वेद प्रताप वैदिक
भाजपा के पूर्व मंत्री और प्रसिद्ध पत्रकार अरुण शौरी ने कल एक पुस्तक-विमोचन के समय जो टिप्पणी की, वह देश में चर्चा का विषय बनी हुई है। अरुण शौरी को पक्का भाजपाई माना जाता है। वे एक विचारशील पत्रकार हैं। उनकी प्रतिक्रियाएं मौलिक और निर्भीक होती हैं। उन्होंने कह दिया कि अब लोग मनमोहन सिंह को दुबारा याद करने लगे हैं। वर्तमान सरकार और मनमोहनसिंह सरकार में क्या फर्क है? इतना ही फर्क है कि मोदी सरकार और गाय बराबर है मनमोहन सरकार।
याने सिर्फ गोहत्या के मुद्दे के अलावा नई सरकार और पुरानी सरकार में कोई फर्क नहीं है। उन्होंने नरेंद्र मोदी की सरकार को सबसे कमजोर सरकार बताया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय में भयंकर केंद्रीयकरण हो गया है लेकिन वह शक्तिहीन है। वह कोई निर्णय ही नहीं कर पाता। अटलजी की सरकार में ब्रजेश मिश्रा और उनसे पहले एल.के.झा जैसे अनुभवी और तेज-तर्रार लोग प्रधानमंत्री कार्यालय चलाते थे। अब भी लोग खूब काम कर रहे हैं और बहुत व्यस्त दिखाई पड़ रहे हैं लेकिन परिणाम के नाम पर शून्य है। ये कछुआ सिर्फ धीरे ही नहीं चलता है। ऐसा लगता है कि यह चलते-चलते सो जाता है।
शौरी ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री से जो भी मिलता है, वह चिकनी-चुपड़ी बातें करता है। उनको कोई खरी-खरी नहीं कहता। प्रधानमंत्री लोगों को नाराज करने में बड़े माहिर हैं। उन्हें क्या पता नहीं कि यदि दिल्ली-मुंबई औद्योगिक बरामदा बनाना है तो पांच मुख्यमंत्रियों की सहमति आवश्यक होगी।
यह ठीक है कि ये सब बातें शौरी ने इसलिए भी कह दी हो सकती हैं कि उस समारोह में खुद मनमोहन सिंह श्रोताओं के बीच बैठे थे। लेकिन अरुण शौरी जैसे सिद्ध-पुरुष से यह आशा नहीं की जाती है कि इसी कारण वे बहक गए होंगे। अरुण शौरी ने मनमोहन सिंह की खुशामद में एक शब्द भी नहीं कहा। उन्हें जो ठीक लगा, वह उन्होंने कहा।
शौरी की बात का बुरा मानेगी तो यह सरकार अपना ही नुकसान करेगी। अभी तो फिसलन का डेढ़ साल ही बीता है। संभलने का यह सही समय है। यदि हमारे सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान प्रधानमंत्री टीवी चैनलों और अखबारों में सुर्खियां बटोरने की बजाय कुछ ठोस काम करें तो वे सचमुच देश का और खुद का भी भला करेंगे।
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