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मंत्रियों की सेहत के लिये चिंतित सीएम और विकलांग दिवस पर अंधे हुये 33 लोग...?

खरी-खरी            Dec 04, 2015


clipping-bhaskar-ministar-health-chakup ममता यादव खबरें दो हैं मगर उनसे ​संबंधित विषय एक है। दोनों खबरों से संबंधित लोगों के स्तर में भी जमीन आसमान का अंतर है। एक खबर है कि मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री सरताज सिंह की तबियत खराब होने के कारण उन्हें कल अचानक अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। इससे चिंति​त सरकार के मुखिया और प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सारे मंत्रियों को आदेश दे दिया कि सब अपना—अपना हैल्थ चैकप करवायें। दूसरी खबर भी मध्यप्रदेश से ही है जिसमें बड़वानी जिले में लगाये गये एक स्वास्थ्य शिविर में मोतियाबिंद का आॅपरेशन कराने वाले 33 मरीजों की आंखों की रोशनी ही चली गई। (इस खबर को पत्रिका और दैनिक भास्कर ने उतनी प्राथमिकता नहीं दी है लेकिन नवदुनियां ने पहले पेज पर विस्तार से खबर दी है।) इन 33 गरीब लोगों की जिंदगी में विकलांग दिवस के दिन जिंदगी भर के लिये अंधेरा छा गया। डॉक्टरों ने साफ—साफ कह दिया है कि कोर्इ् उम्मीद नहीं कि इनकी आंखों की रोशनी लौटेगी। हालांकि इस जुर्म के एवज में सर्जन आरएस पलोड को सस्पेंड कर दिया गया है,लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या ये सजा काफी है 33 लोगों की जिंदगी में अंधेरा करने के जुर्म में? मंत्रियों के स्वास्थ्य की चिंता करने वाले मुख्यमंत्री कभी इस ओर ध्यान देते हैं कि आये दिन अस्पतालों में मरीजों के साथ दुर्व्यवहार होता रहता है। इस दुर्व्यवहार के नजारे सरकारी अस्पतालों में आम होते हैं। कई अस्पतालों में पर्याप्त बिस्तर नहीं होते तो कहीं इलाज के लिये सुबह 8 बजे से लाईन में अपनी बारी का इंतजार करते मरीजों को दोपहर हो जाती है मगर इलाज नहीं मिल पाता। कभी इस बात पर क्यों गौर नहीं किया जाता कि आमतौर पर लोग सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने में अपनी भलाई नहीं समझते। खुद मंत्रीगण भी इससे बचते नजर आते हैं। उदाहरण उसी मीटिंग का जब स्वास्थ्यमंत्री नरोत्तम मिश्रा से मुख्यमंत्री ने पूछा कि क्या सरकारी अस्पतालों में हेल्थ चैकप करवाया जा सकता है तो उनका जवाब था कोई भी कहीं भी करवा सकता है। कुलमिलाकर अर्थ ये कि सरकार के लोगों को भी पता है कि सरकारी अस्पतालों की वास्तविक स्थिति क्या है? और देखा जाये तो मंत्रीगण न हीं जायें इन अस्पतालों में तो बेहतर होगा। इनके जाने से जनता की परेशानियां ही बढ़नी हैं। अब देखना यह है कि सरकार इन 33 लोगों के लिये क्या करती है जिनकी जिंदगी में अंधेरा हो चुका है।


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