Breaking News

प्रेस परिषद के 49 साल: तब ये हालात नहीं रहे होंगे

खरी-खरी, मीडिया            Nov 16, 2015


आशु खान 49 बरस पहले वह हालात नहीं रहे होंगे, जो आज हैं। राष्ट्रीय प्रेस परिषद का गठन किया गया होगा तो मन्शा रही होगी उस दौर के मौजूदा हालातों में कलमकारो को उनका हक दिलाने, उनके दमन और लिखने की आजादी पर लगने वाली पाबंदियों के खिलाफ आवाज़ उठाने की। इस कोशिश के वाजिब असरात भी तब दिखाई दिए होंगे। इन 49 बरसों में लिखने वालों की तादाद उस दौर के कलमकारों से 49 सैकड़ा बढ़ गई। इन्हें एक सूत्र में पिरोने वालों की संख्या भी 4900 (देशभर में) जैसी हो गई। साथ ही इन कलमगिरो की समस्याएं भी इसी तादाद में हजारों में हो गई। पत्रकार और मीडियाकर्मी सबसे ज्यादा प्रताड़ित और पीड़ित अपने उन सन्स्थानों से ही हैं, जिनके लिए वह सुबह, दोपहर, शाम, रात एक किए हुए हैं। कम वेतन, नौकरी की अस्थिरता, लिखने और न लिखने की तमाम पाबंदियों के बीच अब उस पर रेवेन्यु लाने की बाध्यता भी आयद की जाने लगी है। पुलिस, प्रशासन, सियासी लोगों से लेकर असामाजिक तत्वों तक में कम होती पैठ और काफूर होता खौफ भी पत्रकारों के लिए समस्याओं का अम्बार लगाए हुए हैं। किसी खबर के लिखने या न लिखने पर मामूली कहा सुनी हो जाने या धमकाने के जमाने गए, अब तो पत्रकारों को खुले आम पिटाई ओर जिन्दा जलाने दिए जाने, कुचल दिए जाने जैसे हालात से दो चार होना पड़ रहा है। भ्रष्ट अधिकारी पत्रकारों को सरेआम जलील कर रहे हैं, बेईमान पुलिस बेखौफ होकर पत्रकारों पर झूठे मुकदमे थोप रही है। इन सारे हालात की एकमात्र वजह अगर कही जा सकती है तो वह पत्रकारों का एक मन्च पर न होना, एक दूसरे की टाग खिचाई का दौर खत्म होने तक हालात बरकरार ही नहीं रहेंगे बल्कि ओर ज्यादा बिगड़ भी सकते हैं। फेसबुक वॉल से


इस खबर को शेयर करें


Comments