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जो पूछते हैं कहाँ है असहिष्णुता, वे जरा यह तसवीर ही देख लें।

खरी-खरी            Nov 23, 2015


om-thanvi-001ओम थानवी जयपुर के नाम पर शासन की वह छवि मैं शायद कभी नहीं भूल पाऊँगा। कलाकार अनीश आहलुवालिया को उसके केशों से खींचकर ले जाती पुलिस। एक दूसरे कलाकार को भी पुलिस ने इसी तरह धरा और थाने में ला पटका। उनका गुनाह? वे तीसरे कलाकार सिद्धार्थ करारवाल की कलाकृति को पुलिस द्वारा जबरन उतारे जाने का प्रतिरोध कर रहे थे। कलाकृति प्लास्टिक की गाय का प्रारूप थी, हवा में टँगी— प्रतीकात्मक तौर पर गाय की उपेक्षित और अधरझूल स्थिति की परिचायक। हवा में टँगी "गाय" देखकर किसी गऊवादी जुंडली ने पुलिस को फोन किया था। मौके पर दोनों को समझाने की कोशिश हुई कि ये कला की अभिव्यक्ति है। पर गाय का मामला हो तो समझ घास चरने चली जाती है। कलाकृति उतार कर माला पहनाई गई, फिर उसे भी थाने पहुँचा दिया। भले ही मुख्यमंत्री राजे ने दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की है, पर असल गाँठ उस असहिष्णुता की है जिसने सारे देश को मथ रखा है। जयपुर की घटना ने जले पर नमक छिड़का है। जो पूछते हैं कहाँ है असहिष्णुता, वे जरा अखबार में छपी यह तसवीर ही देख लें। हो सकता ऐसा कलारूप किसी को न सुहाता हो, पर इसके लिए कला और कलाकारों के अधिकार पर हमला गऊवादियों और पुलिस दोनों की बुद्धि का दिवाला है। और इसकी 'ताकत' उन्हें कहाँ से मिलती है, किससे छुपा है? लेख्क जनसत्ता के संपादक रहे हैं यह आलेख उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है।


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