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तो क्या रेप सिर्फ प्रोपेगेंडा है?

खरी-खरी            Mar 09, 2015


वुसतुल्लाह ख़ान बीबीसी प्यारे बच्चों. आठ मार्च को पूरे विश्व की तरह भारत और पाकिस्तान में भी नारी दिवस मनाया गया. हालांकि पाकिस्तान और भारत में अलग से यह दिवस मनाने की इसलिए ज़रूरत नहीं क्योंकि यहां तो रोज़ ही नारी दिवस है. नारी का सम्मान बच्चों, आपने देखा होगा कि नारी को हमारा समाज कितना सम्मान देता है. बस में भीड़ हो और कोई औरत सवार हो तो कोई न कोई उसके लिए सीट ख़ाली कर देता है. बिल जमा कराने की लाइन लगी हो तो मर्द लोग ख़ुद से ही पीछे हट जाते हैं ताकि बहन, बेटी, बहू जल्दी से बिल जमा करा के घर का रास्ता ले और बाक़ी समय अपने बच्चों की तरबियत और परिवार की सेवा के बारे में सोचें. बच्चों, आपने यह भी देखा होगा कि अगर बाज़ार में कोई अकेली औरत जा रही हो तो अजनबी मर्द भी उसके हाथ का सामान उठाने में मदद करने की कोशिश करते हैं. कोई ख़तरा नहीं रात को अगर कोई लड़की बस या रिक्शे के इंतज़ार में फुटपाथ पर खड़ी हो तो कई गाड़ियां रुक जाती हैं और हर कोई मुंडी निकाल के पूछता है, बहनजी, भाभीजी, मांजी, आपको कहां जाना है? क्या मैं पहुंचा दूं? मेरे लायक कोई सेवा? रात बहुत हो गई है, अब तो आप मेरे निवास पे ही चल के थोड़ा आराम कर लो भाभीजी.यही तो वह जज़्बा है जिसके होते हुए भारत और पाकिस्तान में नारी वर्ग को कोई ख़तरा नहीं. भाई, बाप, कज़न्स, जाने-अनजाने लोग सब इनकी रक्षा करते हैं, हर तरह से ख़याल रखते हैं और उनकी कोई बात कभी नहीं टालते.सबकी बेटी, सबकी बेटी समझी जाती है. मां तो होती ही सांझी है. तो क्या रेप सिर्फ प्रोपेगेंडा है? जिस समाज में नारी इतनी महफूज़ हो वहां कोई कैसे रेप के बारे में सोच ही सकता है?ये सब हमारी महिलाओं को बरगलाने वाली एनजीओज़ का प्रोपेगेंडा है, हिंदी फिल्मों की कारस्तानी है, फैशन इंडस्ट्री का फैलाया हुआ झूठ है, पाकिस्तानी और भारतीय टीवी ड्रामों का जंजाल है. अब आप कहेंगे कि ऐसा तो नहीं है. रोज़ाना रेप की ख़बरें छपती हैं.अहमदाबाद, भारत में निर्भया के हत्यारों को फांसी पर लटकाने की मांग करती औरतें. तो प्यारे बच्चों अख़बारों में तो जाने क्या-क्या अनाप-शनाप छपता रहता है. अग़र यह सच होता तो बताइए महाभारत के ज़माने में ऐसी शिकायत क्यों नहीं थी?क्या कभी किसी ने इतिहास के पन्ने पर लिखा देखा कि अकबर की राजधानी आगरा रेप कैपिटल था. या अंग्रेज़ी ज़माने में कोई भी राह चलता किसी भी महिला को रेप कर सकता था. मर्द तो उस ज़माने में भी उतने ही थे जितनी औरतें थीं. तो फिर इसीलिए हमें इन बेसिर पैर की की बातों पे कान नहीं धरना चाहिए. अगर ऐसा ही होता इतने सारे नेता काहे को बीबीसी की रेप वाली फिल्म पे इतनी हाहाकार करते. अगर इस आरोप में कोई सच्चाई होती तो क्यों सरकार इस फिल्म पे रोक लगाती? क्या कोई सरकार बर्दाश्त करती कि उसका कोई नागरिक किसी दूसरे नागरिक का रेप करता फिरे. तो प्यारे बच्चों तुम भी ऐसे ही अच्छा-अच्छा शुभ-शुभ सोचा करो ताकि देश की बदनामी ना हो.


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