डॉ.वेद प्रताप वैदिक।
25 मई को मैंने लिखा था कि हमारे देश के नेताओं की हालत यह है कि कोई बच्चा उनके-जैसा नहीं बनना चाहता सिर्फ एक प्रतिशत बच्चे राजनीति करना चाहते हैं लेकिन उनके सामने राजनीति का कोई भी आदर्श-पुरुष नहीं है। साढ़े छह हजार बच्चों में से एक ने भी यह नहीं कहा कि वह नरेंद्र मोदी बनना चाहता है या राहुल गांधी या मनमोहनसिंह बनना चाहता है। किसी लड़की ने यह भी नहीं कहा कि वह इंदिरा गांधी या सोनिया गांधी बनना चाहती है। मायावती, ममता और जयललिता के तो शायद उन्हें नाम भी पता न हों।
लेकिन आप चिंता मत कीजिए। अपने नेता इस सच्चाई को अच्छी तरह समझते हैं। इसीलिए उन्होंने अपनी पीट खुद ही ठोकनी शुरु कर दी है। वे या तो अपने बाप-दादों या फिर अपनी पार्टी के नेताओं के नाम पर सड़कों, अस्पतालों, कालेजों विश्वविद्यालयों, हवाई अड्डों, गांवों और शहरों के नाम रख देते हैं। कुछ पार्टियां तो प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों की तरह चलती हैं। वे डूब जाएं तो डूब जाएं, कम से कम उनके नेताओं के नाम तो लोगों के दिमाग पर लदे रहें। ये नाम इतने ज्यादा लद गए हैं कि देश में आप जहां जाइए, ये ही नाम लदे दिखते हैं। इन्हें देखकर एक फिल्मी सितारे ने जरा जोर का पटाखा फोड़ दिया। उसने पूछा कि आपने सारे देश को अपने बाप का माल समझ रखा है क्या? यह टिप्पणी जरा सख्त है लेकिन अपने देश में पहले निजी दुकानों के नाम इसी तरह रखे जाते थे। जैसे लादूराम- झूथामल या नथमल-कनकमल या भोलाराम बद्रीलाल भंडार आदि। लगभग यह पद्धति हमारे सभी राजनीतिक दलों ने अपना ली है। आज जो नेता जिंदा हैं, उनमें से कई मूर्खों ने अपनी मूर्तियां खुद ही खड़ी करवा दी हैं। जनता के पैसे की यह बेरहम बर्बादी है। वे सोचते हैं कि उनके मरने के बाद पता नहीं कोई उन्हें याद करेगा या नहीं? इसीलिए यह पुण्य-कार्य हम खुद ही क्यों न कर लें। मैं तो इस पक्ष में हूं कि कानून बनाकर ऐसी सभी मूर्तियों को तोड़ दिया जाना चाहिए। इनके लिए यह वाक्य ठीक है कि आपने इस देश को बाप का माल समझ रखा है क्या?
इसका मतलब यह नहीं कि नेताओं के नाम पर कोई चीज़ बनाई ही नहीं जानी चाहिए लेकिन उसमें कुछ संयम और कुछ विवेक से काम लेना चाहिए। देश को बनानेवालों में सिर्फ नेता ही नहीं हैं, विद्वान हैं, साधु-संत हैं, कलाकार हैं, वैज्ञानिक हैं, असाधारण किसान हैं, फौजी हैं, समाजसेवी हैं, उद्योगपति हैं और कई चमत्कारी लोग ऐसे हैं, जिनकी स्मृति रक्षा होनी ही चाहिए। हमारे प्राचीन भारत के महानायकों के नाम हम क्यों भूलते जा रहे हैं? अपने बाप-दादों को आप इतना ज्यादा याद करते हैं। कभी भारत के बाप-दादों को भी याद कर लिया कीजिए।
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