉलर से बढ़कर 16 बिलियन डॉलर हो गया था.

26 साल का लुइजी मैनजियोनी हत्या का आरोपी है. पुलिस ने उसे गिरफ़्तार कर लिया है. पुलिस को उसके पास जो डायरी मिली है उसमें लिखा है कि कंपनियों को मरीज़ों से ज़्यादा चिंता अपने मुनाफ़े की है. घटना स्थल पुलिस को जो गोलियों के खोके मिले हैं उस पर लिखा है Delay, Deny . हेल्थ इंश्योरेंस इंडस्ट्री में यह बात चलती है कि क्लेम को Delay करो, , Deny करो और फिर इसको Defend करो. अमेरिकी सीनेट की रिपोर्ट में कहा गया था कि यूनाइटेड हेल्थ केयर का क्लेम रिजेक्शन रेट दोगुना हो गया है. 2020 में 10% क्लेम रिजेक्ट होते थे . 2022 में यह बढ़ कर 20% हो गया. 

हेल्थ इंश्योरेंस बिज़नेस अमेरिका और यूरोप में सौ साल से चल रहा है भारत में पिछले कुछ वर्षों में तेज़ी आयी है.इंश्योरेंस सेक्टर के रेगुलेशन करने वाली संस्था IRDA के मुताबिक़ 2.26 करोड़ पॉलिसी बेची गई है जिसमें 55 करोड़ लोगों को कवर मिला है. ऑफ़र सिंपल है हर साल 5 से 10 हज़ार रुपये तक प्रीमियम दीजिए और पाँच लाख रुपये तक का कवर लीजिए. अस्पताल में भर्ती होना पड़ा तो इंश्योरेंस कंपनी पाँच लाख रुपये तक का बिल चुकाएगी. मामला यहीं फँसता है क्या अमेरिका क्या भारत? लोगों को धक्के खाने पड़ते हैं. भारत में लोकल सर्किल के सर्वे के मुताबिक़ 43% ने कहा कि उन्हें क्लेम सेटलमेंट में दिक़्क़त हुई. यही मुश्किल लोगों की नाराज़गी का कारण है. फिर भी नाराज़गी के कारण हत्या या हिंसा को किसी भी तरह से जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है. 

मिलिंद खांडेकर वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह ब्लॉग उनके लिंकडन पेज से लिया गया है।

 

 


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