Breaking News

जनता की जरूरतों पर भारी सिंहस्थ,पीने को पानी नहीं,अस्पताल में डॉक्टर नहीं,स्कूलों में मास्टर नहीं

खरी-खरी            Apr 25, 2016


sriprakash-dixitश्रीप्रकाश दीक्षित। सिंहस्थ पर्व जैसे विशुद्ध धार्मिक आयोजन में सरकार की भूमिका कानून व्यवस्था और यातायात प्रबंध के अलावा ज्यादा से ज्यादा साफ सफाई और पानी की आपूर्ति तक सीमित रहनी चाहिए। इसके बरक्स उज्जैन मे सिंहस्थ सरकारी आयोजन बन कर रह गया है और साधु संत और अखाड़े अतिथि की भूमिका में सिमट गए हैं। सब जानते हैं कि सिंहस्थ आस्था का पर्व है और धर्मप्रेमी जनता तथा अंधभक्ति और अंधविश्वास मे डूबे श्रद्धालु खुद ब खुद वहाँ पहुँचते हैं। उन्हें बुलाने के लिए प्रचार की कतई जरूरत नहीं होती है। पिछले तीन सिंहस्थ के समय मै मध्यप्रदेश के सरकारी प्रचार विभाग में कार्यरत था और पर्व के समय वहाँ जाता भी रहा था। तब केवल नाम मात्र की सरकारी विज्ञापनबाजी होती थी। इस बार ऐसा लग रहा है कि सिंहस्थ में ज्यादा से ज्यादा लोगों की भागीदारी को सरकार ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है। तभी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर मीडिया में विज्ञापनबाजी पर पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है। मोटी रकम खर्च कर डिस्कवरी और नेशनल ज्योग्राफिक जैसे चैनलों को भी विज्ञापन दिए गए हैं। अखबारों और न्यूज़ चैनलों की खूब चाँदी है। इसके बावजूद पहले शाही स्नान मे सरकारी अनुमान से नब्बे प्रतिशत कम लोग ही पहुंचे। जो पहुंचे भी उनकी भीषण गर्मी में 10 किमी पैदल चलने से हुई दुर्दशा का हम और आप अनुमान ही लगा सकते हैं। उधर गर्मी के इस मौसम में पूरा प्रदेश जल संकट से जूझ रहा है,बुंदेलखंड में पानी का अकाल चरम सीमा पर है, पर सरकार सिंहस्थ की आस्था में डूबी हुई है। clip-sukha-indian-express इंडियन एक्सप्रेस ने भोपाल संवाददाता मिलिंद घटवई की रिपोर्ट पहले पेज पर छापी है जो बुंदेलखंड का दर्द बयान कर रही है। clip-bhaskar-sookha दैनिक भास्कर ने मालवा के धार में जल संकट की खौफनाक खबर फोटो के साथ पहले पेज पर प्रकाशित की है। clip-sookha-2 भास्कर ने ही भोपाल के कोलार इलाके मे गंदे पानी की पूर्ति की खबर छापी है।पत्रिका ने मंडला जिले के गाँव का फोटो छापा है जहां लोग बच्चों को कुएं मे उतार कर पानी भरवा रहे हैं..। clip-sookha-naidunia नईदुनिया ने बैतूल जिले के दूरदराज़ का फोटो छापा है जिसमे एक महिला गड्ढा खोद कर पानी की तलाश कर रही है। ऐसे मे पूरी सरकार का उज्जैन तक सिमट कर रह जाने का क्या अर्थ है..? प्रदेश के सरकारी अस्पतालों और स्कूलों की दुर्दशा और उनमे डाक्टरों और मास्टरों की कमी पर खबरें छपती ही रहती हैं।


इस खबर को शेयर करें


Comments