सिद्धार्थ शंकर गौतम
आखिरकार कोयला घोटाले के दाग पूर्व प्रधानमंत्री और विख्यात अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह तक जा ही पहुंचे। प्रधानमंत्री पद पर रहते सीबीआई भले ही उनके खिलाफ कार्रवाई का साहस न जुटा पाई हो किन्तु सत्ता परिवर्तन होते ही 'तोते' की आज़ादी ने उन्हें भी कानूनी पचड़ों में उलझा दिया। दरअसल सीबीआई की विशेष अदालत ने हिंडाल्को को कोयला ब्लॉक आवंटन में हुई गड़बड़ी के मामले में पूर्व प्रधानमंत्री को आरोपी बनाते हुए समन जारी किया है। विशेष अदालत के अनुसार चूंकि प्रधानमंत्री रहते हुए मनमोहन सिंह ने कोयला मंत्रालय भी अपने पास रखा था लिहाजा इस घोटाले की नैतिक जिम्मेदारी से वे बच नहीं सकते। मनमोहन सिंह के साथ-साथ आदित्य बिड़ला ग्रुप के मालिक कुमारमंगलम बिड़ला और पूर्व कोयला सचिव पीसी परख को भी अदालत ने आरोपी बनाया है। हालांकि सीबीआई पूर्व में इन सभी को क्लीनचिट दे चुकी है किन्तु अदालत ने जांच एजेंसी की क्लोजर रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया है। अब बदले माहौल में मनमोहन सिंह समेत सभी आरोपियों को आठ अप्रैल को अदालत में पेश होना है। देखा जाए तो मनमोहन सिंह की स्थिति भी अपने राजनीतिक गुरु नरसिम्हा राव जैसी हो गई है। प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद नरसिम्हा राव को झारखंड मुक्ति मोर्चा सांसदों की खरीद समेत तीन अन्य मामलों में अदालत में आरोपी बनाया गया था। अब मनमोहन सिंह को भी अदालत ने आठ अप्रैल को ही आरोपी के रूप में तलब किया है। यह भी संयोग ही है कि यही दोनों ऐसे पूर्व प्रधानमंत्री हैं, जिन्हें पद से हटने के बाद भ्रष्टाचार के आरोपों में अदालती कार्रवाई का सामना करना पड़ा हो। यह बात और है कि नरसिम्हा राव सभी आरोपों से बरी हो गए थे और अब यही चुनौती मनमोहन सिंह के समक्ष भी है।
हालांकि नरसिम्हा राव के इतर मनमोहन सिंह की स्थिति इस मायने में मजबूत मानी जा सकती है कि उनके खिलाफ विशेष अदालत के समन ने मृत प्रायः कांग्रेस पार्टी में एकजुटता की जान फूंक दी है। अपने पूर्व प्रधानमंत्री के समर्थन में कांग्रेस पार्टी ने अपनी अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में पार्टी कार्यालय से मनमोहन सिंह के घर तक पैदल मार्च निकालकर उन्हें तो ढांढस बंधाया ही, साथ ही यह संदेश भी दे दिया कि पूरी पार्टी इस विकट परिस्थिति में उनके साथ है। इस दौरान मनमोहन सिंह ने भी हुंकार भरते हुए कहा कि जो भी कानूनी स्थितियां निर्मित हुई हैं, उनका कानूनी प्रक्रियाओं द्वारा ही जवाब दिया जाएगा। कांग्रेस ने इस मार्च से मोदी सरकार को दो संदेश देने की कोशिश की है। पहला, कांग्रेस भले ही लोकसभा चुनाव में दोहरे अंकों में सिमट गई हो किन्तु उसकी एकजुटता आज भी बरकरार है। दूसरा, कांग्रेस राजनीतिक विश्लेषकों को यह संदेश देने में भी कामयाब रही कि यदि इसी तरह उसके शीर्ष नेताओं के खिलाफ मामले उठाए गए तो वह संघर्ष का रास्ता भी अख्तियार कर सकती है। वैसे भी सीबीआई ने कभी बतौर आरोपी मनमोहन सिंह का नाम नहीं लिया है और यह बात उनके पक्ष में जाती दिख रही है। इस पूरे मामले का चाहे जो पटाक्षेप हो, इतना तो तय है कि कांग्रेस के पास मनमोहन सिंह को समन के रूप में एक ऐसा मुद्दा मिला है जो उसके हतोत्साहित कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार कर सकता है। फिर यदि मनमोहन इस मामले से बेदाग़ निकल जाते हैं तो कांग्रेस भाजपा सरकार पर हमलावर होने का कोई मौका नहीं छोड़ेगी। फिलहाल कांग्रेस की यही एकजुटता उसके भविष्य का निर्धारण करेगी।
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