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पूस में दूना मांग संवाई, फागुन बरसे घरौ से जाई।

खरी-खरी            Mar 04, 2015


कुंवर समीर शाही तेज हवा के साथ लगातार बारिश और ओलावृष्टि से फसलों को भारी नुकसान हुआ है। गेहूं, आलू, सरसों, चना, मटर और सब्जियों की फसलें खासतौर पर प्रभावित हुई हैं। किसानों और कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि यदि मंगलवार तक वर्षा जारी रही तो आलू की फसल पूरी तरह बर्बाद हो जाएगी। कहीं धीमी तो कहीं तेज बारिश हो रही है। बीच-बीच में तेज पुरवा हवाएं चल रही हैं। इससे गेहूं की फसल गिर गई है। अधिकतर जिलों में आलू की खोदाई अभी शुरू ही हुई थी कि बारिश हो गई। किसानों का कहना है कि आलू के खेतों में पानी भर गया है। ऐसे में इसके सड़ने, हरा पड़ जाने या उसमें अंकुर निकलने की आशंका है। पिछले दो दिनों से हुई बरसात ने घाघ और भड्डरी की याद दिला दी। घाघ ने कहा था- पूस में दूना मांग संवाई, फागुन बरसे घरौ से जाई। पूस माह में यानि दिसम्बर व जनवरी में बरसात फसलों के लिए वरदान है। उत्पादन दोगुना हो जाता है, लेकिन फागुन में बरसात होने से किसान बर्बाद हो जाता है। इस साल किसान प्रसन्न थे, अनाज को घर लाने की तैयारी कर रहे थे। आलू की खुदाई शुरू हो चुकी थी। लेकिन पिछले दो दिनों से हो रही बारिश ने उनको तबाही में पहुंचा दिया। तेज हवाओं से फसलें गिरीं। घाघ की वो कहावत भी याद आ गई। धान गिरे सुभागे का,गेहूँ गिरे अभागे का जिनकी भाग्य अच्छी है उनके खेत में धान का पौध गिरता है। जिनके खेत में गेहूं का पेड़ गिर जाए समझ लो वह अभागा है। इस बरसात ने किसानों को बर्बादी के कगार पर पहुंचा दिया। बड़े पैमाने पर गेहूं की फसल गिर गई है। आलू के सड़ने का खतरा पैदा हो गया। खेती पर यह संकट पिछले कई सालों से आ रहा है, लेकिन इस बार की खेती पर संकट कुछ ज्यादा है।आलू के बड़े किसान बबलू तिवारी को इस बारिश ने बर्बाद कर दिया है। इस बार आलू की खेती में लागत भी ज्यादा थी। एक एकड़ में लगभग 45-5० हजार रूपये का बीज ही पड़ा था। पन्द्रह से बीस हजार रूपये की रासायनिक व पम्परागत खादें डाली गईं। मजदूरी का हिसाब किताब अलग से। बार-बार हुई वर्षा ने आलू का उत्पादन भी गिराया। एक बीघे में 8० से 85 कुन्टल के बजाय इस बार आलू उत्पादन 7० से 75 रुपये कुन्टल ही हुआ। बबलू कहते हैं कि इस बरसात ने उनके पूरे साल के बजट को सत्यानाश कर दिया। बहुत से किसानों ने आलू की खुदाई के लिए पौधे को काट दिया था। इससे पानी भीतर चला गया। इससे आलू का एक हिस्सा हरा भी हो जायेगा। इससे अब आलू का टिकाऊपन भी कम होगा। कमोबेश यही हालत आलू बेल्ट का भी है, जहां के किसान सिर्फ आलू की खेती पर ही निर्भर हैं। यही हालत अन्य फसलों की भी है। सर्वाधिक नुकसान उस गेहूं को हुआ है, जिसमें बालियां निकल रहीं या निकल आईं थीं। जो गेहूं खेतों में गिर गया है, उसकी बालिया सड़ने का खतरा पैदा हो गया है और यदि बालिया सड़ने से बच भी गई तो गेहूं उत्पादन पर असर पड़ेगा। गेहूं अब पकने के कगार पर खड़ा है। इस समय उसे पछुआ हवाओं की जरूरत थी, जिससे उसके दाने मजबूत होते, लेकिन बरसात के साथ चली हवाओं से गेहूं की फसल गिर गई। किसानों का कहना है कि अब यह किस्मत पर है कि गिरी फसल खड़ी हो पाती है या नहीं। गोसाईंगंज के प्रगतिशील किसान देव नारायण पटेल बताते हैं कि केवल गेंहू ही नहीं चना, दलहन, मटर सभी फसलें बर्बाद हुई हैं। वह बताते हैं कि आज पानी तो नहीं बरस रहा, लेकिन तेज हवा फसलों को और भी बर्बाद कर रही है। आलू की किल्लत इस साल भी रहेगी पिछले साल आलू की कमी रही थी। इस बार उम्मीद थी कि आलू की कमी नहीं होगी। राज्य सरकार की आलू के रिकॉर्ड उत्पादन के दावे भी पूरे होते नहीं दिख रहे। अब तक आलू उत्पादन के पूरे आंकड़े नहीं आए हैं, लेकिन आलू उत्पादन के संबंध में रिमोट सेसिग से मिले आंकड़ों के अनुसार इस साल 128 लाख मी टन आलू के उत्पादन का अनुमान है। जबकि 2०11-12 में 135 लाख मी टन आलू उत्पादन हुआ था। इस बरसात ने नये संकट को पैदा कर दिया है। आलू और प्याज दोनों की फसले बर्बाद हुईं हैं और दोनों के उत्पादन में गिरावट आएगी। किसानों को इस बात की शिकायत है कि न तो सरकारें और न शहर में रह रहे लोग यह देखना चाहते हैं कि आलू उत्पादन में कितना खर्च आ रहा है। उन्हें सिर्फ अपने स्वार्थ की चिता है आलू-प्याज के दाम बढ़ने पर सर्वाधिक शोर होता है। इस बरसात ने किसानों को और भी बर्बाद कर दिया। इस बार फसलों की बुआई में कहीं ज्यादा लागत आई। लेकिन आलू की कीमतें बहुत कम रहीं। किसानों को पांच-छह सौ रुपये प्रति कुंतल से ज्यादा कीमत नहीं मिली। पिछले साल इसी समय आलू की कीमत लगभग 8०० रुपये प्रति कुंतल थी। जबकि एक एकड़ में पचास हजार रुपये का तो बीज ही पड़ गया। किसानों को ब्लैक में रासायनिक खादें भी खरीदनी पड़ीं। अब बरसात ने किसानों को और भी तबाह कर दिया है।


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