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राहुल से रूठा आशिक मीडिया !

खरी-खरी, मीडिया            Apr 20, 2015


सुधीश पचौरी मीडिया पहले सूंघता है फिर भौंकता है फिर टोकता है फिर ठोकता है। अगर आप उसकी ठुकाई को लिफ्ट नहीं देते तो खिसियाता है। मीडिया राहुल के इस ‘अपराध’ पर खिसियाया हुआ है कि वो उसे बताकर अज्ञातवास को क्यों नहीं गए। राहुल की मीडिया से इन दिनों ख़ासी आशनाई है और राहुल हैं कि अपने इस नंबर वन आशिक़ को नहीं पहचानते। रूठा हुआ आशिक़ बड़ा ख़तरनाक हेाता है। राहुल उसे बताकर जाते तो प्राइम टाइम की हिट स्टोरी बनती। स्टोरी बनती तो टीआरपी बढती. चैनलों का पेट भरता! मालिकों की डांट नहीं सुननी पड़ती कि इतनी बड़ी स्टोरी बाहर चली गई और तुझे उसकी हवा तक नहीं लगी। क्या इसीलिए तुझे पालता हूं? राहुल कुल छप्पन दिन अज्ञातवास में रहे और अचानक लौटे तो बैंकॉक से। सर्वव्यापी और सर्वज्ञानी मीडिया को इस बात का रंज रहा कि हमारे होते हुए भी वे चुपके से बाहर निकल गए। उससे कह कर जाते तो मीडिया उनका पूरा घ्यान रखता। ‘पपाराज़ी’ बनकर ताक झांक करता। बताता कि कब किससे मिले? क्या कहा?अगर ऐसा न हेाता तो छप्पन दिनेां के अज्ञातवास में कोई दस बार मीडिया ऐसी ज़ोरदार शिकायत न करता कि एक तो बताकर नहीं गया और अब हमसे मुंह छिपा रहा है! soniya-gandhi-&-rahul खिसियाकर मीडिया ने राहुल के अज्ञातवास को एक रहस्य कथा की तरह बना डाला और ब्योमकेश बख्शी को पीछे छोड़ सीधे इब्ने सफ़ी के कर्नल विनोद के सहजासूस हमीद की तर्ज़ पर जासूस कथा कहनी शुरू कर दी। रह रहकर सबसे पूछता रहता कि कहां गए राहुल? क्या ज़िम्मेदारी से डर कर भाग गए? लोकसभा की ज़िम्मेदारी से भाग खडे हुए? क्या मां-बेटे में झगड़ा है? आए दिन पत्रकार जुटाए जाते। दलों के प्रवक्ता जुटाए जाते प्राइम टाइम की बहसें करवाई जातीं. एंकर दहाड़तेः कहां छिपे हैं राहुल? कांग्रेसी प्रवक्ता झेंप कर कहता कि वे छुट्टी पर हैं। दल के काम काज से छुटटी लेना उनका निजी मामला है। एंकर हंसने लगता। बैठे पत्रकार ठट्ठा करने लगते। एंकर के सुर में सर मिलाकर मज़ाक़ उड़ाने लगते कि ये क्या बात हुई? पब्लिक फ़िगर हैं, पब्लिक फ़िगर पर पब्लिक का हक़ है। हमको पूछने का हक़ है। कहां हैं राहुल? ऐसी ही एक बहस में एक नामी एंकर ने एक कांग्रेसी प्रवक्ता को पहले बुलाया फिर राहुल को और उसे उपहास का विषय बनाया। rahul-gandhi-back-from-holyday प्रवक्ता अपनी हिफ़ाज़त में बार-बार बोलता रहा लेकिन एंकर को तसल्ली नहीं हुई। उसके बाद कुछ ऐसा हुआ कि अचानक एंकर प्रवक्ता पर चीख़ने लगा अगर आप चुप न हुए तो मैं आपको बहस से बाहर कर दूंगा। उसके बाद कहा कि अगर आप अब भी चुप न हुए तो मैं आपको बाहर फेंक दूंगा! एंकर सचमुच ग़ुस्सा खा गया था और बाक़ी पत्रकार प्रवक्ता के ढीठपन पर हंस रहे थे! ये कैसी बिरादरी है भई? आज की महान पत्रकारिता का एक सैडिस्ट चेहरा सामने था जो राहुल की निजता पर हंसे जा रहा था और मनमाफ़िक जवाब न पाकर नाराज़ हो रहा था। कुछ तो राहुल की बेवक़ूफ़ी रही कि अपने आशिक़ मीडिया को बताकर नहीं गए। छिप कर गए। मीडिया को इतने दिन अपने दर्शन से महरूम रखा। और सबसे बडा अपराध यह कि वे अपनी सत्ता नहीं बना सके! लेकिन भाई जी! अच्छा हुआ कि हार गए. अगर जीते होते और सत्ता बनाए होते तो आपको हंसने का ऐसा अवसर कहां से मिलता?याद करें जब राहुल की पार्टी सत्ता में थी तब आपने कभी पूछा था कि वे मेंटली कैसे हैं? पूछकर देखते तो हम भी समझते कि वाक़ई साहसी हैं आप! बीबीसी से साभार


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