अविभाजित और विभाजित मध्यप्रदेश के गवाह वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक गिरिजाशंकर से मल्हार मीडिया की प्रधान संपादक ममता यादव की विशेष बातचीत
लम्हों की बातें करोगे तो सदियां छूट जायेंगी। मध्यप्रदेश में विकास को लेकर सरकारों की तदर्थवादी सोच रही है जो विकास में सबसे बड़ी बाधा है। यदि दीर्घकालीन और भविष्य को ध्यान में रखकर विकासात्मक योजनायें बनाई जायें तो विकास होगा ही। कुछ ऐसी ही सोच है मध्यप्रदेश के विकास को लेकर वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक गिरिजाशंकर की। पत्रकारिता में चार दशक बिता चुके श्री गिररिजाशंकर ने हमसे कई बातें साझा कीं। आज चूंकि मध्यप्रदेश का स्थापना दिवस है इसलिये साक्षात्कार की पहली कड़ी मध्यप्रदेश और उसकी राजनीति व सरकारों की परिस्थितियों पर केंद्रित है। दूसरी कड़ी में श्री गिरिजाशंकर के पत्रकारिता के अनुभव और विचार साझा किये जायेंगे
विभाजन बिल्कुल जरूरी नहीं था
मध्यप्रदेश का विभाजन बिल्कुल भी जरूरी नहीं था यह कहना है अविभाजित मध्यप्रदेश से विभाजित मध्यप्रदेश के 15 सालों का सफर देख चुके

राजनीतिकि विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार गिरजिाशंकर ने कहा कि आमतौर पर राज्यों के बंटवारे को लेकर यह अवधारणा होती है और तर्क दिया जाता है कि छोटे राज्यों का विकास जल्दी होता है, लेकिन मेरा मानना यह है कि अगर 50 अंग्रेज पूरे देश को चला सकते हैं। एक अंग्रेज पूरे एक सेंट्रल को चला सकता है तो आप क्यों नहीं? आप भोपाल में बैठकर बैरसिया का विकास कर नहीं पाते राज्यों के बंट जाने की बात करते हैं।
एक ग्रोथ होती है नैचुरल और एक क्रियेटिव। नैचुरल ग्रोथ जो है वह तो होती ही है लेकिन क्रियेटिव ग्रोथ तो आपको करनी होगी। तवा, बरगी,हंसदेव परियोजना हो या भिलाई प्लांट ये नैचुरल ग्रोथ का हिस्सा नहीं हैं ये क्रियेटिव ग्रोथ का हिस्सा हैं। सरकारें काम करेंगीें तो ग्रोथ होगी ही स्कूल ज्यादा और अच्छे होंगेे तो बच्चे पढ़ेंगे ही।
सरकारें मुख्यमंत्री और विकास
दरअसल दिक्कत ये रही है कि मध्यप्रदेश की लीडरशिप में कोई भी रहा हो उसका चयन हमेशा राजनीतिक कारणों से हुआ। इसीलिये कई मुख्यमंत्रियों को पहले राजनीतिक एजेंडे पर काम करना पड़ता है फिर प्रदेश के विकास पर सोचते हैं। अब ऐसे लोग भी मुख्यमंत्री बन रहे हैं जो राजनीति में आये ही हैं। विकास न होने का एक कारण यह भी है कि इस प्रदेश में ज्यादतर मुख्यमंत्रियों को अपना कार्यकाल पूरा करने का अवसर नहीं मिला। सन् 70—80 में पांच साल में पांच मुख्यमंत्री बदल गये। फिर जनता पार्टी की सरकार आई तो तीन साल में तीन मुख्यमंत्री। लेकिन अब मुख्यमंत्री स्थायी है फिर भी विकास नहीं हो पा रहा। इसका कारण श्री गिरिजाशंकर विकास के मामले में सरकारों की तदर्थवादी सोच को मानते हैं। उनका कहना है कि विकास की योजनायें दीर्घकालिक सोच के साथ नहीं बनतीं इसलिये और काम भी तदर्थवादी सोच के साथ होते हैं इसलिये विकास भी नहीं हो पा रहा।
मध्यप्रदेश के लिये कौन रहे मुफीद?

भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल से लेकर वर्तमान मुख्यंत्री शिवराज सिंह चौहान तक की कार्यशैली कार्यकाल देखने वाले श्री शंकर के अनुसार मध्यप्रदेश के लिये सबसे मुफीद अगर कोई मुख्यमंत्री साबित हुआ है तो वो रहे श्री श्यामाचरण शुक्ल। जिस आदमी ने राजनीति से परे जाकर भविष्य को देखते हुये काम किया वो श्यामाचरण शुक्ल ही थे। उन्होंने दीर्घकालीन सोच के साथ काम किया। श्री शंकर कहते हैं कि शुक्ल जी को भी अपना कोई भी कार्यकाल पूरा नहीं मिला वरना आज प्रदेश की तस्वीर कुछ और होती। बरगी,तवा,हंसदेव और भिलाई प्लांट उन्हीं की देन हैं। भेल के बाद मध्यप्रदेश में कोर्इ् और पब्लिक अंडरटेकिंग प्रोजेक्ट मध्यप्रदेश में नहीं आया। आज पर्यावरण की बात होती है लेकिन वे तब आज को देखकर सोचते थे नगर नियोजन या मास्टर प्लान उन्हीं की देन थी। उस दौर में डेव्हलपमेंट हुआ लेकिन बाद में तदर्थवादी चीजें हुईं। श्री शुक्ल को तीन टर्म मिलाकर भी पूरे पांच साल नहीं मिले लेकिन उन्होंने राजनीतिक एजेंडे को पूरा करते हुये भी दीर्घकालीन काम किये। तदर्थवादी विकास का सबसे बड़ा उदाहरण है भोपाल का हमीदिया अस्पताज वो जैसा उस दौर में था वैसा ही आज है। उसमें दो कमरे ज्यादा बना देने को आप विकास नहीं कह सकते।
ऐसा भी नहीं है कि किसी ने काम नहीं किया हर मुख्यमंत्री ने काम किया लेकिन किसी को पूरा समय नहीं मिला और जिन्हें समय मिला उन्होंने तदर्थवादी सोच के साथ काम किया। इसलिये विकास नहीं हो पा रहा।
निष्कर्षत: सिर्फ यही कहा जा सकता है कि सरकारों को प्रदेश के विकास के लिये तदर्थवादी सोच को छोड़कर दीर्घकालीन,दूरगामी सोच के साथ काम करना होगा।
Comments