डॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी
8 दिसंबर को इंदौर में प्रदर्शन के बहाने दंगे के हालात देखने को मिले। हालात का पूवार्नुमान शासन-प्रशासन में बैठे लोग नहीं कर पाए। पूरा शहर अराजकता की भेंट चढ़ गया। अब भी नहीं जागे, तो हालात बदतर हो सकते है और इसका खामियाजा आने वाली पीढि़यों को भुगतना पढ़ेगा। उत्तरप्रदेश में अगले साल होने वाले चुनाव की तैयारी राजनैतिक दल अपने-अपने हिसाब से कर रहे है। पहले लखनऊ में हिन्दू महासभा के अध्यक्ष का आपत्तिजनक बयान आता है, गिरफ्तारी होती है और विरोध अन्य राज्यों में भी होने लगता है। मांग यह होती है कि हिन्दू महासभा नेता को फांसी पर लटका दिया जाए। यह भारत को इस्लामिक स्टेट बनाने की साजिश का सीधा-सीधा प्रयास है। अगर किसी ने गैरकानूनी काम किया है, तो कानून अपने तरीके से ही काम कर सकता है और जो सजा उपयुक्त होगी, मिलेगी ही।

कल के अखबार में छाप दिया गया था कि इंदौर की फिजा बिगाड़ने की साजिश हो रही है। इसके बाद भी प्रशासन नहीं जागा और आज दंगा हो गया।
हिन्दू महासभा अध्यक्ष के बयान के बाद इंदौर में सोमवार 7 दिसंबर की शाम को पुलिस को एक ज्ञापन सौंपा जाता है और मांग की जाती है कि जब तक हिन्दू महासभा नेता को फांसी नहीं होगी, चैन से नहीं बैठने देंगे। ज्ञापन देने वाले लोग कोई मुस्लिम समाज के अधिकृत प्रतिनिधि नहीं थे। ये वे लोग थे, जो किसी तरह मुस्लिम नेता का खिताब पाना चाहते थे। उनमें से कुछ तो मोहल्ले और नगर निगम के स्तर की राजनीति भी करते ही है।
मध्यप्रदेश एक शांतिप्रिय राज्य है और इसीलिए वह सिमी और उसके जैसे अन्य प्रतिबंधित संगठनों के निशाने पर भी है। सिमी जैसे संगठन को दूध पिलाने का काम जो लोग करते हैं उनके नाम जगजाहिर हैं। यहां तक की कुछ अखबारों में उनके नाम को लेकर इस तरह के समाचार प्रकाशित भी हुए थे कि इंदौर में दंगा फैलाने की साजिश की जा रही है, लेकिन इसके बावजूद प्रशासन सोया रहा।
6 दिसंबर को यूं ही संवेदनशील माना जाता है। उसके ठीक एक दिन पहले कुछ लोग पुलिस कंट्रोल रूम के सामने प्रदर्शन करते है। यह बाबरी कांड की बरसी के एक दिन पहले बनाया गया माहौल था। 6 दिसंबर को मुस्लिम क्षेत्रों में चहल-पहल ज्यादा ही थी। तय किया गया कि 7 दिसंबर को पुलिस को ज्ञापन दिया जाएगा। बहाना मिल गया हिन्दी महासभा अध्यक्ष का बयान। 7 दिसंबर की रात पुलिस अधिकारियों को ज्ञापन देने के बाद ऐलान कर दिया जाता है कि 8 दिसंबर को प्रदर्शन किया जाएगा।
8 दिसंबर की सुबह मुस्लिम क्षेत्रों में चहल-पहल बढ़ जाती है। प्रदर्शन के लिए जो जगह तय की गई, वह पुलिस कंट्रोल रूम के सामने, हाईकोर्ट के करीब और शहर के सबसे व्यस्ततम इलाके को। बात प्रदर्शन की थी, लेकिन देखते ही देखते वाहनों की तोड़फोड़ और मारपीट तथा आगजनी होने लगी। आनन-फानन में दस थाना क्षेत्रों की पुलिस को बुलाकर किसी तरह मामला ठंडा किया गया।

लेकिन चिंगारी अभी भी राख के ढेर में छुपी है। जो लोग प्रदर्शन के लिए आए थे, उनमें से अधिकांश को तो प्रदर्शन का कारण भी पता नहीं था। कुछ को ही यह जानकारी थी कि हिन्दू महासभा अध्यक्ष को गिरफ्तार किया जा चुका है। यह बात नेताओं को पता थी कि भारत में कानून के हिसाब से ही सजा दी जा सकती है। ऐसे में हिन्दू महासभा अध्यक्ष को फांसी पर लटका देने की बात ही दुर्भावनापूर्ण लगती है। नेताओं को पता है कि उनकी मांग मानी नहीं जा सकती और यहीं वह बात है जिसके भरोसे वे नासमझ मुस्लिमों को भड़काते रहे।
इंदौर के पास महू एक बड़ी फौजी छावनी है। आईएस और आईएसआई की निगाहें यहां की सैन्य गतिविधियों पर हो सकती है। सिमी की गतिविधियां भी महू क्षेत्र के जंगलों में ही संचालित पाई गई थी। ऐसे में सिमी के शुभचिंतकों की गतिविधियों पर निगाह रखने की जरूरत है। स्थानीय राजनीति के नाम पर कुछ लोग गैरकानूनी गतिविधियां संचालित करने में लगे हैं।

इंदौर से ही प्रकाशित होने वाले दैनिक संझा लोकस्वामी ने दंगे के एक दिन पहले ही मुखपृष्ठ पर यह खबर प्रकाशित की थी कि इंदौर में सिमी के सरपरस्त रहे लोग फिजा बिगाड़ने की साजिश कर रहे हैं। इसके बाद भी प्रशासन नहीं चेता। यहीं अखबार 3 दिसंबर को यह समाचार भी प्रकाशित कर चुका है कि आईएसआई के निशाने पर महू की सैन्य छावनी हैं। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि इंदौर की फिजा बिगाड़ने की साजिश की आशंका पत्रकारों को हो जाती है। अखबार में दंगा कराने की नीयत वाले नेताओं के नाम और फोटो तक छप जाते है, लेकिन पुलिस के आला अफसर बेखबर रहते हैं। वे अखबार देखकर ही सतर्क हो जाते, तो कम से कम ऐसी नौबत तो नहीं आती।
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