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मंत्रियों की फर्जी डिग्रियां और शिक्षा मंदिरों की धूमिल होती छवि

खरी-खरी            Jun 15, 2015


सिद्धार्थ शंकर गौतम हिन्दुस्तान का इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि यहां की युवा प्रतिभा तमाम डिग्रियों के बावजूद नौकरी-पेशे से दूर है और नेता फर्जी डिग्रियों की दम पर ऊंचे व मलाईदार मंत्रालयों के मंत्री बन जाते हैं। अभी केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और रामशंकर कठेरिया के फर्जी डिग्री मामलों की आंच भी ठंडी नहीं पड़ी थी कि दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर की कानून की फर्जी डिग्री ने शिक्षा में राजनीतिकरण का नंगा नाच उजागर कर दिया। खुद की कमीज सबसे सफ़ेद का स्वयंभू नारा देने वाली आम आदमी पार्टी की सरकार का कानून मंत्री सरकार के लिए ऐसी मुश्किलें पैदा करेगा, इसकी कल्पना खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने नहीं की होगी। नाराज़ केजरीवाल ने भले ही तोमर से जुड़े फर्जी डिग्री मामले की जांच आप के आतंरिक लोकपाल को सौंप दी हो, हो सकता है केजरीवाल उन्हें पार्टी से भी निष्काषित कर दें किन्तु इस पूरे प्रकरण ने आम आदमी पार्टी की छवि पर जबरदस्त कुठाराघात किया है। जितेंद्र सिंह तोमर किसी जमाने में कांग्रेसी हुआ करते थे मगर जब दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी को उभार मिला तो उन्होंने हवा का रुख भांप कर आप का दामन थाम लिया। तोमर २०१३ में भाजपा उम्मीदवार से विधानसभा चुनाव हार गए थे पर २०१५ में हुए चुनाव में वे त्रिनगर विधानसभा सीट से चुनाव जीते और केजरीवाल ने उन्हें अपनी सरकार में कानून मंत्री बनाया। कानून मंत्री का पद वैसे भी केजरीवाल सरकार के लिए पूर्व में अमंगलकारी हो चुका था। तोमर से उम्मीद थी कि वे अपने पूर्वर्ती मंत्री सोमनाथ भारती की कारगुजारियों से बदनाम हो चुके कानून मंत्रालय से न्याय करेंगे मगर उनके फर्जी डिग्री मामले ने इस मंत्रालय को केजरीवाल के लिए अपशगुनी सा बना दिया है। इस प्रकरण में अभी सच सामने आना बाकी है मगर सबसे ज़्यादा दुर्गति हुई है बिहार के प्रतिष्ठित तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय की। यहां के छात्र इस फर्जीवाड़े से खुद को अपमानित सा महसूस कर रहे हैं और यही वजह रही कि जब दिल्ली पुलिस तोमर को लेकर विश्वविद्यालय पहुंची तो छात्रों ने उनपर अंडे, टमाटर, मोज़े जैसी आपत्तिजनक वस्तुएं फेंकी मानो शायद वे दुनिया को बताना चाह रहे हों कि तोमर की कारगुजारियों से वे विश्वविद्यालय की छवि को दागदार नहीं होने देंगे। हालांकि छात्रों का यह रवैया भी स्वीकार्य योग्य नहीं है किन्तु अपने शिक्षण संस्थान को बदनाम होने से बचाने के लिए छात्रों के गुस्से को उनका अपराधबोध माना जा सकता है गोयाकि गलती तोमर ने की मगर उसकी सजा भविष्य में हम भुगतेंगे। गौरतलब है कि तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के संबंध राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर से रहे हैं और दिनकर जी का इस विश्वविद्यालय को गढने में और इसकी पहचान को बुलंदियां देने में अहम योगदान रहा है। ऐसे में विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा धूमिल होने का अंदेशा गलत नहीं है। तोमर मुंगेर के जिस विश्वनाथ सिंह इंस्टीट्यूट ऑफ लीगल स्टडी कॉलेज का खुद को छात्र बताते रहे हैं वहां भी दो तरह की बातें सामने आ रही हैं। संस्थान का कहना है कि उन्होंने यहां से कानून की डिग्री हासिल की है जबकि पूर्व में विश्वविद्यालय प्रशासन यह कहा चुका है कि तोमर के सर्टिफिकेट के ब्योरे उनके विश्वविद्यालय के रिकॉर्ड से मेल नहीं खाते हैं। ऐसे में विश्वनाथ सिंह विधि संस्थान भी सवालों के घेरे में घिरने वाला है? यहां के छात्र भी खुद को ठगा हुआ सा महसूस कर रहे हैं। कुल मिलाकर जितेंद्र सिंह तोमर ने राजनीति में शुचिता, स्वच्छता एवं आम आदमी के अधिकारों की लड़ाई की झूठी कसमें खाकर देश, संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों का गला घोंटा है। प्रकरण जिस दिशा में जा रहा है उससे तोमर का झूठ सच साबित होता नज़र आ रहा है। यदि ऐसा होता है तो तोमर को धोखा देने और शिक्षा जगत से खिलवाड़ करने का आरोपी मानते हुए कड़ी सजा सुनाई जाना चाहिए।


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