अमिताभ ठाकुर के बहाने:जो साहसी होते हैं, वे अडिग ही रहते हैं
खरी-खरी
Jul 12, 2015
कुमार सौवीर
अमिताभ ठाकुर और नूतन ठाकुर पर तो सबसे पहले मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तारी होनी चाहिए था, क्योंकि यह बहुत पुराना मामला था। इसी तरह शाहजहांपुर के जांबाज पत्रकार जागेन्द्र सिंह को जिन्दा फूंकने की साजिश करने वाले मंत्री राममूर्ति वर्मा और वहां के कोतवाल समेत बाकी अन्य वांछितों को भी गिरफ्तार कर लिया जाना चाहिए था।
इतना ही नहीं, बाराबंकी के थाने में जिन्दा जला दी गयी महिला के आरोपी थानाध्यक्ष और दारोगा को भी एफआईआर दर्ज होते ही जेल भेज दिया जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। क्योंकि इसमें सौदाबाजी चलती रही। शाहजहांपुर वाले मंत्री रामूमर्ति वर्मा और अन्य वांछितों के बारे में तो गम्भीर रूप से जले जागेन्द्र सिंह ने अपने मरने से पहले वीडियो-बयान में कह दिया था कि उसे जलाने के लिए राममूर्ति वर्मा, कोतवाल समेत कई अपराधी शामिल थे। लेकिन सरकार ने तय किया कि राममूर्ति को जेल नहीं भेजा जाएगा। इसी चक्कर में कोतवाल आदि मुजरिमों की भी लॉटरी खुल गयी। वे भी स्वच्छन्द घूमने लगे।
जाहिर है कि पूरे प्रदेश में सन्देश चला गया कि ऐसी भी नृशंस घटनाओं पर भी सरकार नहीं जागेगी। और लीजिए, बाराबंकी में एक महिला को थाने में ही जिन्दा फूंक दिया गया। अब हालत सांप-छछूंदर की हो गयी। सरकार किस मुंह से बाराबंकी पर कार्रवाई करे, जबकि शाहजहांपुर की आग अलग भड़की थी। नतीजा, सरकार और उसके कारिन्दों ने इस मामले को भी ठण्डे बस्ते में डाल दिया।
बात अमिताभ-नूतन पर।
इन दोनों पर दो युवतियों ने बलात्कार व उसकी कोशिश का आरोप लगाया है। एक ही शैली में दो महिलाओं ने एकसाथ अर्जी दी। थाने के बजाय सीधे महिला आयोग में। क्यों? क्योंकि यह साफ-साफ साजिश थी जिसके केन्द्र में है यूपी सरकार के चहेते खनन मंत्री गायत्री प्रजापति। ठीक वैसे ही जैसे मायावती के खनन मंत्री थी बाबूसिंह कुशवाहा, जो एक-एक दिन में अरबों-खरबों की डील कराते थे।
और साफ और दो-टूक बात तो यह है कि अमिताभ ठाकुर बलात्कार कर ही नहीं सकते। जो अपने भयानक तनावों में जिन्दगी से जूझ रहा हो, वह पिछले पांच-साल से दमे का गम्भीर मरीज बन चुका है। हालांकि अस्थमा तो उन्हें करीब दो दशक से था, लेकिन इस दौरान उनकी हालत बेहद बुरी हो चुकी है। चहुंओर दिन-रात तनाव, युद्ध, प्रताड़ना, भय।
अब ताजा बवाल बलात्कार का। आक्रामक और हमला पर आमादा राज-सत्ता से भिड़ना आसान खेल नहीं होता है। खासकर तब जब प्रबुद्ध और पढे लिखे वर्ग ने राजसत्ता के सामने आत्मसमर्पण कर रखा हो।
ऐसे में पहले मुकदमे, फिर जेल, फिर अपमान, फिर ताड़ना। राजसत्ता अपना एक-एक कदम आगे बढाती रहती है। हां हां, राजसत्ता जब मधान्ध हो जाती है, तो सरेआम किसी की भी खोपड़ी खोल सकती है। बस एक गोली निकली और भेजा बाहर.......
लेकिन जो साहसी होते हैं, वे ऐसी हालातों में भी अडिग ही रहते हैं।
आप बताइये ना ?
कुमार सौवीर के फेसबुक वॉल से
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