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जाट आंदोलन! आरक्षण या साज़िश ?

खरी-खरी            Mar 31, 2016


j-s-sandhuजगदीप सिंह सिंधु। सम्पूर्ण विकास का वायदा करके स्थापित हुई बीजेपी सरकार आखिर क्यों समय रहते प्रदेश में व्यापत आक्रोश को समझने में नाकाम रही। कई सवालों के साथ—साथ ये भी समझना बहुत आवश्यक है । हरियाणा में जो हुआ उसको सही तरीके से समझने के लिए सत्ता परिवर्तन और सत्ता एकाधिकार की पृष्ठभूमि को जानना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। हरियाणा गठन के 50 साल बाद तक भी यहाँ बीजेपी का कभी आधार बन नहीं पाया। कभी भी बीजेपी के हिंदुत्व हार्ड लाइन एजेंडे को हरियाणा में स्वीकारोक्ति नहीं मिली। अधिकतर सत्ता पर जाटों का ही वर्चस्व रहा। गैर जाट मुख्यमंत्री भजन लाल ने भी जाटों की कभी अनदेखी नहीं की । लेकिन कांग्रेस की निरन्तर विफलाओं और पारंपरिक विपक्षी पार्टी इ ने लो के सुप्रीमो के जेल में चले जाने से उत्पन हुयी स्थिति में जिस प्रकार बीजेपी को भरपूर समर्थन सभी ३६ बिरादरियों और खास कर जाटों से एक तरफा मिला और बीजेपी ने सफलता पायी थी उसको बीजेपी अपना स्थाई गढ़ बनने में जुट गयी। लेकिन बीजेपी प्रदेश में जाट नेतृत्व को स्थापित नहीं कर पाई । उसको बीजेपी संतुलन में लाने में कहीं चुक गयी । पिछली कांग्रेस सरकार ने भी जाटों को आरक्षण का वादा करके सत्ता पाई थी लेकिन अपने 10 साल के कर्यकाल में केवल अंतिम एक साल में ही उस पर काम किया और उसकी सन्तुति के लिए उसे केंद्र सरकार के भरोसे छोड़ दिया जिसको बाद में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया। जब से प्रदेश में नयी सरकार का गठन हुआ तब से जाट अपने हक के लिए कई बार मुख्यमंत्री से मिले लेकिन कोई ठोस जवाब नहीं मिलने के चलते जाटों में उपेक्षा का भाव व असंतोष बढ़ने लगा था । विकास को गति देने के लिए नए निवेश की संभावनाओं के तहत विदेशी कम्पनियों को निमंत्रण , बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के अभियान को साकार करने के सपने देख रही सरकार यकायक एक नए भंवर में फस गयी। प्रशाशनिक अनुभवहीनता की छाप सरकार के कार्य पे पडने भी लगी थी। विधायक दल के अलग अलग गुटों में भी मुख्यमंत्री की कार्यशैली को ले कर मन मुटाव सतह पर आता रहा । दूसरी जाति के गुट जाट प्रतिनिधियों के खिलाफ लामबंद होते रहे और बार बार जाट बहुलता पे सवाल खड़े करने से नहीं चूके। डेढ़ साल बीतने पर भी जब सरकार के काम के तरीके से आमजन का मोह भी भंग होने लगा था क्योंकि प्रदेश में फसलों के हुए नुकसान और मुआवजों में की बन्दर बाँट समय पे खाद बीज की उपलब्धता का न होना सिंचाई की व्यवथाओं में आमूलचूल परिवर्तन की विफलता भी कृषक समाज को फिर से सोचने पे मजबूर करने लगी थी । हरियाणा और हरयाणवी जाटों को समझना बहुत साधारण है कियूंकि सवभाव से सरल और मेहनतकश ये वर्ग सामाजिक सहयोग को हमेशा मानता आया है। अपनी मेहनत के बल पर ही पिछले दशकों से ये प्रदेश देश के समृद्ध प्रदेश और प्रति व्यक्ति आय में सर्वोपरि बना है। करीब ढाई करोड़ की जनसंख्या वाला ये प्रदेश देश की कुल आबादी का केवल दो प्रतिशत ही है। लेकिन देश के लिए 75 प्रतिशत से ज्यादा ओलिंपिक / एशियाड मैडल ये