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अमिताभ क्यों गये शाहजहांपुर,बाराबंकी? सूर्यप्रताप क्यों गये मीडिया की दहलीज पर?

खरी-खरी            Jul 17, 2015


कुमार सौवीर पहले तो समझ लीजिए और फिर कान खोलकर सुन लीजिए कि ये सरकार सूर्यप्रताप सिंह और अमिताभ ठाकुर जैसे टुच्चे अफसरों की मनमानी के बल पर नहीं चलेगी, वरन् अपनी समाजवादी सोच और प्राथमिकता को हर कीमत पर लागू करेगी। surypratap-singh यह समझ लीजिए कि अखिलेश यादव सरकार की नीतियाँ बिल्कुल स्पष्ट हैं। यह सरकार बलात्कार जैसे अपराधों को अपराध मानती ही नहीं, और अगर खुदा न खास्ता, मानती भी है, तो उसका संज्ञान नहीं लेती। यही हालत शाहजहाँपुर और बाराबंकी के थानों पर पुलिस द्वारा पत्रकार व महिला को जिन्दा फूँक डालने जैसी हल्की—फुल्की वारदातों की है। वजह साफ है कि ऐसे बलात्कारों में सरकार के चहेते मंत्रियों और पुलिस अफसरों की संलिप्तता होती है। ऐसे में अपनों को बचाने के लिए सरकार अपनी हरचन्द समाजवादी-कोशिश करती है, तो इसमें बुरा क्या है? सरकार सिक्का उछालकर सन-पुत खेलती है और ऐसे में सन को दबाकर सिर्फ पुत यानी हेड का ही सम्मान करती है। क्या समझे? ठीक यही अमिताभ और सूर्यप्रताप पर है। इन दोनों ने अनुशासनहीनता की है, ऐसा सपा सरकार का दावा है। तो सवाल यह है कि आखिर अमिताभ,सूर्य प्रताप ने सरकार और नौकरशाही की करतूतों पर ऐसे सवाल क्यों उठाये जिस से इस सरकार के संकट में आने का अंदेशा था। अमिताभ क्यों गए शाहजहाँपुर, जहाँ के पत्रकार जगेन्द्र सिंह को मंत्री के इशारे पर पुलिस-अपराधियों ने जिन्दा फूँक दिया। क्यों गये बाराबंकी, जहाँ थाने में पुलिसकर्मियों ने बलात्कार से असफल होने पर एक महिला को पेट्रोल डालकर फूँक दिया। क्यों गए सूर्यप्रताप टीवी और अखबारों की दहलीज पर, और बोले कि नौकरशाही अपनी बेहूदगी की पराकाष्ठा पर है। क्यों बोले कि इलाहाबाद चयन आयोग में कुल गड़बड़ और धाँधली है। क्यों ये दोनों लोग अपनी चोंच बार-बार खोल देते हैं? जब उन्हें पता चलता है कि अन्याय और अपराध नाक से ऊपर गुजरता जा रहा है। दरअसल वक्त का तकाजा तो ये है कि इन दोनों बदतमीज अफसरों को सरेआम सूली पर चढ़ा देना चाहिए ताकि आने वाली नस्लें थर्रा-थर्रा कर काम करें और भूलकर भी लोकप्रिय-जनप्रिय-न्यायप्रिय सरकार की ओर उँगली उठाने की हिमाकत न कर सकें।हाँ नहीं तो ! जय समाजवाद! जयहिन्द! कुमार सौवीर के फेसबुक वॉल से


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