ममता यादव
मध्यप्रदेश के अनुपूरक बजट सत्र के दौरान विरोध के लिये उतरी कांग्रेस धरने पर तो बैठ गई लेकिन विधानसभा के गर्भगृह के भीतर ही। आज के हुये पूरे राजनीतिक घटनाक्रम पर अगर गौर करें तो ध्यान देने लायक बात यह है शायद कांग्रेस की रणनीति विधानसभा में भाजपा समझ नहीं पाई। अब स्थिति यह हो गई है कि बुरे फंसे...दोनो ही....लेकिन पीडि़त किसान को इससे कुछ फायदा होता नहीं दिखाई देता।
बहरहाल अभी तक मिली जानकारी के अनुसार धरने पर बैठा कांग्रेस का विधायक दल विधानसभा में अंदर है और विधायकों के समर्थक बाहर। इससे भी
दुर्भाग्यपूर्ण बात यह हुई कि मीडिया को अंदर नहीं जाने दिया गया? कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह विधायकों से गुफ्तगू करके चलते बने। संसदीय कार्यमंत्री नरोत्तम मिश्रा और भूपेंद्र सिंह भी कांग्रेस को मनाने की विफल कोशिश करके चले गये। पीछे मुंह ताकते रह गये कांग्रेसी समर्थक और मीडिया जो विधानसभा के बाहर आगे की स्थिति जानने के लिये गेट पर जमे हुये हैं।
सूत्रों की बात पर यकीन करें तो अंदर के लोगों के लिये बकायदा गद्दे वगैरह सोने के लिये पहुंचा दिये गये हैं और खाने-पीने का भी इंतजाम कर दिया गया है।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद एक सवाल जो रह-रह कर उठ रहा है वह यह कि यह धरना सत्र चलने के दौरान क्यों नहीं दिया गया? सत्र खत्म होने के बाद कांग्रेस ने यह कदम क्यों उठाया। इस सबसे किसान का तो कोई भला होने वाला है नहीं यह तो तय है। क्योंकि सदन की कार्रवाई अनिश्चितकाल के लिए स्थगित होने के बाद यह घटनाक्रम हुआ। इस पूरे तमाशे में फायदा सिर्फ सत्तापक्ष और विपक्ष का ही हुआ है क्योंकि कांग्रेस जहां बखेड़ा खड़ा करने के अपने मकसद में कामयाब रही, वहीं बीजेपी भी बड़ी होशियारी से सरकारी काम निपटाकर मतलब निकालकर चली गई। मुंह ताकता रह गया मीडिया और प्रदेश की जनता।
अब बैठे रहो अध्यक्ष की कुर्सी तक हां एक बात और सरकार ने विधानसभा परिसर में मीडिया के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी है कांग्रेसी क्या चाहते हैं, उनकी मांग क्या है? यह जनता को न तो पता चलेगा और जनाक्रोश भी नहीं पनपेगा
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