प्रदेश अर्जित करता है वो भी ज्यादातर मुक्केबाजी कुश्ती और अब बैडमिंटन(सायना नेहवाल) । एक तथ्य भी है सभी माडल जीतने वाले महिला पुरुष खिलाडी व भारतीय सेनाओं में जवान से ले कर अधिकारी जाट ही है । भारतीय सेना भी हरियाणा की महिलाओं का योगदान सबसे अधिक है वर्तमान में ऑफिसर के रूप में । यहाँ की कृषि और पशुधन की उत्पादकता भी सबसे अधिक है । यहाँ एक कहावत बहुत प्रचलित है " जाट मरया जब जानियो जब तेरहवीं हो ले " । अपनी धुन और लगन के पक्के जाट हमेशा ही देश की सुरक्षा में बलिदान देते रहे । साहस शौर्य के प्रतीक जाट बौद्धिक और राजनितिक तौर भी समृद्ध है । करीब 23 साल पहले भी जाटों ने आरक्षण की मांग को लेकर वोट क्लब पे प्रदर्शन किया था तब लगभग दो लाख जाट वह इक्क्ठा हुए थे । लेकिन किसी को कभी कोई नुकसान नहीं पंहुचाया और न ही कभी इस तरह की कोई घटना हुई । हरियाणा के अस्तित्व में आने के 50( 1966-2016)साल तक ये प्रदेश मेहनत को मूल मंत्र मानता रहा। बंसी लाल के कार्यकाल में हरियाणा ने अभूतपूर्व विकास किया । नए शहर एवं उद्योग विकसित हुए। हरियाणा ने राजस्थान के बॉर्डर से लगाते हुए कुछ दक्षिणी जिले जो सूखे और पिछड़े माने जाते थे और जहाँ कोई राजनितिक बौद्धिकता भी नहीं थी को भी विरासत स्वीकार किया । हरियाणा ने पंजाब से अलग होने के बाद पंजाबी समुदाय ( 1947 के विस्थापित शरणार्थी पंजाबी वर्ग } को सम्मान पूर्वक स्वीकारते हुए यहाँ समाहित किया । जो अब हरियाण की लगभग 26 प्रतिशत जनसँख्या है। ये वर्ग हरियाणा की राजनीती में धीरे धीरे सकिर्य भी हुए और आगे भी बढे लेकिन सत्ता के निर्धारण में इनकी भूमिका नगण्य ही रही ! वर्तमान मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर भी उसी समुदाय से आते हैं । सत्ता परिवर्तन के साथ ही पहचान के लिए बढ़ती महवकांक्षा के तहत कई संकेत इस प्रकार के स्थापित किये जाने लगे जो साफ तौर पे जाटों के सम्मान को चुनौती देते दिखाई पड़ने लगे । हरियाण में बेटी बचाओ अभियान की ब्रांड अंम्बेसडर परनीति चोपड़ा को बनाने से लेकर नए मुख्या सचिव की नियुक्ति या फिर कुरुक्षेत्र के संसद राजकुमार सैनी के ओ बी सी ब्रिगेड बनाने और जाटों को चुनौती देने के वक्तव्य हो या सवास्थ्य मंत्री के तीखे तेवर कोई भी अवसर नहीं चूका गया । श्याम गोदारा , प्रसिद्ध क्रिमिनल वकील का मानना है कि हरियाणा के सभी जिलों में जाट आरक्षण की मांग बराबर रही और अधिकतर जिलो में प्रदर्शन शांति पूर्वक ही चला । लेकिन अबकी बार सभी जाट समुदायों से और खाप के मुखियाओं से एक भूल हुयी है के उन्होंने पहले ही आरक्षण के आंदोलन में होने वाले उपदव के षडयंतर को नहीं पहचाना और इसमें हिंसा होने की सम्भावनाओ के चलते घोषणा नहीं की के अगर कोई भी हिंसा हुई तो आंदोलन वापिस ले लिया जायेगा। जिसका फायदा षडयंतरकारी तकताओं ने उठाया और हरियाणा में जातिवाद का जहर घोल कर सदियों से चली आ रही सदभावना और भाईचारे की परम्पराओं को छिन भिन कर दिया । ये एक तरह से जाटों को बदनाम करने की घिनोनी साज़िश लगाती है। हरियाणा में सरकार ने भी समय रहते इस मुद्दे पर कोई गंभीरता नहीं दिखाई । प्रदेश के पुलिस डी जी पी के प्रेस कॉन्फ्रेंस में कई स्थानो पे पुलिस के उच्च अधिकारीयों की विफलता को स्वीकार