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विधायकों और सांसदों के निजी दौलतखाने भोपाल में ही जरुरी क्यों ...?

खरी-खरी            May 02, 2015


भोपाल में हरी-भरी पहाड़ियों के जंगलों को कटवा कर विधायकों बंगले बनवाकर कांक्रीट के जंगल खड़े करने की कवायद इन दिनों चर्चा में है। पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के जमाने से लेकर आज तक की क्या है वस्तुस्थिति? जानिए पुलिस महकमे में रहे एक जनसम्पर्क अधिकारी की कलम से कि कहाँ-कहाँ और कैसे-कैसे सरकारें अपने नुमाइंदों नवाजती रही हैं और नवाज रही हैं श्रीप्रकाश दीक्षित भोपाल में विधायकों के विश्राम भवनों और निजी दौलतखानों को लेकर वर्तमान सरकार की चिंता और प्रबंधन की खबरों से मुझे महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों स्वर्गीय अब्दुल रहमान अंतुले और अर्जुन सिंह की बेतहाशा याद आ रही है। अंतुले वह इतिहास पुरुष हैं जिन्होने मुंबई जैसे सिटी स्टेट में महाराष्ट्र के विधायकों को मकान और प्लॉट जैसी सुविधायों से नहला दिया था। तब अखबारों मे खूब हल्ला मचा था और अंतुले को खूब कोसा भी गया पर बाद में सब शांत हो गया था। अर्जुनसिंह अंतुले से दस कदम आगे निकल गए और उन्होंने विधायकों के साथ मीडिया को साधने और जेब मे रखने के लिए अखबार मालिकों को प्रेस और ऑफिस बनाने के लिए औने-पौने दाम पर भूखंड बांटे जो एम पी नगर जैसे महंगे इलाके मे हैं। विधायकों को तब के भोपाल के सबसे महंगे इलाके न्यू मार्केट मे प्लॉट दिये गए। अब जानिए कि लगभग मुफ्त कि इस बंदरबाँट का हुआ क्या .? रंगमहल के सामने अलॉट करीब सारे भूखंड तबके विधायकों ने बेच खाए। मौके के भूखंड और बने बंगलों को बड़े डॉक्टरों के खरीद लिया और अब यह इलाका क्लीनिकों और नर्सिंग होम्स के लिए जाना जाता है.। शायद ही भूले भटके से यहाँ कोई पूर्व विधायक रहता होगा। प्रेस कॉम्प्लेक्स के नाम से मशहूर अखबारों के ऑफिसों की बस्ती के भूखंडों का भी जमकर दुरुपयोग हो रहा है और कोई देखने-सुनने वाला नहीं है..?दूर जाने कि जरूरत नहीं है काँग्रेस के अखबार नेशनल हेराल्ड को भी जमीन दी गई थी जहां अब कई मंज़िला माल चमचमा रहा है। बीजेपी की सरकार दस- बारह बरस से है पर हेराल्ड ग्रुप का बाल बांका तक नहीं हुआ। भूले-भटके से कभी नोटिस थमा दिया जाता है फिर वही अनंत खामोशी छा जाती है। इसी प्रकार कोमा मे पड़े दैनिक ने भी पाँच-छह मंज़िला इमारत तान दी है, जिनमे कॉर्पोरेट ऑफिसों का बोलबाला है।यहाँ के और भी किस्से हैं जिन्हें सुनकर आंखे फटी के फटी रह जाएंगी। बीजेपी की सरकार आने के बाद नए विधायकों के लिए आशयाना तलाशा गया और फिर पशु चिकित्सा विभाग से जमीन छीन कर रेवेरा टाउन बसा दिया गया। यहाँ विधायकों और मंत्रियों ने नियम कानून को धता-बता कर बंगले कबाड़ रखे हैं। खबर है कि अब विधायकों और सांसदों के लिए रचना नगर में आशियाने बनाए जा रहे हैं और विधायक विश्राम भवन के लिए पेड़ उजाड़े जा रहे हैं। लाख टके का सवाल है कि विधायकों और सांसदों को भोपाल मे निजी बंगले क्यों होना और वह भी सरकारी जमीन पर..! वैसे तो चुनाव लड़ कर जीतने वाला हर सांसद और विधायक मोटा आसामी ही होता है और उसके पास अपने इलाके मे अपना खुद का घर भी होता है। कभी-कभार कोई आदर्शवादी विधायक बन जाता है जिसके पास खुद का भी घर नहीं होता, उसे अलबत्ता मकान के लिए जमीन दी जानी चाहिए पर उसके इलाके मे। भोपाल मे तो हरगिज नहीं। कुल मिलाकर भोपाल में सरकारी जमीन कि ऐसी बंदर बाँट तुरंत बंद होना चाहिए।


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