धीरज सिंह
कुछ गांधी भक्तो का मानना है कि गांधी जी ने चरखा चला कर समाजवाद के सिद्धांत को जनम दिया था,चरखा चलाने से रोजगार की गारंटी होगी, समाज मे समानता आएगी,देश तरक्की की राह पर चल निकलेगा ..
मै कहता हूं चरखा अगर चलेगा तो मुल्क गरीब होगा, चरखे से देश अमीर नहीं हो सकते? चरखा तो हम बरसों से चला रहे है,पांच-छः हजार साल से चला रहे हैं, कौन सी अमीरी आई?अमीरी आधुनिक तकनीक से आती है, क्योंकि तकनीक हजार आदमी का काम अकेले कर देती है।
तकनीकी से हमें आराम मिलता है, आराम से बैठा आदमी नए आविष्कार को अंजाम दे पाता है, नई चीज सोच सकता है,और एक चक्र शुरू हो जाता है, जिससे समृद्धि आती है और इस गांधी भक्त उलटी बात समझा रहे है ।
जो देश सोचेगा पीछे लौटने की, और निचे गिरने की तो वह आगे कैसे बढेगा?जो कौम श्रम का आदर करता है वो कभी आधुनिक तकनीक विकसित नहीं कर सकता है, टेक्नालॉजी के अतिरिक्त धन कभी पैदा नही होता,इसलिए जो कौम जितना अधिक विश्राम की आकांक्षा करती है, उतने टेक्नालॉजी को विकसित करते चले जाते हैं, यूरोप और अमेरिका इसके सबसे अच्छे उदाहरण हैं।
दुनिया का लगभग सारा आविष्कार इन्ही लोगों ने किया है। मेहनत से संपत्ति पैदा नही होती है,हमे लगता है कि श्रम से समृद्ध आती है, जो कि पूर्णतया गलत है।मेरी सोच थोडी उलट है, जो कौम विश्राम खोजने की कोशिश करती है, वह श्रम से बचने की कोशिश मे टेक्नालॉजी का विकास करती है, टेक्नालॉजी श्रम का विकल्प है। चाहे वह गांधी हो,नेहरू हो, विनोबा भावे हो सबने कहा है कि आराम हराम है,मगर आदमी श्रम इसी लिए करता है कि वह आराम कर सके,आराम जीवन का लक्ष्य है, श्रम नहीं।
हम पैदल चलने से बचना चाहते है इसलिए साईकिल बनाई, पैंडल से बचना चाहते थे इसलिए मोटर साइकिल बनाई, फिर कार बनाई गई फिर हवाई जहाज बनाया गया, जब कि हम पैदल भी दूरी नाप सकते थे? मगर हमने टेक्नोलॉजी विकसित की..और महात्मा गांधी के भक्त चरखे से उपर देखना ही नहीं चाहते? इनको चरखा चलाने मे देश की तरक्की दिखाई देती है। चरखा चलाने से देश पतन की तरफ जाएगा। पता नही गांधी भक्तों को चरखा चलाने में क्या मजा आता है।
जय हिंद
धीरज सिंह के फेसबुक वॉल से
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