राकेश अचल
भोपाल में चल रहे दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण से अभिभूत संघ परिवार के पास इस बात का कोई उत्तर नहीं है कि सम्मेलन का उद्घाटन क्यों सीधे स्वागत और भाषण से ही हो गया,परम्परानुसार न दीप प्रज्ज्वलित किया गया और न कोई राष्ट्रगीत गया गया। मेजबान विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पूरी ताकत से प्रधानमंत्री का स्तुतिगान करते रहे। भाषा की देवी सरस्वती को सबने भुला दिया,क्या ये इटली की संस्कृति है?
सम्मेलन में प्रधानमंत्री के जाते ही व्यवस्थापक आराम की मुद्रा में आ आगे। मुख्य सभागार के दरवाजे बंद कर दिए गए और देश-विदेश से आये प्रतिनिधियों और अतिथियों को 34 डिग्री तापमान में उबलने के लिए छोड़ दिया गया। समानांतर सत्रों में वक्ताओं को पांच मिनिट से ज्यादा का समय नहीं मिला। यानी हर स्तर में बहस का नाटक किया गया। छोटे सभागा छात्रों से भर दिए गए,विद्वानों का कोई अतापता नहीं था। क्योंकि न कोई उनकी खर-खबर लेने वाला था और न आव भगत करने वाला। शाम को मनोरंजन के लिए जरूर मुख्यसभागार के दरवाजे खोले गए।
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