संजय जोशी 'सजग'
हर साल कसमें  और वादों की रस्म निभाई जाती है नये साल का स्वागत तो हम कसमों  और वादों  से करते है और अक्सर ही कसमें   टूट जाती है और वादें  भुला दिए जाते है एक नेता की तरह ,देश में यह गुण हर दो पाये वाले प्राणी में पाया जाता है l अपनों से कसम खाता  है और स्वयं से कसम खाकर वादे पर वादे करता है उसका हश्र तो हर कोई जानता है बिरले ही होते है जो  अपनी कसम और वादों  पर खरे उतरते है और अपने आप को धोखा  देकर गये  वर्ष की विदाई और आने वाले साल की अगुवाई करते है l  अपने आप को ही धोखा  देने का काम हर वर्ष करते है और करते रहेंगे ,कसम और वादो को यूँ ही तोड़ते रहेंगे ,जो हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है इसको बचपन  से ही जानते है और कर्तव्य मरते दम  तक याद नहीं  आते है l
                      बांकेलाल जी कहने लगे साल भर का गम भुलाने के लिए पीने  वालो का आंकड़ा लम्बा है और वो ही  बस आज यह आखरी हैं  कि  कसम खाकर इतनी पीते है कि  पीते ही जाते है l हर साल ऐसे ही पी  पी कर  वादो की झड़ी लगाते रहते है l कसम और वादों  की लम्बी उम्र नही रहती है सच्चा कभी इस फेर में पड़ता ही नही है जो जितना झूठा ,मक्कार,आलसी स्वार्थी होगा उतना ही  कसमों  और वादों  के निकट होगा l वह खुद भी जानता है कि मैं  कुछ नही कर सकता पर क्या करें  जाने वाले  साल और आने  वाले साल में यहीं  तो करना है और कर भी क्या सकता है और कोई चारा भी नही  जानता है  वह बेचारा l
                       वे आगे कहने लगे कसमें   और वादें तो  सिर्फ हाथी दांत की तरह
दिखाने के लिए होते है साल भर अगले साल के  इंतजार में वही सब कुछ करता है जो नए साल में नही करना  था और उसका आदी   होकर हर साल  यही दोहराता है l होड़ मचती है नए साल में पीने वालों  की   l गाने के बोल  भी है कि  पीने  वाले को पीने  का बहाना चाहिए ……।
  बाकेलाल जी कहने लगे कि  संचार क्रांति क्या हुई लोगबाग एक से अधिक संदेश  का आदान प्रदान करने लगे है दिल की दूरी तो बढ़  गई पर इनके कारण कुछ तो कम हुई l दुःख तो  तब  होता है जब रोज मिलने वाला मिलने पर शुभकामनाऍ देने में हिचकिचाता है और ढेर सारे संदेश  भेजकर अपनी  विराट सामाजिकता का परिचय देता  है
                  सिर्फ और सिर्फ कैलेंडर बदलते है न बदलती है तो सिर्फ आदतें और सोच l  बहती है भावनाऐं  स्वार्थ की कश्ती पर सवार  होकर। नए साल इस तरह  ही  मनाते रहेंगे जिससे न हम बदलेंगे और नहीं  नये साल में कुछ नया होगा ,कसमों  और वादों  को तोड़ने का सिलसिला यूँ ही चलता रहेगा  l  क्योंकि  कसमें तो  होती ही है  तोड़ने  के लिए और वादे  भूलाने के लिए  उपकार फिल्म के गाने  के बोल आज भी सार्थक लगते है --कस्मे वादे प्यार वफा सब बातें हैं बातों का क्या ? 
 
                   
                   
	               
	               
	               
	               
	              
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