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क्या वीआईपी का फोटो खिंचाऊ दौरा ज़रूरी है ?

खरी-खरी            Apr 19, 2016


ravish-kumar-ndtvरवीश कुमार। क्या रविवार को केरल के कोल्लम जाकर प्रधानमंत्री और राहुल गांधी ने बचाव और राहत कार्य में बाधा डाली है ? पूछे जाने से बेहतर है दोनों इस सवाल पर ख़ुद विचार करें और हो सके तो केरल के अफ़सरों को चिट्ठी लिखकर खेद जतायें । सार्वजनिक रूप से शाबाशी भी दें कि इन अफ़सरों ने वही कहा जो जनहित में उन्हें ठीक लगा। इन अफ़सरों का यह कहना कम साहसिक नहीं है कि दुर्घटना के चंद घंटों के भीतर इन दोनों का दौरा नई मुसीबतें पैदा कर गया । प्रधानमंत्री और राहुल गांधी को एक दो दिन बाद दौरा करना चाहिए था । हम दिखाऊ राजनीति की गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर में जी रहे हैं । नेता अपने हर लम्हा को एक फोटो समझता है और जनता उस फोटो को पारदर्शी । लिहाज़ा किसी से मिल कर बाहर आए नहीं कि एक फोटो ट्वीट हो जाता है । हर नेता अब इस प्रतिस्पर्धा का शिकार है । दुर्घटना हुई नहीं कि वहाँ पहुँचना जरूरी हो जाता है । एक संगठन तो तुरंत मौके से अपनी तस्वीर वायरल कराने लगता है जैसे सारा बचाव कार्य उसी के ज़रिये संपन्न हो रहा है । वहाँ और भी लोग होते हैं मगर वो तो अपनी तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल नहीं कराते । और तो और इन तस्वीरों को लेकर चेले चपाटी उसी वक्त फोटो के बहाने उनकी महानता का बखान करने लगते हैं जैसे पहुँचना ही अंतिम संवेदनशीलता है । किसी को सोचना चाहिए कि जहाँ सौ से अधिक लोग मरे हों, सैंकड़ों घायल हों और विस्फोटकों की गंध से इलाक़ा भरा हो वहाँ उसी वक्त प्रधानमंत्री का पहुँचना सही था ? जिस तरह से केरल के पुलिस और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रमुखों ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा है उससे लगता है कि इन दौरों की वजह से प्रशासन को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा है । अच्छी बात है कि इन अधिकारियों ने मीडिया में आकर बयान दिया है ताकि आगे के लिए कोई परंपरा बन सके । पूरी दुनिया में आपदा प्रबंधन का एक कोड है । भारत में भी है और वो भी काफी अच्छा है । इसके बावजूद हमारे नेता आपदा प्रबंधन और अपनी पब्लिसिटी में फ़र्क नहीं समझ पाते । केरल के पुलिस प्रमुख टी पी सेनकुमार ने कहा कि इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि जब उनकी पुलिस बचाव कार्य में लगी थी तब उन्होनें प्रधानमंत्री और राहुल गांधी के कोल्लम दौरे को लेकर आपत्ति जताई थी । सेनकुमार ने दो टुक कह दिया कि बेहतर होगा कि पीएम एक दिन बाद दुर्घटनास्थल पर जायें लेकिन पीएम उसी दिन आना चाहते थे । हम लोग काम में फँसे हुए थे । मैंने सीएम को भी समझाया लेकिन एक बार दौरे का एलान हो गया तो हमें सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उठानी पड़ी । केरल सरकार ने पीएम की गरिमा का ख़्याल करते हुए बयान दे दिया कि उनके दौरे से कोई मुश्किल नहीं आई लेकिन कोई भी सहज बुद्धि से सेनकुमार की बात को समझ सकता है । सोलह अप्रैल के एक्सप्रेस में इसी से जुड़ी एक और ख़बर छपी है । इस बार