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धर्म के नाम पर छलावा करते बाबा,मॉं और बापू!

खरी-खरी            Aug 11, 2015


sidhartha-shankar-goutam सिद्धार्थ शंकर गौतम आसाराम प्रकरण के बाद ऐसा लगने लगा था कि देश में बाबाओं के मायाजाल से आम आदमी दूर हो जाएगा किन्तु हाल ही में उजागर हुए दो मामलों से मैं गलत साबित हुआ हूं। ओडिशा में खुद को भगवान विष्णु का अवतार बताने वाले सारथी बाबा हों या देवी दुर्गा का अवतार कहलाने वाली सुखविंदर कौर उर्फ़ बब्बू उर्फ़ राधे मां। धर्म का ऐसा मखौल इस देश में बन गया है मानो ईश्वर इन कथित धर्मगुरुओं के बगैर मिल ही नहीं सकता। क्या भारत में इससे पूर्व संतों को इस कदर धूर्त होते देखा गया है? क्या देश का सनातन धर्म, मान्यताएं, परम्पराएं तथा संस्कार इस बात की इजाजत देते हैं कि संत अपनी संतई को सार्वजनिक रूप से उपहास का पात्र बनाए? सारथि बाबा पर आरोप हैं कि उनके कई महिलाओं से शारीरिक संबंध हैं और वे सेक्स रैकेट में भी लिप्त हैं। वहीं राधे मां पर अश्लीलता फैलाने, दहेज़ उत्पीड़न एवं आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है। आखिर सारथि बाबा और राधे मां का सच क्या है यह तो जांच के बाद ही सामने आएगा किन्तु इनकी करतूतें जिस तरह पूरे देश के सामने आईं हैं,उसके बाद कहा जा सकता है कि धर्म को सबसे बड़ा खतरा इन ढोंगियों से ही है। दिलचस्प और हैरान करने वाली बात ये है कि दोनों के चेहरे पर गलत कर्मों का कोई पछतावा नहीं है। दरअसल ऐसे मामलों में हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था और आम आदमी के भीतर घर कर बैठा अंधविश्वास ही है जिसने इन संतों को घमंडी बना दिया। अपने प्रभाव व समर्थकों की फ़ौज के सहारे किसी ने इनपर शिकंजा नहीं कसा। धर्मभीरु जनता ने भी इन्हें सर आंखों पर बिठाया जिसने उनके अभिमान में बढ़ोतरी ही की। पर शायद ये कथित धर्मगुरु यह भूल बैठे थे कि जहां अभिमान तथा घमंड आता है, बर्बादी भी उसके पीछे-पीछे आती है। फिर भले ही उसका रूप कैसा भी हो? अब देखिए, सारथी बाबा और राधे मां पर बर्बादी आई तो ऐसी कि उनकी संतई पर ही सवालिया निशान लगा दिए? उनके लाखों समर्थक लाख दुहाई दें कि उनका ईश्वर निर्दोष है, वह ऐसा पतित कर्म कर ही नहीं सकता किन्तु संत पर आरोपों का लगना ही उसके लिए मृत्यु समान है। संत की संतई किसी सफाई या सबूत की मोहताज नहीं होती किन्तु इनके विरुद्ध तो हवा भी ऐसी चल रही है कि अब इनकी सफाई भी उडती हुई दिखाई दे रही है। हालांकि यह भी सच है कि जब तक कानून किसी आरोपी पर लगे आरोप की साक्ष्यों द्वारा पुष्टि न कर दे उसे सार्वजनिक रूप से आरोपी नहीं कहा जा सकता किन्तु यह नैतिकता आम आदमी के लिए ही ठीक है, कथित संतों के लिए नहीं। फिर कई बार आरोपों की गंभीरता इतनी बड़ी होती है कि फिर उसके साबित होने या न होने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। वहीं इन दोनों के मामले में मीडिया की भूमिका को वृहद् नजरिए से देखा जा सकता है। सारथि बाबा और राधे मां के अनुयायियों से लेकर कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है कि इन्हें बिना न्यायालय की पुष्टि के मीडिया ने गुनाहगार साबित कर दिया है। ऐसा मानने वालों का तर्क है कि मीडिया ने टीआरपी और रीडरशिप बढाने के चक्कर में यह सब किया है। उनका मानना है कि संतों पर तमाम आरोप पहले भी लगते रहे हैं किन्तु मीडिया ने जो हाय तौबा इस बार मचाई है वह इनके विरोध में चली गई। जबकि देखा जाए तो ऐसा बिलकुल नहीं है। सारथि बाबा और राधे मां के मामले में मीडिया ने वही दिखाया जो पत्रकारिता के मांपडंडों पर खरा उतरता है। दरअसल इन्हें भगवान की तरह पूजने वाले यह चाहते थे कि मीडिया भी कथित तौर पर उनके भगवान का प्रवक्ता बन जाए। यदि ऐसा होता तो इनके करोड़ों अनुयायी येन केन प्रकरेण पुलिस से लेकर राजनीतिक व्यवस्था पर दवाब बना देते। और पूर्व के अनुभवों को देखते हुए यह संभव भी है क्योंकि यदि कानून व्यवस्था को मीडिया का सकारात्मक साथ नहीं मिला होता तो क्या दुष्कर्म के आरोपों से घिरे आसाराम को कभी गिरफ्त में लिया जा सकता था? इतिहास गवाह है कि धूर्त के साथ व्यवहार भी वैसा ही होना चाहिए। आखिर देश की जनता सब देख रही है। माना कि दोनों के करोड़ों समर्थक हैं किन्तु 125 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाला हमारा देश क्या इनके कथित समर्थकों से ही पटा है? उनके समर्थकों के इतर जो हैं क्या उनके प्रति मीडिया और कानून जवाबदेह नहीं है? राधे मां कभी बताएंगी कि यदि वे देवी दुर्गा का अवतार हैं तो 1000 करोड़ का साम्राज्य उनके किस काम का? सारथी बाबा यदि विष्णु जी के अवतार हैं तो उन्हें सेक्स रैकेट चलाने की क्या आवश्यकता है? यह भारत में ही संभव है कि धर्म का आवरण ओढ़कर कोई भी स्वयंभू संत बन बैठे और जनता भी उसके पीछे पागलों की तरह दौड़ लगा दे। इन कथित संतों ने हिन्दुओं की आस्था से खिलवाड़ करने के साथ ही धर्म को धोखा दिया है। इन पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई होना चाहिए। जनता को भी ऐसे कथित संतों से दूरी बना लेनी चाहिए क्योंकि यदि जनता ने अब भी सबक नहीं लिया तो उसे साक्षात भगवान भी नहीं बचा सकता। कुल मिलाकर दुनिया और समाज को धोखा देकर सारथि बाबा और राधे मां ने संत की संतई पर ऐसा बदनुमा दाग लगाया है जिसे चाहकर भी नहीं मिटाया जा सकता। हो सकता है दोनों अपने ऊपर लगे आरोपों से मुक्त हो जाएं किन्तु प्रपंचों और स्वांगों के कारण खुद को संत कहाने का दर्ज़ा तो दोनों निश्चित रूप से खो चुके हैं।


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