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गाय के नाम पर गंधाता देश,नारे देने वाले एक गाय पालकर तो दिखायें

खरी-खरी            Oct 04, 2015


pawan-lalchandपवन लालचंद गाँव में गाय पालते कभी सोचा भी नहीं था कि उसके नाम पर इस तरह गंधाएगा देश एक समय.. बहुत बच्चे होते थे तब का याद है जब जहाँ मवेशियों को बाँधा जाता था वहीं गड्डा खोद कर गाय को दफ़नाया जा रहा था लोग थाली कटोरों में लूण भर—भर आ रहे थे और औरतें गड्डे में नमक डाल मिट्टी को चुचकार कर माथे लगाती एक तरफ बढ़ जा रही थी तब मेरे दादा ने बताया था कि जो गाय मेरे पैदा होने के बाद बरसों से दूध पिला रही थी वो आज तड़के मर गयी है, सो बछिया से बुढ़ाने तक घर वालों को दूध पिलाती रही है इसी आँगन से। लिहाजा अब इसी ऑंगन में उसे समाने दिया जाय...। फिर बड़ा होने तक कई घरों में ऐसा होते देखा.. गांव में जिनके गऊ नहीं होती वे भी सुबह सवेरे चुल्हे की सकती रोटी पहने गाय को दे आते फिर बच्चे बड़ों को खाना दिया जाता....आज माँ गाँव में अकेली है घर में गाय नहीं है फिर भी चुल्हे की रोटी गाय के लिये निकाली जाती है भले गाय तक वो शाम को ही पहुँचे...। ये तो दिल्ली क्या आये कि गाय का एक और रूप रंग राजनीति दिखी...सड़क पर पॉलिथीन खाती गाय दिखती और कॉलेज में दोस्त लोग गोरक्षा की दुहाई देते नहीं अघाते..। तब भी यहीं कहता था कि बातें न करों गाय का दूध कैसा होता है गाय का चारा कैसा क्या होता है गोबर कैसा होता है जानते नहीं हो ओर सड़क पर गोरक्षा के नारों से सडांध फैलाते हो...। आज भी यहीं कहना ज़रा एक बार एक गाय पाल कर भी तो दिखाओ...किसी गाय के लिये किसी इंसान को मारने से समस्या हल नहीं होगी ...गाय पालो उसे सच्ची इज़्ज़त सम्मान स्थान चारा दो फिर देखो दूसरा आपसे ज्यादा सम्मान देगा।


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