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भूमि अधिग्रहण के बहाने!

खरी-खरी            Feb 24, 2015


कुंवर समीर शाही जो यूपीए शासन के दौरान अन्ना के विरोधी थे वो अब अन्ना के दोस्त हैं. जो अन्ना के दोस्त थे अब अन्ना के दुश्मन हो गये. ऐसा क्या हो गया जिससे स्थिति बदल गई . अन्ना हजारे के सहयोगी अरविंद केजरीवाल की जीत दिल्ली में क्या हुई कि अन्ना हजारे सक्रिय हो गये. ऐसा लगा जैसे गुरु गुड़ हो गये और चेला चीनी. यही बात अन्ना हजारे को शायद खटक गई और वो भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ कूद गये. भूमि अधिग्रहण बिल में खोट है जिसकी कमजोरी को परख कर अन्ना हजारे फिर से चेहरा चमकाना चाहते हैं .दरअसल किसी की चाहत सीएम और पीएम कुर्सी की होती है किसी की चाहत ये होती है कि वाहवाही होती रहे, चर्चा में बने रहे और जय जयकार होती रहे. शायद अन्ना हजारे इससे अछूते नहीं दिख रहे हैं. खैर अन्ना हजारे का अधिकार है ऐसे मुद्दे को उठाएं और सरकार पर दबाव बनाएं ताकि सरकार अपनी गलती को सुधार सके लेकिन अन्ना हजारे का ये हमला समझ से परे है.पहले किसी को चेतावनी दी जाती है अगर वो सुधार नहीं करता है तो अगली कार्रवाई होती है लेकिन भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर अन्ना हजारे ने मोदी सरकार पर बड़ा हमला कर दिया हैं . उन्होंने मोदी सरकार की तुलना अंग्रेजों से की है. अन्ना ने कहा है कि जितना अन्याय सरकार कर रही है उतना तो अंग्रेजों ने भी नहीं किया. इस लाईन में अन्ना हजारे के तेवर साफ दिख रहे हैं लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि अन्ना हजारे को मौका किसने दिया. ये माना कि लोकसभा में बीजेपी की बहुमत है लेकिन राज्यसभा में नहीं है . इस बिल को पास कराने के लिए अध्यादेश जैसे वैशाखी का सहारा लिया जाता है इसके बावजूद इस बिल में नरमी होनी चाहिए थी. यूपीए सरकार में जो नरमी थी उसे में फेरबदल करते हुए मोदी सरकार ने प्रावधानों को तल्खी में बदल दिया है. जंतर-मंतर पर दो दिवसीय आंदोलन के पहले दिन अन्ना हजारे ने कहा कि इस बार वह अनशन नहीं करेंगे, बल्कि 'जेल भरो आंदोलन' चलाएंगे. उन्होंने मोदी सरकार को चार महीने का समय दिया और कहा कि यह अध्यादेश वापस नहीं लिया गया तो देश भर में पैदल यात्रा कर जेल भरो आंदोलन शुरू किया जाएगा. देश में हरदम आंदोलन की गुंजाईश होती है बशर्ते कोई आंदोलन करनेवाला मिलना चाहिए . ये भी सच है कि सरकार भी बिना आंदोलन और धरने के बिना नहीं सुनती है. अध्यादेश लाए हुए कितने दिन बीत गये लेकिन किसी को पता नहीं था कि ये बिल इतना बड़ा खतरनाक है चूंकि अन्ना ने इस मामले को उठा दिया है तो जाहिर है कि इस बिल में अब खतरनाक प्रावधान दिख रहे हैं ऐसा लगता है कि सरकार जल्दी में है और तानाशाही रवैया अपना रही है जिसके खिलाफ जंतर मंतर पर अन्ना हजारे ने आंदोलन का बिंगुल फूंक दिया है. कटघरे में सरकार ? 2013 में यूपीए सरकार ने भूमि अधिग्रहण को लेकर जो कानून बनाया था उसे पिछले साल मोदी सरकार ने अध्यादेश के जरिये पलट दिया. विवाद के पांच मुद्दें हैं जिसे अन्ना हजारे उठा रहें हैं . 