करना भी किसी पूर्व नियोजित योजना की और इशारा करता है । जिस प्रकार रोहतक जहाँ सबसे पहले हिंसा भड़की और हिंसा हुयी पुलिस रेंज के आई जी , श्री कांत जाधव का निलंबन व् अन्य अधिकारीयों को आनन फानन में स्थांतरित किया गया वो सरकार की कार्यशैली को संदेह के घेरे में साफ तौर पे लाती है । अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) पी के दास ‘यह रोहतक में आंदोलन और संबंधित हिंसा नियंत्रित करने में कर्तव्यों का ठीक तरीके से निर्वहन नहीं करने के आरोपों के आधार पर किया गया है।’ ऑल इंडिया जाट आरक्षण संगठन समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष यशपाल मलिक ने कहा, ‘हरियाणा सरकार की ओर से कोई ठोस प्रस्ताव नहीं दिया गया है। भाजपा सरकार जाटों को मूर्ख बनाने का प्रयास कर रही है क्योंकि जाटों को आरक्षण देने के संदर्भ में उसके इरादे ठीक नहीं हैं।’ सर्वदलीय बैठक के बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि जाट को आरक्षण देने के लिए विधेयक का मसौदा तैयार करेगी और इस संदर्भ में सभी दलों से सुझाव मांगे हैं। यशपाल मलिक ने कहा, ‘जाटों को आरक्षण देने में सिर्फ मुख्यमंत्री को समस्या है। भाजपा में शेष नेता आरक्षण देन के पक्ष में हैं।’ उन्होंने आरोप लगाया, ‘खट्टर की जातिवादी मानसिकता है क्योंकि वह जाट नहीं है। वह खुद को गैर जाट नेता के तौर पर साबित करने का प्रयास कर रहे हैं।’ भूतपूर्व मुख्य मंत्री भूपेंदर सिंह हुडा , वर्तमान वित्त मंत्री कै अभिमन्यु के गृह नगर रोहतक , जहां पंजाबी समुदाय का शहरी व्यापारी जनसख्या में बाहुल्य है और स्थानीय विधायक मनीष ग्रोवर है जिनका कै अभिमन्यु से 36 का आंकड़ा जग जाहिर है से हिंसा के केंद्र का उभारना भी आश्चर्यजनक है। विशेष वर्ग के लोगो के द्वारा जाटों के प्रति भ्रामक प्रचार और गोलबंदी के परिणाम इतने घातक होंगे ये कभी प्रदेश सरकार ने सोचा न होगा ! या फिर ये सब राजनितिक पृष्ठभूमि की नयी ज़मीन को बनाने की कवायद की सोची समझी रणनीति का हिस्सा समझा जाये । जाटों को आरक्षण का लाभ देने में और उनकी मांगो का यथोचित समाधान करने में प्रदेश सरकार की संवेदनहीनता व् उपेक्षा का साफ कारण और जाट प्रतिनिधियों को संतोषजनक जवाब ने देने की स्थिति भी इस आंदोलन की पृष्ठभूंमि से अलग नहीं । जबकि अन्य राज्यों में जाटों को आरक्षण का लाभ पहले से प्राप्त है। जाटों में आरक्षण के लिए संघर्ष नयी सदी में बदलाव व् बढ़ती जनसख्या और घटे संसाधनो से उपजी सामजिक विषमताओं तथा कृषि खेती में घाटे का सौदा होने से सिकुड़ती आर्थिक स्थिति के संकट से उत्पन हुआ है। केवल 5 प्रतिशत जाटों के पास समुचित जमीन है बाकि 90 प्रतिशत जाटों के पास अब उतनी भूमि नहीं रही के उदारीकरण और उपभोगता वाद के दौर में वो पुरे परिवार का भरणपोषण कर सके । इसके पीछे और भी कई सामाजिक विषमताएं वयापत हैं । शिक्षा के लगतार निज़करण से बढ़ती खर्चीली पढ़ाई , स्वास्थ्य सेवाएं व रोजगार में प्रतिस्पर्धा भी मूल कारणों में है । दरअसल गहराता आर्थिक संकट और विकास का मौजूदा मॉडल उन समुदायों को भी आरक्षण की ओर धकेल रहा है जिस को लेने की कुछ दशकों पहले अपनी जरुरत नहीं समझते थे ।


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