श्रीप्रकाश दीक्षित
अब जबकि मध्यप्रदेश के महामहिम की कुर्सी कभी भी जा सकती है भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ताओं ने यह याद दिलाना प्रारम्भ कर दिया है कि रामनरेश यादव काँग्रेस सरकार द्वारा नियुक्त राज्यपाल हैं। यह भी कि वे इन्दिरा गांधी के वफादार थे और इसी के चलते सोनिया गांधी ने उन्हे राज्यपाल बनवाया था. सवाल है कि यह किसे मालूम नहीं था..? सब जानते हैं कि नियुक्ति कि घोषणा होते ही गदगद रामनरेश यादव ने सार्वजनिक रूप से इसके लिया सोनिया जी का तो आभार व्यक्त किया पर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का नाम तक नहीं लिया। ऐसा कर उन्होने अपने को तो हास्यास्पद बनाया ही साथ ही इस संवैधानिक पद [ इन दिनो रामनरेश जी पर राय देने से बचते हुए मुख्यमंत्री इस शब्द का ही इस्तेमाल कर रहे हैं ] की भी बैंड बजा डाली थी।
यह ठीक वैसा ही है जैसे पूर्व स्पीकर श्रीनिवास तिवारी के समय हुए विधानसभा भर्ती घोटाले की शिवराजसिंह चौहान को तब याद आई जब दिग्विजयसिंह ने व्यापम घोटाले पर शिवराजसिंह चौहान और उनकी पत्नी पर सीधे हमला बोल दिया। इसके बाद इस मामले मे आनन-फानन मे एफआईआर दर्ज करा कर उन्होने अपनी खूब जग हँसाई कराई। वे करीब दस साल से मुख्यमंत्री हैं और श्रीनिवास तिवारी के कार्यकाल मे भाजपा के ईश्वर दास रोहाणी लगातार डिप्टी स्पीकर रहे और बाद मे लंबे समय तक स्पीकर भी रहे। वे इस घोटाले से वाकिफ रहे होंगे पर मुख्यमंत्री ने कोई कार्रवाई नहीं की।
इसी प्रकार प्रधानमंत्री बनते ही नरेन्द्र मोदी ने काँग्रेस के समय नियुक्त राज्यपालों से इस्तीफा मांगने, न देने पर तबादला कर देने और बर्खास्त कर देने का सिलसिला शुरू कर दिया। लाख टके का सवाल है की रामनरेश यादव मे ऐसा क्या है जो वे ढेर सारी बदनामियों के बावजूद राजभवन मे टिके हैं। एफआईआर दर्ज होने के बाद भी केंद्र सरकार मूक दर्शक बन कर रामनरेशजी के हाइकोर्ट से स्टे लेने मे सहभागी बनी। वे जबसे राज्यपाल बने हैं उनका एक पैर राजभवन मे और दूसरा अस्पताल मे रहता है। यह भी दोहरा दें कि उनके साथ यूपी से आए ओएसडी धनराज यादव व्यापम घोटाले मे जेल की हवा खा रहे हैं। इस बीच व्यापम की जांच से भाग रहे उनके पुत्र की मौत से सब वाकिफ हैं ही।इस सब के बावजूद उनका पद पर बना रहना भाजपा, शिवराजसिंह चौहान और प्रधानमंत्री को कठघरे मे खड़ा कर रहा है।
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