ओम थानवी संपादक, जनसत्ता
किरण बेदी का भाजपा में शामिल होना दोनों के लिए ही फ़ायदेमंद है.किरण बेदी को एक ठिकाना मिल गया है और भाजपा को ऐसा उम्मीदवार मिल गया है जिसका नाम है, पहचान है और अन्ना आंदोलन से जुड़ी रही हैं.
किरण बेदी कुशल अधिकारी रही हैं, उन्हें कई बड़े पुरस्कार भी मिले हैं, लेकिन वह राजनीति कितनी जानती हैं या कितनी कर सकती हैं, इस पर संदेह तो होता ही है.छत्तीसगढ़ में अपनी एनजीओ की ओर से एक कार्यक्रम में शामिल होने पर उन्होंने जो यात्रा के झूठे बिल प्रस्तुत किए थे. उसमें उनकी बदनामी हुई थी.
राजनीति करते हुए कई चीज़ों का ख़्याल करना पड़ता है.तब भाजपा ने भी उनका विरोध किया था और उनकी ईमानदारी पर सवाल उठाए थे.अब भारतीय जनता पार्टी इस बात का फ़ायदा उठाना चाहती है कि आम आदमी पार्टी, जो अन्ना आंदोलन से निकली है, के सामने उसी आंदोलन की एक नेता को खड़ा कर दिया जाए.यह भाजपा की मौक़ापरस्ती तो है ही, किरण बेदी की भी है और ऐसा नहीं लगता कि किरण बेदी आम आदमी पार्टी के सामने मज़बूत विकल्प साबित हो पाएंगी.
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