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लाट साहब के लिए मुसीबत बनी परछांई

खरी-खरी            Mar 26, 2015


फैज़ाबाद से कुंवर समीर शाही राजनीति में सादगी के प्रतीक माने जाने वाले उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री रामनरेश यादव के मध्यप्रदेश के राज्यपाल बनने के साथ ही मुश्किलें परछाई बन गयीं। राज्यपाल बनाने का श्रेय सोनिया को देने के बाद राजनीतिक दलों के तीखे हमले से वह अभी दो-चार हो रहे थे कि पत्नी शांति देवी की बीमारी ने उन्हें हिलाकर रख दिया। पत्नी की मौत के झटके से उबरे भी नहीं कि सुख-शांति पर व्यापमं घोटाला ग्रहण बन गया। इसी घोटाले के आरोपों से घिरे उनके पुत्र शैलेष यादव की असमय संदिग्ध मौत से उम्र के इस पड़ाव पर एक बड़ा झटका लगा है। मंझले पुत्र शैलेष यादव की मौत से मध्यप्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। वह करीब तीन दशक पहले भी एक होनहार पुत्र को गंवा चुके हैं। बताते हैं कि पढ़ाई कर रहे उनके बेटे ने किसी बात पर खुदकुशी कर ली थी। चार पुत्रों में अब कमलेश यादव और अजय नरेश ही हैं। रामनरेश के करीबी आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र के पूर्व कांग्रेस प्रत्याशी अरविन्द जायसवाल कहते हैं कि ‘मोम जैसे हृदय के बाबूजी के लिए यह जबर्दस्त आघात है।’ पत्नी शांति देवी के 2013 में निधन के बाद जब राम नरेश यादव लखनऊ के माल एवेन्यू स्थित आवास पर आये तब मीडिया से मुखातिब होते ही वह बार-बार फफक पड़े। संघर्ष के दिनों में सबसे बड़ी सहयोगी रहीं पत्नी को खोने की टीस बाद के दिनों में भी उनके चेहरे पर चस्पा रही। परिचितों से मुलाकात में वह इस दुख का जिक्र करना नहीं भूलते। व्यापमं घोटाला उनके जीवन में तूफान की तरह आया। उन पर कभी कोई आरोप नहीं लगा था लेकिन व्यापमं घोटाले में उन पर मुकदमा दर्ज हुआ। एसटीएफ ने उनकी जबर्दस्त घेरेबंदी की और इसी घेरेबंदी में उनके पुत्र शैलेष यादव पर आरोपों का ठीकरा फूट पड़ा। रामनरेश यादव अंदर से टूटने लगे, लेकिन उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाकर बचाव का रास्ता ढूंढ लिया। लोग तो यहां तक कह रहे थे कि रामनरेश की कुर्सी अब गयी-तब गयी। यह तूफान किसी तरह थम गया। पर एक नया तूफान उन्हें हिला देने के लिए तैयार था। शैलेष को रामनरेश यादव बहुत मानते थे। जब उन्होंने आजमगढ़ के बाद शिकोहाबाद को राजनीतिक क्षेत्र बनाया तो उसकी कमान शैलेष ही संभालते थे। राज्यपाल बनने के बाद शैलेष का दखल बढ़ा था और इस वजह से भी आरोपों के छींटे उड़े। शैलेष की मौत फिलहाल रहस्य के घेरे में है। ऐसा नहीं होता तो प्रशासन को पोस्टमार्टम कराने की जरूरत नहीं होती। रामनरेश यादव जैसी शख्सियत के लिए ये घटनाएं कम पीड़ादायक नहीं है।


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