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व्यापमं से बड़ा ईमानदार कोई घोटाला नहीं हुआ

खरी-खरी            Jul 06, 2015


रवीश कुमार बहुत सारी चिट्ठियों में से उस लिफ़ाफे का रंग अलग नहीं होता तो शायद खोलकर देख भी नहीं पाता। खोलते ही लग गया कि लिखने वाला किसी पुराने दौर का आदमी है। साफ अंग्रेज़ी और सुंदर लिखावट। स्याही वाली कलम से लिखी गई इस चिट्ठी को पढ़ते हुए व्यापम को लेकर एक वरिष्ठ डाक्टर की मनस्थिति से साझा होने लगा। मध्यप्रदेश में कहीं पर उनका अस्पताल है और जैसा कि डाक्टरों के लेटरहेड पर होता है, तमाम तरह की डिग्रियां और प्रोफसर होने का फरमान छपा हुआ था। उनका दर्द बस इतना था कि व्यापम घोटाले को पैसे के लेन-देन की नज़र से देखना ठीक नहीं होगा। इसके कारण पिछले पंद्रह साल में राज्य में ऐसे ऐसे डाक्टर बन गए हैं जिससे आए दिन किसी न किसी अस्पताल में मेडिकल हादसा होता रहता है। इसका कोई हिसाब नहीं है। इन ख़राब डाक्टरों के कारण पीढ़ियां बर्बाद हो गईं हैं। अच्छे छात्रों की और लाचार मरीज़ों की। व्यापमं पर कार्यक्रम करते हुए उस चिट्ठी का ख़्याल आया तो दराज़ में सबसे ऊपर मिल गई। डाक्टर साहब से अनुमति के लिए पूछा कि क्या हम आपके नाम और लिखावट के साथ इसे शो में दिखा सकते हैं। उन्होंने बिना सोचे हां कह दी। फिर भी व्यापमं में हो रही मौतों की वजह से उनकी सुरक्षा को लेकर चिन्ता हो गई। सुशील महापात्र से कहा कि ईमेल करो और फोन कर बताओ कि सर आप दस मिनट टाइम लेकर सोच लीजिए कि आपका नाम लेना ठीक रहेगा। ईमेल पढ़ने के बाद डाक्टर साहब का फोन आ गया। सुनिये मेरा नाम मत लीजिए। कोई भरोसा नहीं है हम लोग बहुत छोटे आदमी हैं। प्राइम टाइम शुरू होने वाला ही था। किसी तरह से उनकी चिट्ठी को लेकर की गई एडिटिंग को हटाया और ग्राफिक्स के सहारे कुछ ही हिस्सा पढ़ा। ये हालत है उस राज्य में जहां मियां बीबी दोनों डाक्टर हैं। अपना अस्पताल है लेकिन बोलने से वे जब घबरा रहे हैं तब सोच लीजिए कि सीबीआई क्या एफ बी आई के जांच के लिए कितना बचा होगा। पूरे शो के दौरान सोचता रहा कि डाक्टर साहब कितने अविश्वास से देख रहे होंगे कि कहीं उनका नाम न ले ले। उनका दिल धड़क रहा होगा। बिहार का भयाक्रांत करने वाला वो दौर याद आ गया। इसलिए होना जाना कुछ नहीं है। बाकी तो जो है सो हइये है। व्यापमं से बड़ा ईमानदार कोई घोटाला नहीं हुआ। बेईमानी अगर है तो सिर्फ इसकी जांच में। (इसे पढ़ते ही मुझे ज़रूर याद दिलायें कि मैं किन किन बातों पर चुप रहा और मैं किन किन के नज़दीक हूं। ) रवीश कुमार के फेसबुक वॉल से


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