राज्य के स्वास्थ्य महानिदेशक आर रमेश ने कहा है कि प्रधानमंत्री और राहुल गांधी का बर्न वार्ड के आई सी यू में आना ग़ैरज़रूरी था । मुझे यह बयान पढ़ कर हैरानी हुई कि इतने बड़े नेताओं से आई सी यू में जाने की नादानी कैसे हो सकती है ? ख़ासकर बर्न वार्ड के आई सी यू में जहाँ संक्रमण का ख़तरा होता है । जले हुए को संक्रमण से बचाना ही सबसे बड़ी चुनौती होती है । स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक रमेश ने जो बयान दिया है वो और भी शर्मनाक है । सुरक्षाकर्मियों ने रमेश और डाक्टर को धकेल दिया । क्या वे नहीं देख सके कि अस्पताल में डाक्टरों को आना जाना जरूरी है न कि प्रधानमंत्री या राहुल गांधी का । उन्हें बहस करनी पड़ी कि उनका अंदर जाना बहुत ज़रूरी है तब जाकर अंदर जा सके । रमेश ने बताया कि मरीज़ जब नाज़ुक हालत में अस्पताल लाया जाता है उसे गोल्डन आवर कहते हैं ।उस दौरान मरीज़ की जान बचाने के लिए एक एक पल की क़ीमत होती है । आर रमेश ने कहा कि सिर्फ मोदी और राहुल ही नहीं उनके साथ अन्य लोग और फ़ोटोग्राफर भी आई सी यू में घुस आए । मैंने इसका विरोध किया लेकिन हमारी नहीं सुनी गई । फ़ोटोग्राफर ? आई सी यू में ? आप रविवार को चैनलों पर चली एक एक तस्वीर को याद कीजिये । लगता था कि हर जगह कैमरे के पहुँचने का बंदोबस्त किया गया है । सर्जरी टीम की एक नर्स ने बयान दिया है कि उसे और उसकी चार सहयोगियों को प्रधानमंत्री के सुरक्षाकर्मियों ने रोक दिया । वे आपरेशन थियेटर में नहीं जा सकीं । उस वक्त आई सी यू में भर्ती एक मरीज़ की हालत काफी बिगड़ गई थी । हमें भागकर दूसरे ब्लाक में जाना था लेकिन आधे घंटे तक के लिए रोक दिया गया । क्या पता इन दौरों की वजह से किसी की जान चली गई हो । बकायदा इसकी जाँच होनी चाहिए कि क्या प्रधानमंत्री और राहुल गांधी और उनके साथ गए तमाम लोगों ने आई सी यू में घुसने से पहले जूते उतारे थे ? अस्पताल का दिया एप्रन पहना था ? टोपी पहनी थी ? फ़ोटोग्राफर कैसे आई सी यू में चले गए ? इतनी जल्दी उनका पास कैसे बन गया ? किसकी इजाज़त से वे आई सी यू में गए ? आर रमेश के बयान से लगता है कि उनके विरोध के बावजूद आई सी यू में नेता और उनके साथ कुछ लोग गए । आई सी यू का अपना एक प्रोटोकोल होता है जो पीएम के प्रोटोकोल से भी ज़्यादा संवेदनशील होता है । ज़रा चूक संक्रमण फैला सकती है और मरीज़ मर सकता है। जरूरी है कि इस चूक पर दोनों नेताओं का पक्ष सामने आना चाहिए । इन दोनों नेताओं को पत्र लिखकर अफ़सोस जताना चाहिए और आपस में तय करना चाहिए कि भीषण दुर्घटना स्थल पर तुरंत पहुँचने से बचेंगे । कुछ साल पहले जब आंतकवादी घटनाएँ लगातार हो रही थीं तब ये बहस भी हुई थी कि क्या उस वक्त जब अस्पतालों में जान बचाने के लिए सौ चीज़ों की जरूरत होती है वीआईपी का फोटो खिंचाऊ दौरा ज़रूरी है ? जहाँ तक मुझे ध्यान आ रहा है कि वीआईपी ने जाना कम कर दिया था । ज़रूरत है फिर से इस पर बात हो और एक मज़बूत परंपरा क़ायम हो । इनके सार्वजनिक बयान से लोगों में भी समझ बनेगी कि हमारे नेता का न जाने का मतलब हमेशा लापरवाही नहीं होती है । कई बार नहीं जाना भी ज़रूरी हो जाता है। KASBA


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