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इतना कायर-डरपोक एसपी नौकरी में क्यों है?

खरी-खरी            Jan 05, 2016


prakash-hindustaniडॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी पठानकोट एयर बेस पर आतंकी हमले का सबसे बड़ा नुकसान पांच जवान, एक कमांडों और एक लेफ्टिनेंट कर्नल की शहादत है। यह नुकसान कम हो सकता था, अगर गुरदासपुर का एसपी सलविंदर सिंह बहादुरी दिखाता। शहीदों पर हमें फख है, लेकिन ऐसे कायर आईपीएस अधिकारी पर सिर शर्म से झुक जाता है। यह अफसर चाहता तो आतंकियों से निपटने की पहल कर सकता था, पर वह तो किसी तरह जान बचाता फिरा। हम सारी बहादुरी की अपेक्षा केवल सैनिकों से ही क्यों करते है? आईपीएस अफसरों को तो जवानों और लेफ्टिनेंट कर्नलों से ज्यादा वेतन और सुविधाएं मिलती हैं। खूब नौकर-चाकर होते हैं। रिटायर होने के बाद भी कहीं न कहीं फिट हो जाते है। लाख-डेढ़ लाख रुपए की पेंशन अलग लेते है। काली कमाई का कोई जिक्र नहीं कर रहा हूं, यह मानकर कि यह अफसर बेहद ईमानदार होगा। इस अफसर की कायरता ने तो पुलिस के प्रति इज्जत खत्म कर दी। बहादुर सिख कौम को भी उसने लजवा दिया। जो भी कहानी सलविंदर बता रहे हैं, वह गले नहीं उतर रही। टीवी चैनलों पर उन्होंने कहा कि मैं अपने दोस्त और खानसामे के साथ आ रहा था। आतंकी पुलिस की वर्दी में आए, उन्होंने हमारी गाड़ी छीन ली, करीब 20-25 किलोमीटर दूर तक ले गए, वहां से दूसरी इनोवा गाड़ी ली, मुझे मारा-पीटा। मैं अपनी चतुुराई से जान बचा पाया। उन्हें पता नहीं था कि मैं पुलिस का अफसर हूं, वरना मुझे मार डालते। जब उन्हें पता चला कि मैं पुलिस का अधिकारी हूं, तो वे फिर मुझे मारने के लिए आए, लेकिन मैं छुप गया। करीब 3 किलोमीटर दूर मैं किसी तरह गांव में गया। वहां से वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित किया। पर पुलिस के आला अफसरों ने ही मेरी बात नहीं सुनी। मुझे ही शक के घेरे मेंं ले लिया गया। मैं पीड़ित हूं, संदिग्ध नहीं। मीडिया में एक तरफ तो 7 बहादुर शहीदों की कहानियां आ रही हैं ओर दूसरी तरफ शर्मसार कर देने वाले इस अफसर के भीगी बिल्ली बनने की कहानी। पुलिस में क्या ऐश करने गए हो भाई? त्वरित बुद्धि का उपयोग केवल अपनी जान बचाने के लिए ही सीखे हो? आपकी गाड़ी तो छीन ले गए, आतंकी आपकी जान लेने से ज्यादा और क्या कर सकते थे? एसपी साहब फरमाते हैं कि वे लोग कौन थे हमें इसका अंदाजा नहीं हुआ था। अगर पुलिस की वर्दी पहने एके—47 और अन्य हथियारों से लेस लोग आपको रोक लें, तो आपको इस बात का भी अंदाज नहीं होगा कि यह कौन हो सकते हैं? ये लोग कितना बड़ा नुकसान कर सकते हैं? जान बचाने के बाद 1 जनवरी की दोपहर तक क्या झक मार रहे थे? जमीन-आसमान एक कर सकते थे आप तो। एसपी हो कोई मजाक नहीं। राष्ट्रपति के दस्तखत के बिना आपको कोई बर्खास्त नहीं कर सकता। कंधे पर अशोक चिन्ह उठाए घूमते हो, ऐसे इज्जत बचाओगे अशोक चिन्ह की? कह रहे हो कि सिविल ड्रेस में थे। निजी गाड़ी में घूम रहे थे, जिस पर नीली बत्ती थी। कह रहे हो कि बत्ती खराब थी। निजी गाड़ी में नीली बत्ती क्यों लगाई? 31 दिसंबर की रात को आप कहां गए थे ? कह रहे हो कि मजार पर दर्शन करने गए थे। सिख होकर मजार पर जाना बहुत ही अच्छी बात है। सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल हो आप। पर कायर लोग सौहार्द की मिसाल नहीं होते। आम आदमी के घर में चोर घुस आता है, तब वह भी त्वरा बुद्धि से फैसला करता है। प्रतिरोध का रास्ता खोजता है। ठीक है, आपके पास हथियार नहीं थे, क्योंकि आप मजार पर गए थे और हथियार लेकर नहीं गए थे। आपके हाथ-पैर तो थे, आतंकियों से भिड़ने की तो सोचते। अगर आप शहादत दे देते, तब भी क्या आतंकी पठानकोट एयर बेस तक पहुंच सकते थे। आपने तो प्रतिरोध ही नहीं किया, भीगी बिल्ली बनकर छुप गए। पुलिस नियमों के अनुसार आप गुरदासपुर मुख्यालय छोड़कर पठानकोट गए थे। क्या आपने रवानगी की सूचना दी थी। इतने संवेदनशील क्षेत्र से आप गुजर रहे थे, तब भी आपको हथियार रखने की जरूरत क्यों नहीं लगी? आपकी गाड़ी सरकारी नहीं थी, तो उस पर नीली बत्ती क्यों लगा रखी थी। पहले आपने कहा कि आपका फोन आतंकियों ने छीन लिया था, फिर बाद में कहा कि मेरे पास एक दूसरा फोन था, जिससे मैंने वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना दी। आप अपने ही विभाग पर आरोप लगा रहे हो कि आपकी शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया गया। कैसे एसपी हो आप? आपकी शिकायत को ही कोई गंभीरता से नहीं लेता। होशो हवास में तो थे? आप कहते हो कि आतंकियों की संख्या चार से पांच थी। चार या पांच यह भी नहीं बता सकते। आतंकियोंं ने आपकी गाड़ी छीन ली, आपको जान से मारने की धमकी दी और फिर आपको छोड़ दिया। आपने बताया नहीं कि आप पुलिस के बड़े अधिकारी है, क्योंकि आप यह बताते तो वे आपको मार डालते। यह आप ही कह रहे हैं। आपने बताया कि आप अपने दोस्त और खानसामे के साथ निजी यात्रा पर थे। दोस्त तो समझ में आया, पर खानसामे को साथ ले जाने की क्या जरूरत थी? मजार जाने के लिए खानसामे के बजाय ड्राइवर होता तब तो बात समझ में आती। पाकिस्तान से आतंकी अपने इलाके में घुस आए और जान से मारने की धमकी दे, तो क्या किसी भी नागरिक को कोई प्रतिरोध नहीं करना चाहिए? नागरिक से ऊंचे, आप तो वरिष्ठ पुलिस अधिकारी हो, आपको तो प्रतिरोध करना ही चाहिए था। आपने प्रतिरोध तक नहीं किया। यह शर्म की बात है, एक नागरिक के लिए भी और एक पुलिस अधिकारी के लिए भी। बहादुर कौम सिख के सदस्य होते हुए और इतने बड़े पद पर होते हुए भी आपका प्रतिकार न करना पूरे देश के लिए शर्म की बात है। हम यह मान लेते है कि आप जो कह रहे हैं, वह सही ही है। हम नहीं कहते कि आप आतंकियों के सामने गिड़गिड़ाए होंगे। यह भी नहीं कहते कि आपने उन्हें बताया होगा कि आप बहुत पवित्र आदमी है और पवित्र मजार के दर्शन करके लौट रहे हैं। आपने आतंकियों को बीवी-बच्चों का वास्ता भी नहीं दिया होगा। आप अपने आप को साधारण नागरिक बताते रहे। आतंकियों को लगा कि आपको मारने में उनका कोई फायदा नहीं है। उन्होंने आपको छोड़ दिया, लेकिन आपके खानसामे को नहीं छोड़ा। क्यों? खानसामे ने उनके लिए बिरयानी नहीं बनाई थी क्या? मैं एक साधारण बुद्धि का आदमी हूं और यह बात स्वीकार करने को तैयार ही नहीं कि पुलिस अधीक्षक रैंक का कोई अफसर इतना कायर हो सकता है। कुछ साल पहले की बात है इंदौर में एक महिला का पर्स छीनकर कुछ गुण्डे भाग रहे थे। एक सिख नौजवान ने गुण्डों का पीछा किया। गुण्डों के पास गन थी, उन्होंने उस नौजवान की गोली मारकर हत्या कर दी। एक साधारण सिख नौजवान ने दूसरों की बहन-बेटी की रक्षा में प्राण न्यौछावर कर दिए। फिल्मकार शेखर कपूर ने पिछले दिनों एक किस्सा बताया था कि जब हम छोटे थे तब हमारी मां-बहनों को सिखाया जाता था कि अगर कोई गुण्डा तुम्हारा पीछा करे, तो तुम अपने आसपास मौजूद किसी भी सिख नौजवान के पास चले जाना, वह अपनी जान देकर भी तुम्हारी हिफाजत करेगा। इंदौर के उस नौजवान और शेखर कपूर की बात को एसपी साहब आपने झुठला दिया। हम तो पुलिस वालों को भी फौजियों के समान सम्मान देते आए हैं। अगर एसपी साहब दोपहर तक विभाग के सभी वरिष्ठ लोगों को अपनी बात दमदारी से बताते, सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते, मास मीडिया को इकट्ठा करते, सेना के अधिकारियों को बताते कि फौजी वर्दी पहनकर कुछ लोग घुस आए है, तब निश्चित ही कुछ तो कदम उठाया जा सकता था। आपका खानसामा मारा गया, आपकी जान बच गई, आपको लगा कि आपने महान कार्य कर लिया है। जिंदा बच गए हैं। आपको कभी अपनी जिंदगी पर शर्म आएगी? हमें तो आएगी। आतंकियों का आपने कोई प्रतिरोध नहीं किया, आपको क्या अधिकार है कि अशोक चिन्ह को अपने कंधे पर लगाए 60 साल तक घूमे। आप इस अशोक चिन्ह के लायक नहीं हैं। आपको पुलिस की वर्दी और अशोक चिन्ह उतार देना चाहिए। आप खुद अगर यह काम नहीं करते हैं, तब सरकार को चाहिए कि आपको बर्खास्त कर दे। ऐसे कायर अफसर की बर्खास्तगी इसलिए भी जरूरी है कि मामले की जांच ठीक से हो सके। पद पर रहते हुए ऐसे अफसर जोड़तोड़ करके जांच को प्रभावित कर सकते है। भले ही तिकड़में करके आप नौकरी में बने रहें, एसपी से प्रमोट होकर डीजीपी भी बन जाएं, आप लोगों के लिए सम्माननीय नहीं रह पाएंगे। मेरी यह बात आपके साथ ही कई लोगों को बुरी लगेगी कि मैं बहुत जल्दी और बिना सबूत के यह लिख रहा हूं, लेकिन मैं मुतमईन हूं कि आप जैसे कायर अफसरों को पुलिस की वर्दी शोभा नहीं देती।


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