1. हर आदमी को नौकरी चाहिए, बिजली चाहिए, विकास चाहिए, उद्योग चाहिए. इसमें कोई शक नहीं है कि मोदी सरकार विकास करना चाहते हैं बल्कि इसके तौर तरीके पर सवाल उठ रहें हैं. किसान भी विकास के विरोधी नहीं है लेकिन जो तरीका अपनाया गया है उसका विरोध हो रहा है यानि ये बिल अलोकतांत्रिक दिख रहा है. सरकारी और निजी साझा प्रोजेक्ट के लिए जो जमीन ली जाएगी उसमें 70 फीसदी जमीन मालिकों की सहमति जरूरी नहीं रह गई है जबकि ये प्रावधान यूपीए सरकार में रखा गया था. रक्षा, ग्रामीण बिजली, गरीबों के लिए घर और ऑद्योगिक कॉरिडोर जैसे मामलों में अगर जमीन लिया जाता है तो फिर 70 फीसदी जमीन मालिकों की सहमति का प्रावधान मौजूदा अध्यादेश में खत्म किया जा चुका है . साथ ही सिर्फ निजी क्षेत्र के लिए ली जाने वाली जमीन के लिए पहले जहां 80 फीसदी किसानों की सहमति जरूरी थी वहीं इस अध्यादेश में इसे खत्म किया जा चुका है. यहां पर गलती ये दिख रहा है कि आंख बंद करके सहमति खत्म क्यों की गई हां अगर ऐसा पोजेक्ट जिसके लिए जमीन लेना अनिवार्य हो तो वहां पर चलता है लेकिन यही नियम सारे जगहों पर लागू करना हजम नहीं हो रहा है 2. पहले की व्यवस्था के मुताबिक अधिग्रहित जमीन का इस्तेमाल अगर पांच साल तक नहीं होता है तो फिर उसे चाहे तो जमीन मालिक वापस मांग सकता है लेकिन मोदी सरकार ने ऐसी व्यवस्था खत्म कर दी है . इतनी जमीन खाली पड़ी है उसका इस्तेमाल क्यों नहीं किया जा रहा है. ऐसे भी स्टोरी आई है कि जमीन सालों से उद्योगपतियों के पास पड़ी है लेकिन उसका इस्तेमाल नहीं हुआ तो जमीन क्यों नहीं लौटाई जाएगी. जमीन लौटाने वाले फॉर्मूले से ये फैदा हो सकता है कि समय पर काम होगा और काम नहीं होने पर जमीन जाने का खतरा बना रहेगा. 3. पहले ये प्रावधान था कि जो लोग अधिग्रहण से खुश नहीं हैं तो अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं . लेकिन नए अध्यादेश के मुताबिक अधिग्रहण के फैसले को अदालत में चुनौती नहीं दे सकते . ऐसा प्रावधान लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है और ऐसा प्रावधान देश के खतरनाक हो सकता है. 4. केंद्र या राज्य सरकार का कोई मौजूदा या पूर्व अधिकारी अगर अपने पद पर रहने के दौरान इस कानून के तहत कोई अपराध करता है, तो कोई भी अदालत सरकार की इजाजत के बिना उस अपराध का संज्ञान नहीं ले सकती. 5. पहले के कानून के मुताबिक जहां बंजर जमीन ही सरकार ले सकती थी वहीं अब कोई भी उपजाऊ जमीन भी सरकार किसान की मर्जी के बगैर ले सकती है . फंस जाएगा भूमि अधिग्रहण बिल? मंगलवार को सरकार इस बिल को लोकसभा में पेश कर रही है लेकिन बाहर में अन्ना हजारे का विरोध जारी है. सरकार इस बिल को लोकसभा में तो पास करा सकती है लेकिन नंबर नहीं होने की वजह से ये बिल राज्यसभा में फंस जाएगा और साथ ही साथ विपक्ष भी सरकार के मौजूदा बिल का समर्थन नहीं करेगी. वहीं ये मुद्दा किसान से जुड़ा हुआ है तो सरकार भी किसानों से पंगा नहीं लेना चाहेगी वहीं इस साल बिहार में विधानसभा और अगले साल उत्तरप्रदेश में चुनाव होने वाले हैं ऐसे में सरकार जोखिम नहीं ले सकती है. ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सरकार को झुकाना पड़ेगा वहीं अन्ना हजारे और विपक्ष की मांगों को ध्यान में रखते हुए बिल में फेरबदल करने के अलावा कोई रास्ता नहीं दिख रहा है. सरकार की भलाई यही है कि अन्ना हजारे, विपक्ष और किसानों की मांगों पर गौर करे क्योंकि बिल पास नहीं होता है तो सरकार के लिए सबसे बड़ी किरकिरी हो सकती है मोदी की तुलना अंग्रेजों से क्यों की ? जो यूपीए शासन के दौरान अन्ना के विरोधी थे वो अब अन्ना के दोस्त हैं. जो अन्ना के दोस्त थे अब अन्ना के दुश्मन हो गये. ऐसा क्या हो गया जिससे स्थिति बदल गई . अन्ना हजारे के सहयोगी अरविंद केजरीवाल की जीत दिल्ली में क्या हुई कि अन्ना हजारे सक्रिय हो गये. ऐसा लगा जैसे गुरु गुड़ हो गये और चेला चीनी. यही बात अन्ना हजारे को शायद खटक गई और वो भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ कूद गये. भूमि अधिग्रहण बिल में खोट है जिसकी कमजोरी को परख कर अन्ना हजारे फिर से चेहरा चमकाना चाहते हैं .दरअसल किसी की चाहत सीएम और पीएम कुर्सी की होती है किसी की चाहत ये होती है कि वाहवाही होती रहे, चर्चा में बने रहे और जय जयकार होती रहे. शायद अन्ना हजारे इससे अछूते नहीं दिख रहे हैं. खैर अन्ना हजारे का अधिकार है ऐसे मुद्दे को उठाएं और सरकार पर दबाव बनाएं ताकि सरकार अपनी गलती को सुधार सके लेकिन अन्ना हजारे का ये हमला समझ से परे है. पहले किसी को चेतावनी दी जाती है अगर वो सुधार नहीं करता है तो अगली कार्रवाई होती है लेकिन भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर अन्ना हजारे ने मोदी सरकार पर बड़ा हमला कर दिया हैं . उन्होंने मोदी सरकार की तुलना अंग्रेजों से की है. अन्ना ने कहा है कि जितना अन्याय सरकार कर रही है उतना तो अंग्रेजों ने भी नहीं किया. इस लाईन में अन्ना हजारे के तेवर साफ दिख रहे हैं लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि अन्ना हजारे को मौका किसने दिया. ये माना कि लोकसभा में बीजेपी की बहुमत है लेकिन राज्यसभा में नहीं है . इस बिल को पास कराने के लिए अध्यादेश जैसे वैशाखी का सहारा लिया जाता है इसके बावजूद इस बिल में नरमी होनी चाहिए थी. यूपीए सरकार में जो नरमी थी उसे में फेरबदल करते हुए मोदी सरकार ने प्रावधानों को तल्खी में बदल दिया है. जंतर-मंतर पर दो दिवसीय आंदोलन के पहले दिन अन्ना हजारे ने कहा कि इस बार वह अनशन नहीं करेंगे, बल्कि 'जेल भरो आंदोलन' चलाएंगे. उन्होंने मोदी सरकार को चार महीने का समय दिया और कहा कि यह अध्यादेश वापस नहीं लिया गया तो देश भर में पैदल यात्रा कर जेल भरो आंदोलन शुरू किया जाएगा. देश में हरदम आंदोलन की गुंजाईश होती है बशर्ते कोई आंदोलन करनेवाला मिलना चाहिए . ये भी सच है कि सरकार भी बिना आंदोलन और धरने के बिना नहीं सुनती है. अध्यादेश लाए हुए कितने दिन बीत गये लेकिन किसी को पता नहीं था कि ये बिल इतना बड़ा खतरनाक है चूंकि अन्ना ने इस मामले को उठा दिया है तो जाहिर है कि इस बिल में अब खतरनाक प्रावधान दिख रहे हैं ऐसा लगता है कि सरकार जल्दी में है और तानाशाही रवैया अपना रही है जिसके खिलाफ जंतर मंतर पर अन्ना हजारे ने आंदोलन का बिंगुल फूंक दिया है.


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