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भोजशाला:पूजा हो या नमाज, राम-रहीम लहूलुहान नहीं होना चाहिए

खरी-खरी            Feb 12, 2016


महेश दीक्षित       bhojshala-namaz-puja

जरूरी तो नहीं मंदिर हो, गिरजा या हो गुरुद्वारा, सुकूं मिले जहां पर, वहां पूजा-इबादत कीजिए।

1992 में अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद को लेकर देश जला, सांप्रदायिक उन्माद की आग में हजारों निर्दोष, बेगुनाह मारे गए और अब भोजशाला में पूजा-नमाज को लेकर धार को जलाने की साजिश हो रही है। मुस्लिम और हिंदू संगठन आमने-सामने हैं। एक-दूसरे का खून पीने को उतारू हैं। धार शहर और वहां का जनमानस पूजा-नमाज के टकराव से उपजी हिंसा की आशंका को लेकर भयभीत है। सरकार और प्रशासन को समझ नहीं आ रहा है कि आखिर ऐसी स्थिति में जानमाल की सुरक्षा कैसे हो? शहर में शांति कैसे कायम रहे? भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) हिंदू की भाषा बोल रहे हैं। कांग्रेस मुसलमान की। पूजा-नमाज हो, न हो, दोनों को उससे कोई लेना-देना नहीं। वोट बैंक हाथों से न खिसक जाए इसलिए पूजा-पूजा, नमाज-नमाज चिल्ला रहे हैं। फिर चाहे अल्लाह कलकित हों, चाहे राम। शर्मनाक तो यह कि ऐसे समय में धर्म के लंबरदार शंकराचार्य-महामंडलेश्वर, इस्लाम के पैरोकार काजी-शाही इमाम भी मौन हैं। असहिष्णुता के नाम पर विधवा विलाप करने वाले भी लापता हैं। शायद ये तभी मुंह खोलेंगे जब 'कुछ' हो जाएगा। इन पुजारियों और नमाजियों को कौन बताए कि राम को ऐसी पूजा और अल्लाह को ऐसी नमाज स्वीकार नहीं जिससे किसी को पीड़ा हो। हिंसा फैले। मानवता रक्त रंजित हो। क्या जिहाद के नाम पर निर्दोषों की हत्या करने वाले राक्षस (आतंकी) मुसल-मान हो सकते हैं? इस्लाम के प्रवर्तक हो सकते हैं? राम की पूजा के लिए हिंसा फैलाने वाले हिंदू या राम भक्त हो सकते हैं? बंसत पंचमी पर भोजशाला में यदि पूजा नहीं हुईं तो क्या राम नाराज हो जाएंगे? शक्रवार को यदि मुसलमान नमाज नहीं पढ़ेंगे तो क्या अल्लाह खफा हो जाएंगे?

राम-रहीम को जुदा और पूजा-नमाज को अलग कहने वाले सिर्फ विघटनकारी, अहंकारी, नासमझ और पाखंडी हैं। क्योंकि, पूजा-नमाज, अल्लाह और राम की पूजा और इबादत के दो अलग-अलग आयाम, तरीके और रास्ते तो हो सकते हैं, लेकिन उनका मकसद न आज भिन्न है, और न कल था और न कभी होगा। कहते हैं जब पूजा सिद्ध होती है तो पत्थर भगवान बन जाता है। कण-कण राम हो जाता है और जब नमाज उतरती है तो साधारण आदमी भी मुसल-मान (ईमान पर कायम) हो जाता है। अंत में यही कहेंगे कि- शहर के बंद रहने से कई चूल्हे नहीं जलते, न ऐसा हो कभी धार में ऐसी कोशिशें कीजिए...



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