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दुनिया में कहीं नहीं है, बाल अपराधियों को रियायत

खरी-खरी            Dec 22, 2015


एकता शर्मा आज देशभर में गंभीर बहस छिड़ी है कि क्या किसी नाबालिग द्वारा किए गए जघन्य अपराध को भी क्या 'जुवेनियल एक्ट' के तहत लिया जाए? प्रसंग दिल्ली में हुए बर्बर 'निर्भया कांड' से उभरा है। इस कांड को अंजाम देने वाला एक अपराधी नाबालिग था, जिसे 3 साल बाल सुधार गृह में रखने के बाद आजाद कर दिया गया। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ऐसे निर्दयी अपराधी को नाबालिग की श्रेणी में रखा जा सकता हैं? दिल्ली के इस 'निर्भया कांड' के बाद से ही 'जुवेनाइल जस्टिस एक्ट' में बदलाव किए जाने की मांग ने जोर पकड़ा और अब ये प्रयास कारगर भी हो गया। संसद ने कानून में बदलाव वाले इस विधेयक पर अपनी मुहर भी लगा दी है। देश की सर्वोच्च अदालत की टिप्पणी के बाद ही, केंद्र सरकार भी इस पर विचार करने के लिए मजबूर हुई थी, कि वास्तव में इस गंभीर मुद्दे पर जरुरी पहल करने की जरूरत है। चारों तरह उठी मांग के मद्देनजर ये बात सामने आई कि हत्या और दुष्कर्म जैसे संगीन अपराधों में यदि 16 साल से ज्यादा उम्र के किसी नाबालिगों का नाम आया है तो उसके खिलाफ बालिग की तरह मुकदमा चलाया जाए।कानून मंत्रालय ने या मसले को हरी झंडी दिखा दी है। इसके बाद ये मामला सरकार के पास गया! केंद्र सरकार ने 'जुवेनाइल' की परिभाषा को इसके बाद बदल दिया है। अब गंभीर अपराधों में लिप्त 16 साल से ज्यादा उम्र के किशोर भी 'बालिग' ही माने जाएंगे। कानून मंत्रालय इस एक्ट में संशोधन को हरी झंडी दिखा चुका है। इस एक्ट में परिवर्तन की जरूरत इसलिए थी, क्योंकि 'जुवेनाइल एक्ट' के तहत 18 साल से कम उम्र के दोषियों को अधिकतम तीन साल की सजा दी जाती है। सजा के बतौर उन्हें जेल के बजाए 'सुधारगृह' भेजा जाता है। इस तरह के नाबालिगों अपराधियों के खिलाफ प्रकरण भी 'जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड' में चलता है। 18 साल से कम के आरोपी को वास्तविक सजा नहीं दी जाती, बल्कि उस आचरण में सुधार किया जाता है। यही कारण है कि हत्या और दुष्कर्म जैसे मामलों में लिप्त निर्मम अपराधी भी बिना जेल जाए बरी हो गए। लोकसभा में किशोर न्याय संशोधन विधेयक 2014 पारित हो चुका गया है, जिसमें सजा देने की उम्र 18 से घटाकर 16 साल करने का प्रावधान है। इसे संसद के दोनों सदनों में पारित किया जा चुका है। भारत में 'जुवेनाइल एक्ट' के तहत 18 साल से ज्यादा उम्र के अपराधियों को ही सजा प्रावधान है! जबकि, अलग-अलग देशों में अपराधी के अपराध के हिसाब से उसे सजा दी जाती है। इसलिए कि हमारे यहाँ 18 साल से कम उम्र के अपराधी को नाबालिग ही माना जाता है। हत्या और दुष्कर्म में भी यही उम्र लागू होती है। इसके अलावा नाबालिग अपराधी के मामले की सुनवाई भी सिर्फ जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में ही होती है। उसे सजा के नाम पर अधिकतम 3 साल बाल सुधार गृह में बिताने पड़ते हैं। अमेरिका में संगीन अपराध में अधिकांश राज्यों में उम्र सीमा 13 से 15 साल की है। संगीन अपराध करने पर केस बाल अदालत से आम अदालत में ट्रांसफर किया जाता है। इंडियाना, साउथ डकोटा, वरमॉन्ट में संगीन अपराध पर नाबालिग उम्र सीमा 10 साल तय की गई है। 18 साल से कम उम्र के संगीन अपराधियों को भी उम्र कैद का प्रावधान है। चीन में 14 से 18 साल के नाबालिग अपराधी को आम अपराधियों की तरह सजा दी जाती है। लेकिन, उन्हें सजा देने में थोड़ी रियायत जरूर बरती जाती है। ब्रिटेन में भी 18 साल से कम उम्र के अपराधियों के लिए अलग अदालतें है। हत्या, दुष्कर्म जैसे संगीन मामलों में मामले सामान्य अदालतों में भेज दिए जाते हैं। लेकिन, संगीन अपराधों में सजा में कोई रियायत का प्रावधान नहीं है। फ्रांस में भी नाबालिग अपराध की उम्र 16 साल है। वहां बाल अपराधियों के लिए अलग से अदालत है। 2002 में फ्रांस ने कानून में बदलाव कर सख्ती भी बरती है। सऊदी अरब में बच्चों और किशोर अपराधियों को सजा देने में कोई रियायत नहीं बरती जाती। नाबालिगों को भी मौत की सजा तक का प्रावधान है। कुछ महीनों पहले एक बैंक लूट की घटना में 7 नाबालिगों को भी मौत की सजा दी गई। हत्या और बलात्कार जैसे संगीन अपराध में भी कोई रियायत नहीं बरती जाती। संयुक्त राष्ट्र का बाल कानून कहलाता है बीजिंग रूल्स। सजा जुर्म के हालात और जुर्म के मुताबिक होती है। नाबालिगों द्वारा अपराध भी बढ़े नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट पर भरोसा किया जाए तो किशोर अपराधियों के अपराध में लगातार बढ़ रहे हैं। 2003 में किशोर अपराध के 33320 मामले दर्ज हुए थे, जो 2014 में बढ़कर 42566 हो गए। इनमें 16 से 18 साल की आयु के 31364, बारह से सोलह साल की आयु के 10534 और बारह साल से कम आयु के 668 बच्चे गिरफ्तार हुए थे। 12 साल के करीब एक दर्जन बच्चों को हत्या जैसे जघन्य अपराधों में गिरफ्तार किया गया था। शर्मनाक तथ्य यह है कि बीते 10 सालों में किशोरों द्वारा बलात्कार के मामलों में 300 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। 2003 में किशोरों द्वारा बलात्कार के 535 मामले दर्ज हुए थे! जो 2014 में बढ़कर 2144 हो गए। (लेखिका पेशे से वकील तथा महिला एवं बाल अपराधों की जानकार हैं)


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