अब तो मुद्दों पर लौट आइये,कामकाज उठा कर देख लीजये!

खरी-खरी            Aug 01, 2015


राकेश अचल गुरदासपुर में आतंकी हमला हो गया,याकूब मेनन को फांसी लग गई,मरहूम राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम सुपुर्द—ए—खाक हो गए, अब तो कम से कम संसद को अपना काम शुरू कर देना चाहिए। संसद दो हफ्ते से हंगामे का शिकार हो रही है,इसकी वजह सत्तापक्ष के साथ ही विपक्ष की हठधर्मिता तो है ही संसदीय कार्य मंत्री का घटिया कुप्रबंधन भी है। लोकसभा अध्यक्ष की विफलता कहने में भी मुझे कोई संकोच नहीं है ,क्योंकि वे ही संसद के एक बड़े सदन की अधिष्ठाता हैं। संसद के सामने तमाम विधाई कार्यों के अलावा अर्थव्यवस्था और दुसरे विषयों से जुड़े तमाम मुद्दों पर बहस भी होना है और फैसले भी लिए जाना है ,लेकिन कोई भी इस मामले में गंभीर नहीं दिखाई दे रहा। आखिर इस तनातनी का अंत कब और कैसे होगा? सत्तारूढ़ दल के पास ऐसा कोई सर्वमान्य नेता नहीं है जो विपक्ष में भी बराबर से सम्मान पता हो। लोकसभा अध्यक्षसुमित्रा महाजन ने कोशिश कर ली,संसदीय कार्यमंत्री तक-हार गए हैं और प्रधानमंत्री खुद अपनी और से कोई विनम्रता दिखने को तैयार नहीं है। जबकि उन्होंने ही सत्ता सम्हालते समय कहा था की सबको साथ लेकर चलूँगा। आखिर क्या विवशता है कि सब साथ-साथ नहीं चल पा रहे हैं? पिछले ग्यारह दिन का संसदीय कामकाज उठा कर देख लीजये और खुद समीक्षा कर लीजिये की किस दल ने किस मुद्दे पर कितनी गंभीरता दिखाई है। कांग्रेस लम्बे अरसे तक सत्ता में रही है उसने विपक्ष का चरित्र भाजपा से ही उधार लिया है ,और भाजपा की कठिनाई ये है की स्वा साल बाद भी उसे विपक्ष की ही तरह काम करने की आदत पड़ी हुई है। अब समय आ गया है जब सभी राजनीतिक दल गम्भहिरता का प्रदर्शन करें अन्ठा उनकी दशा भी आम आदमी पार्टी के नेताओं जैसी हो जायेगी। परेशान जनता संसद ठप्प करने वालों और उसे चलने में रूचि न रखने वालों को सड़कों पर घेर कर जबाब मांगेगी। राकेश अचल के फेसबुक वॉल से


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