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कायम हैं वजीरों और हाकिमों के, अंगरेजों के जमाने के ठाठ..!

खरी-खरी            Nov 06, 2015


sriprakash-dixitश्रीप्रकाश दीक्षित भोपाल मे पिछले दिनों पश्चिम मध्य रेल्वे द्वारा अपने इलाके के सांसदों की बैठक आयोजित की गई। इनमें दो मंत्री सहित 15 सांसद आमंत्रित किए गए थे पर आए केवल पाँच। बैठक राजधानी के सबसे शानदार होटल नूर-उस-सबाह मे रखी गई थी। बैठक में भाग लेने के लिए जबलपुर से 12 डिब्बों वाली विशेष ट्रेन से लद कर रेल्वे के करीब 15 अधिकारी भोपाल आए थे।बैठक का आयोजन रेल्वे के गेस्ट हाउस या कान्फ्रेंस हाल में किया जा सकता था पर सबसे महंगे होटल को चुना गया..!सांसदों के ठहरने का इंतजाम भी ऐसे होटलों मे किया गया था। अंग्रेजों द्वारा भारत छोड़े सत्तर बरस होने को आए लेकिन भारतीय रेल्वे में अंगरेजों के जमाने के जलवों का बोलबाला है। रेल मंत्री, रेल्वे बोर्ड के अध्यक्ष और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को विशेष सैलून अर्थात सितारा सुविधाओं से लक-दक रेल डिब्बा में सफर करने का विशेषाधिकार प्राप्त है। सब जानते हैं की ब्रिटिश हुकूमत के समय गोरे अंगरेजों को काले हिंदुस्तानियों से नफरत थी। इसके सबसे बड़े भुक्तभोगी महात्मा गांधी थे जिन्हे गोरों के डिब्बे से फेंक दिए जाने का किस्सा हर हिंदुस्तानी की जुबान पर है। अब सवाल यह है कि गोरे तो रहे नहीं तो काले मंत्रियों और अफसरों को किस चमड़ी से नफरत है जो ट्रेनों मे उनके लिए विशेष सैलून लगाए जाने की परंपरा अब तक जारी है। मुझे याद आ रहा है साल-1971 में तत्कालीन रेल मंत्री के0 हनुमंथैया और रेल्वे बोर्ड के अध्यक्ष बी सी गांगुली के बीच का विवाद जिसके चलते गांगुली सैलून मे ही धरना देकर बैठ गए थे। बहरहाल विशेष ट्रेन और विशेष सैलून का प्रावधान तत्काल खतम किया जाना चाहिए ।


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